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’दिव्ययुग’ पत्रिका का आध्यात्मिक, सामाजिक, युगानुकूल एवं ज्ञानवर्धक विचारों से ओतप्रोत मार्च 2011 का अंक प्राप्त हुआ। जीवन की आध्यात्मिक सफलता, युवाओं के उज्ज्वल भविष्य के मार्गदर्शन, सामाजिक विकास तथा विश्‍व एकता की शिक्षाओं को जन-जन पहुँचाने में पत्रकारिता की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। ‘दिव्ययुग’ पत्रिका पत्रकारिता के क्षेत्र में नये आध्यात्मिक, सामाजिक एवं शैक्षणिक आयाम स्थापित करे ऐसी मेरी सदैव शुभकामनायें हैं। कप्तान केदारसिंह, स्वामी वैदिकानन्द जी महाराज तथा आचार्य डॉ. संजयदेव जी के प्रति हम अपना हार्दिक सम्मान एवं श्रद्धा प्रगट करते हैं।

आज का उद्घोष है- पूर्ण आरोग्य प्राप्त करना हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है। पूर्ण आरोग्य प्राप्त करने के मायने है कि शरीर, मन, बुद्धि एवं आत्मा चारों को स्वस्थ बनाया जाए। शारीरिक व मानसिक चिकित्सकों से अधिक हमें आध्यात्मिक चिकित्सकों की आज आवश्यकता है जो हमें यह ज्ञान करा सकें कि जब शरीर की इतनी देखभाल तो आत्मा की क्यों नहीं? परमेश्‍वर ने ब्रह्माण्ड की सब शक्तियों, समस्त ज्ञान, सम्पूर्ण आरोग्य, सुख, शान्ति व आनन्द हमारे भीतर ही दिया है। जरूरत है स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता, सद्ज्ञान तथा प्रभु समर्पण द्वारा उस ज्ञान जागृत करने की। विद्वानों, समाजशास्त्रियों, शिक्षाविदों, चिकित्सकों, मनोचिकित्सकों तथा विशेषज्ञों को विचार मन्थन करना चाहिये ताकि आन्तरिक व बाह्य व्यवहार से सम्बंधित सभी प्रकार की बीमारियों पर किसी भी प्रकार नियन्त्रण किया जा सके और नागरिकों का जीवन सुखमय व शान्तिमय बनाने की दिशा में कुछ किया जा सके। - डॉ. जगदीश गान्धी, लखनऊ (उ.प्र.)

Motivational Speech on Vedas in Hindi by Dr. Sanjay Dev
Ved Pravachan 40 | Explanation of Vedas | गायत्री मन्त्र में महाव्याहृतियों का दिव्य रहस्य

आध्यात्मिक मासिक पत्रिका ‘दिव्ययुग’ के मार्च 2011 अंक का सम्पादकीय ‘विचित्र परम्परा का पर्व है होली’ लाजवाब रहा। होली एक पावन त्यौहार है। इसे हमें हर्षोल्लास तथा गरिमामय तरीके से टेसू तथा गुलाब के रंगों का प्रयोग करके एक दूसरे के गिले शिकवे भूलकर और गले लगाकर मनाना चाहिए। स्वामी जगदीश्‍वरानन्द सरस्वती का ‘आदर्श हों हमारे घर’ पढ़ना मन को सकून देने वाला था। परन्तु ‘पाश्‍चात्य विद्वानों द्वारा वेदमन्त्रों का अनर्थ’ पढ़कर मन को पीड़ा हुई। कु. भावना पहल द्वारा प्रस्तुत कविता ‘आया होली का त्यौंहार’ इस त्यौहार को सही मायनों में मनाने की विधि बताने वाला है। पत्रिका की अन्य रचनाएँ भी अति उत्तम है। - प्रो. शामलाल कौशल, रोहतक (हरियाणा) (दिव्ययुग- मई 2011)