मासिक पत्रिका ‘दिव्ययुग’ का मई 2010 का नवीनतम अंक प्राप्त हुआ। पत्रिका अन्य पत्रिकाओं से कुछ अलग होने के कारण अच्छी लगी। सम्पादकीय ‘क्या राष्ट्रीय एकता सम्भव है?’ लाजवाब रहा। सम्पादकीय से तो यही लगता है कि जब तक हम क्षेत्रीयता, भाषावाद, जातिवाद तथा संकुचित विचारों के कैदी बने रहेंगे, तब तक राष्ट्रीय एकता सम्भव नहीं। राष्ट्रीय एकता तब तक सम्भव नहीं, जब तक हम संकुचित भावनाओं से ऊपर उठकर सारे देश के बारे में नहीं सोचते। हिन्दी भाषा का विकास, प्रचार तथा प्रचलन जरूरी है। सभी को संविधान के मुताबिक व्यवहार करना चाहिये, तभी राष्ट्रीय एकता सम्भव है। इस बढ़िया सम्पादकीय के लिये बधाई। आचार्य डॉ. संजयदेव का लाजवाब लेख ‘विचार शक्ति का महत्व’ न केवल ज्ञानवर्द्धक बल्कि प्रेरणादायक भी रहा। रोचना भारती का लेख ‘सार्थक लक्ष्य’ काबिले तारीफ लगा। डॉ वेदप्रताप वैदिक का बेहतरीन लेख ‘आजाद भारत की गुलामी’ अपनी बढ़िया संस्कृति को तार-तार कर पश्चिमी देशों की हानिकारक बातें अपनाने के लिये देशवासियों को लताड़ने वाला है। अन्य रचनायें भी रोचक हैं। - प्रो. शामलाल कौशल, रोहतक (हरियाणा)
दिव्ययुग का अप्रैल 2010 का अंक पढ़ा। अच्छा लगा। सम्पादकीय ‘आवश्यक है विदेशी संस्कृति से मुक्ति’ न केवल सामयिक है, बल्कि इस दिशा में करणीय का प्रेरक है। स्वामी रामचन्द्र वीर विषयक उनके निर्वांण दिवस (24 अप्रैल) पर जो आलेख प्रकाशित किया है, वह वीर जी के शौर्यमय एवं तपोमय दिव्य जीवन की सच्ची झांकी है। उनके निधन से एक वर्ष पूर्व मुझे भी उनके दर्शन का सौभाग्य प्राप्त हुआ था, जब मैं एक सेमिनार में विराट नगर गया था। क्या ही प्रेरक व्यक्तित्व था! ‘सत्यकथा’ नवयुवकों हेतु प्रेरणास्पद है। ‘भारत सनातन काल से एक राष्ट्र है’ आलेख अंग्रेजों की कुटिल नीति का पर्दाफाश करने वाला है। जीवन के पंचशील, सफलता के वैदिक सूत्र, यजुर्वेद वाङ्मय में पर्यावरण आदि लेख भी पठनीय हैं। बाल-वाटिका के प्रसंग प्रेरणास्पद हैं। प्रेरक सामग्री हेतु साधुवाद। - गोकुलचन्द गोयल, जयपुर (राजस्थान)
Motivational Speech on Vedas in Hindi by Dr. Sanjay Dev
Ved Katha Pravachan 39 | Explanation of Vedas | महामन्त्र गायत्री मन्त्र के साथ ॐ का उच्चारण आवश्यक
दिव्ययुग मार्च 2010 का अंक अवलोकनार्थ साभार प्राप्त हुआ। धार्मिक, नैतिक तथा राष्ट्रीय चेतना जागृति हेतु शंखध्वनि मंगलकारी है। पारिवारिक तथा सामाजिक विकारों का निवारण करने के पश्चात् दिव्ययुग अवश्य आएगा। सुखद सांस्कृतिक बोध-क्रान्ति उत्पन्न करने के उद्देश्य में सफलता प्राप्ति के लिए सद्प्रयासों हेतु मंगल कामनाएँ। मानसिक विकास के लिए दिव्य-सन्देश, वेद-सन्देश, जीवन-रहस्य, युवा-मंच आदि स्तम्भों का चिन्तन प्रेरणास्प्रद है। शरीर की देखभाल के लिए स्वास्थ्य स्तम्भ की सामग्री अत्यन्त उपयोगी लगी। बाल-वाटिका में बाल-मन के अनुकूल सरल, सुबोध तथा आनन्दित करने वाली रचनाएं दें। इसमें कविताएँ, लघुकथाएँ, प्रेरक-प्रसंग, बाल-पहेली आदि सम्मिलित किये जाने चाहिएं। दिव्ययुग व्यक्तित्व विकास तथा चरित्र निर्माण के प्रति समर्पित सर्वजन हेतु पठनीय तथा संग्रहणीय है। दिनानुदिन पुष्पित-पल्लवित रहने की पुनीत भावना स्वीकार करें। - गौरीशंकर वैश्य, लखनऊ (उ.प्र.)
दिव्ययुग के आलोक से ओतप्रोत ‘दिव्ययुग’ का अप्रैल 2010 का अत्यन्त ही प्रेरणादायी अंक प्राप्त हुआ। इस अंक में प्रकाशित प्रत्येक लेख अत्यन्त ही सारगर्भित, ज्ञानवर्धक, आध्यात्मिक तथा समाज को जागरूक करने वाले हैं। इस हेतु हमारी ओर से ढेर सारी बधाइयाँ स्वीकार करने की कृपा करें।
हर व्यक्ति को यह सुनिश्चित कर लेना चाहिए कि वह किस प्रकार की नौकरी या व्यवसाय के द्वारा अपना और अपने परिवार का पोषण तथा समाज की सेवा करना चाहता है। उसे अपना कैरियर निर्धारित करते समय अपनी रुचि, क्षमता, उपलब्ध संसाधनों, अनुभव, आन्तरिक शक्ति आदि पर अच्छी प्रकार विचार कर लेना चाहिए। लक्ष्य निर्धारित हो जाने के बाद वह निरन्तर चिन्तन करे कि वह अपने निर्धारित लक्ष्य को प्राप्त करने में कैसे सफल होगा? हमारा प्रत्येक कार्य अन्तिम ध्येय से जुड़ा हो। हमें अपने अन्तिम ध्येय के अनुरूप जोरदार तैयारी जीवन पर्यन्त करने के लिए संकल्पित रहना चाहिए। हमें ऐसा कैरियर, नौकरी या व्यवसाय चुनना चाहिए जो हमारी भौतिक, सामाजिक तथा आध्यात्मिक उन्नति में सन्तुलित रूप से सहायक हो। डॉ. जगदीश गान्धी, लखनऊ (उ.प्र.) (दिव्ययुग- जून 2010)