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दिव्ययुग के जनवरी 2010 के अंक में ‘आचार्यश्री धर्मेन्द्र जी महाराज विषयक प्रेत-प्रलाप’ शीर्षक लेख पढ़ा। पठन समय में एक श्‍लोक पढ़ा था, जिसका अर्थ था कि अपने प्रियजन-गुरुजन की जहाँ निन्दा हो उसका प्रतिकार करना चाहिए। ऐसा करने की स्थिति न होने पर अपने कान बन्द कर लेने चाहिएं। आपने प्रथम मार्ग चुना। मेरी समझ में कुछ लोग बुद्धि से सोचकर कार्य करते हैं,कुछ हृदय से सोचकर। पत्रकार, वकील, राजनीतिज्ञ तथा कुछ संन्यासी भी इस श्रेणी में आते हैं। जहाँ फायदा मिला उससे रिश्ते बनाते, अन्यथा अनदेखी करते हैं। उनकी दृष्टि में स्वार्थ ही बुद्धिमानी है।

पूज्य स्वामी दर्शनानन्द जी ने बुद्धि से काम करने वालों को सफेदपोश डाकू लिखा है। श्री अशोक कौशिक जी को इसी आइने में देखने का कष्ट करें। श्री स्वामी रामदेव जी की पिछली पृष्ठभूमि आर्यसमाज है। आर्यसमाज के प्रचारकों, पुरोहितों, संन्यासियों की दशा से आप भलीभाँति परिचित हैं। स्वामी जी का स्थान आज जो है, वह चतुराईपूर्ण मेहनत से है, जो ईमानदार मेहनत पर हमेशा भारी रही है। जिन्दगी का शाश्‍वत सिद्धान्त है कि अवसर परोसे नहीं जाते, झपटकर लिये जाते हैं। परिश्रम इसी पर किया और भाग्य से सुयोग बनाया। मुक्ति के लिए योग नहीं, वरन जीवन और जगत्सुख भोगने के लिए योग ही रामदेव-योग है।

स्वामी अग्निवेश जी ने पत्रकारों से कहा था कि आप मुझे दुनियादार संन्यासी कह सकते हैं। रामदेव योग भी दुनियादार और टी.वी. योग है। दुर्भाग्य से दुनिया स्क्रीन पर आने वालों को हीरो मानती है। पर वास्तविक हीरो गरीब, किसान, अध्यापक आदि जीवन संरक्षण में लगे लोग ही हैं। आचार्यश्री धर्मेन्द्र जी के बारे में सुनता हूँ, उन्हें देखता हूँ। आचार्य धर्मेन्द्र जी को मैं अवसर गंवाने वाला महापुरुष मानता हूँ। ये भी उसी रामरथ पर सवार थे, जो राजपथ पहुँचा। आचार्यश्री धर्मेन्द्र जी ने राजपथ की अनदेखी की और जनपथ को वरण किया। ये पद से परमपद को श्रेष्ठ जानते हैं और जीवन में उतारते हैं। कबीर और रहीम हजारों-लाखों हिन्दुओं की तुलना में भारी हैं। वैसे ही आचार्यश्री धर्मेन्द्र जी पद-प्रतिष्ठा और पैसे के पीछे भागने वाले आर्यसमाजियों से श्रेष्ठ हैं। इसमें कोई संशय नहीं। आपका आवेश वाजिब है। मेरी आपसे प्रार्थना है कि श्री आचार्यचरणों को ताकत दें। उनकी श्रेष्ठता का अनुसरण होना चाहिए। विक्षिप्त जनों के प्रलाप पर अधिक ध्यान देने की जरूरत नहीं।- अशोक कुमार शास्त्री, नई दिल्ली

Motivational Speech on Vedas in Hindi by Dr. Sanjay Dev
Ved Katha 38 | Explanation of Vedas | सब समस्याओं का समाधान गायत्री मन्त्र - रहस्य, यजुर्वेद 36.3

दिव्ययुग का जनवरी 2010 का अंक प्राप्त हुआ। सम्पादकीय के अन्तर्गत शिक्षा के गिरते स्तर तथा शिक्षार्थियों में राष्ट्र के प्रति प्रेम व निष्ठा में कमी, चारित्रिक एवं सामाजिक मूल्यों में गिरावट पर आपने प्रत्येक प्रबुद्ध नागरिक का ध्यान आर्कषित किया है, जो सराहनीय प्रयास है। ‘पर्यावरण’ पर विश्‍व के प्राचीनतम ग्रन्थों में सन्दर्भों का विवरण, संरक्षण की परिकल्पना पर शोध आलेख आचार्य डॉ. संजयदेव जी के सरोकारों का जीवन्त दर्शन है।

आचार्य धर्मेन्द्र जी महाराज के विषय में अशोक कौशिक की टिप्पणियों का प्रतिवाद जरूरी तो था, परन्तु हमने उनकी चर्चा प्रकाशित कर कौशिक महाशय को चर्चा में ला दिया। अच्छा हो कि इस प्रकार के लोगों को बहिष्कृत कर दें, वे स्वयं नष्ट हो जायेंगे। इस बहाने आचार्य धर्मेन्द्र जी महाराज को कुछ-कुछ जानने का अवसर भी मिला। राष्ट्रीय सरोकारों में प्रेरक-सन्दर्भों को स्थान देना, नई पीढ़ी को जानने-समझने का अवसर प्रदान करना है। बधाई स्वीकारें। - ए. कीर्तिवर्द्धन, मुजफ्फर नगर, (उ.प्र.) (दिव्ययुग- मार्च 2010)