विशेष :

यशस्वी जीवन

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ओ3म् यशो मा द्यावापृथिवी यशो मेन्द्रबृहस्पती ।
यशो भगस्य विन्दतु यशो मा प्रतिमुच्यताम्।
यशसास्याः संसदोऽहं प्रवदिता स्याम्॥ (सामवेद 611)

शब्दार्थ- (मा) मुझे (द्यावापृथिवी) द्युलोक और पृथिवीलोक का (यशः) यश प्राप्त हो (इन्द्रबृहस्पति) सूर्य और वायु का (यशः) यश (मा) मुझे प्राप्त हो। (भगस्य) ऐश्‍वर्य का, धन-सम्पत्ति का, भगवद्भक्ति का (यशः) यश (विन्दतु) मुझे प्राप्त हो। (यशः) यश, कीर्ति मुझे कभी (मा) मत (प्रतिमुच्यताम्) छोड़े। उस यश से युक्त होकर (अहम्) मैं (अस्याः संसदः) इस मानव-समाज का (यशसा प्रवदिता स्याम्) यशस्वी प्रवक्ता, यशस्वी उपदेशक बनूँ।

भावार्थ- मानव जीवन में प्रत्येक व्यक्ति को कीर्तिमान और यशस्वी होने की कामना करनी चाहिए। इस मन्त्र में लोक-कल्याण चाहने वाले की कामना का चित्रण है-
1. समाज हितकारी कार्य करते हुए मुझे द्युलोक और पृथिवीलोक में सर्वत्र यश प्राप्त हो । सभी दिशाओं में मेरी कीर्ति-चन्द्रिका छिटके।

2. जिस प्रकार संसार में सूर्य और वायु यशस्वी हैं, इसी प्रकार मेरा भी यश हो।

3. धन-सम्पत्ति का यश भी मुझे प्राप्त हो। मेरे पास धन-धान्य की न्यूनता न हो। भग का अर्थ ईश्‍वर- भक्ति भी है। भगवद्भक्ति का यश भी मुझे प्राप्त हो। लोग मेरे सम्बन्ध में चर्चा करें कि यह व्यक्ति ईश्‍वर का उपासक है।

4. यश मुझे कभी न छोड़े अर्थात् मैं कोई ऐसा कार्य न करूँ, जिससे मेरा अपयश हो।

5. मैं मानव-समाज का, समस्त संसार का यशस्वी प्रवक्ता, उपदेशक बनूँ। समस्त संसार को आनन्द-अमृत में स्नान करा दूँ। - स्वामी जगदीश्‍वरानन्द सरस्वती

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