महाराष्ट्र के पिछड़े जिले रत्नागिरी की सीमा से बाहर जाने और किसी भी प्रकार के राजनैतिक गतिविधियों पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया। इस क्रान्तिकारी का इस अवधि में अस्पृश्यता और सामाजिक परिवर्तनों का अथक प्रयास एक दृष्टि में।
१. एन. एस. वापट ने अपनी पुस्तक ''स्मृति पुष्प'' में लिखा है कि सावरकर अस्पृश्यता का वर्णन करने वाली एक कविता की रचना करते हुए रो पड़े।
२. अंडमान की जेल से एक पत्र में लिखा था-मैं भारत पर किसी विदेशी शासन के विरुद्ध विद्रोह कर रहा हूँ उतनी ही तीव्रता से जाति आधारित भेद भाव और अस्पृश्यता के विरुद्ध बी संघर्ष का पक्षधर हूँ।
३. हिन्दू समाज से उन्होंने कहा था कि बिना यह सोचे कि अन्य लोग ऐसा करते हैं या नहीं इसी क्षण से संकल्प लो कि सबके सामने तुम अपने अस्पृश्यता भाई का हाथ पकड़ेंगे।
४. जो अपना घर किराये पर देते हैं वह अस्पृश्य बंधुओं को अपने घर दें, अपने कुओं से पानी भरने दें।
५. ऐसा कोई दिन न जाये जो अस्पृश्यता निवारण का सार्वजानिक प्रयास न करे।
६. यह वह समय था जब गांधी ने राजनीतिक जीवन में प्रवेश किया था। डॉ. अम्बेडकर ने भी महासत्याग्रह इसके बाद ही शुरू किया।
७. वे गणेशोत्सव के समारोह में केवल इस शर्त पर जाते थे कि उनमे अस्पृश्य बंधुओ को भी प्रवेश मिलेगा।
८. दशहरा और मकर संक्रान्ति के अवसर पर अपने सभी लोगों को लेकर उनके घरों में जाते थे।
Motivational Speech on Vedas in Hindi by Dr. Sanjay Dev
Ved Katha Pravachan - 66 | Explanation of Vedas | तेतीस कोटि देवताओं का स्वरूप - 2
९. उनकी पत्नी यमुना बाई हल्दी कुमकुम के अवसर पर महिलाओं के बड़ी संख्या में एकत्र करती। सावरकर यह सुनिश्चित करते कि दलित वर्ग की महिलायें उच्च वर्ग की महिलाओं को कुकुम लगायें।
१०. १९३० ने विटठ्ल मंदिर के संचालकों ने गणेशोत्सव के समय अस्पृश्य बन्धुओं को बैण्ड बजाने की अनुमति नहीं दी, सावरकर ने स्वयं पंजाब बैंक से कर्जा दिलाकर अपनी गारंटी पर अस्पृश्य बन्धुओं का ही एक बढ़िया बैंण्ड तैयार कर दिया जो सावरकर बैण्ड के नाम से ही प्रसिद्ध हो गया।
११. अपने घर के सामने ही ०१ मई १९३३ को एक जलपान गृह प्रारम्भ किया जिसमें अस्पृश्य बन्धुओं को ही रोजगार दिया, जो भी व्यक्ति उनसे मिलने आता उसे पहले जलपान गृह में कुछ खाना या पीना अवश्य होता था।
१२. इण्डिया हाउस लंदन के सहवासी हर रात शुभरात्रि के रूप में सामूहिक रूप में घोषणा करते हैं।
एक देव, एक देश, एक भाषा, एक जाति, एक जीव, एक आशा - हरिश्चंद्र आर्य
In a letter from the Andaman prison, I wrote - I am revolting against any foreign rule on India, I am equally keen on the struggle against caste-based discrimination and untouchability.