ओ3म् त्र्यायुषं जमदग्नेः कश्यपस्य त्र्यायुषम्।
यद् देवेषु त्र्यायुषं तन्नो अस्तु त्र्यायुषम्॥ यजुर्वेद 3.62॥
मन्त्रार्थ- जमदग्नेः = जमत्- अग्नि की जो त्र्यायुषम् = तीन आयुवें हैं, कश्पयस्य = कश्यप की जो त्र्यायुषम् = तीन आयुवें हैं और देवेषु = देवो में यद् = जो त्र्यायुषम् = तीन आयेवें हैं। तत् = वैसी ही नः = हमारी भी त्र्यायुषम् = तीन आयुवें हों या वह त्र्यायुष हमारी भी हो।
मन्त्र का यह सीधा अर्थ सोचने के लिए विवश करता है कि क्या केवल ऐसा कहने या प्रार्थना से किसी की त्र्यायुष हो सकती है?
व्याख्या- मन्त्र का पहला शब्द है त्र्यायुष, जो कि मन्त्र में चार बार आया है। वेद में बीस-तीस से अधिक बार जीवेम शरदः शतम् जैसे शब्द हैं अर्थात् वेद मनुष्य की औसतन आयु सौ वर्ष निर्दिष्ट करता है। क्योंकि शरद ऋतु वर्ष में एक बार ही आती है। अतः शरद आदि ऋतु वाचक शब्द वर्ष की ओर संकेत करता है। इसलिए एक सौ वर्ष वाली तीन आयुवें त्र्यायुष कहलाती हैं।
जमदग्नि का जमदग्नेः पञ्चमी-षष्ठी विभक्ति में बनता है। संस्कृत के शब्द धातु-प्रत्यय के मेल से बनते हैं और इन्हीं दोनों के आधार पर शब्द का अर्थ सामने आता है। अतः वेद के शब्दों के अर्थ धातु-प्रत्यय के अनुरूप यौगिक या योगरूढ रूप में होते हैं, केवल रूढ रूप में नहीं। इस नियम के आधार पर जमदग्नि = जलती अग्नि वाला होगा। जैसे लकड़ी, कोयला, तेल, गैस, बिजली आदि कच्चे माल से जलने वाली अग्नि रसोई में होती है और जिससे भोजन आदि पकता है, ऐसे ही हमारे पेट में खाए भोजन को पचाने वाली शक्ति या व्यवस्था को भी अग्नि कहा जाता है। अतएव जठराग्नि आदि शब्द आयुर्वेद में प्रचलित हैं। यह शरीर में पाचन कार्य के अनुरूप तीव्र, मन्द और भस्म नाम से पुकारी जाती हे। इसी के आधार पर हमारा स्वास्थ्य निर्भर है।
मन्त्र का दूसरा चरण है- कश्यपस्य त्र्यायुषम्। कश धातु फैलाव अर्थ में है। व्यायाम-प्राणायाम करने वाला या शारीरिक श्रम करने वाला और कर्मठ अर्थात क्रियाशील। इस शब्द के वर्णों को आगे-पीछे करने से कश्यप का पश्यक बन जाता है। इसका अर्थ हो जाएगा देखने वाला या सम्भलकर जीने वाला। व्यवहार में भी हम देखते हैं कि जो जितना अधिक सम्भल कर अर्थात सावधानी से स्वास्थ्य के नियमों का पालन करते हुए जीते हैं, वे उतने ही स्वस्थ और दीर्घायु वाले होते हैं। इसीलिए ही आयुर्वेद के शास्त्रों में स्वस्थ रहने तथा लम्बी उम्र के उपाय बताए गए हैं।
तीसरा वाक्यांश है- यद् देवेषु त्र्यायुषम्। देव शब्द वेद में बहुत्र प्रयुक्त हुआ है। यह शब्द जहाँ परमात्मा के अनेक नामों के साथ आया है, वहाँ जल, अग्नि, सूर्य आदि भौतिक पदार्थों के लिए भी प्रयुक्त हुआ है। ऐसे ही विद्वांसो हि देवाः अर्थात् विद्वान या जानकार को भी देव कहा जाता है। उसके लिए भी देव अथवा देवता शब्द का प्रायः प्रयोग हुआ है।
मूलतः देव शब्द दिव् धातु से बनता है, जो चमकने, प्रकाश, दान और पूज्य आदि अर्थ में प्रसिद्ध है। विद्वान अपनी विद्या से चमकते हैं, प्रकाशित होते हैं। अतः वे देव कहलाते हैं। इसी प्रकार आयु-विद्या के विशेषज्ञों को भी देव कहते हैं। उनकी जो तीन आयुवें हैं अर्थात उस-उस उपाय को अपनाकर के वे लम्बी उम्र वाले होते हैं।
इस आधार पर तब चौथा चरण होगा, तत् त्र्यायुषम् नः अस्तु। इन तीनों जैसी ही तीन आयुवें (दीर्घायु) हमारी भी हों। इस प्रकार वेद आश्वासन दे रहा है कि तुम्हारे जैसा चारों ओर का वातावरण है तथा शरीर प्राप्त करके जिस प्रकार ये-ये दीर्घायु वाले हैं, उसी प्रकार वैसी प्रक्रिया को अपनाकर तुम भी दीर्घायु वाले हो सकते हो। परमदेव सबका एक जैसा परमपिता है। अतः उसकी देनें सबके लिए एक समान हैं। व्यवहार में हम देखते हैं कि सभी को समान रूप से जीवन जीने की खुली छूट है। अतएव वेद प्रार्थना कराते हुए सभी को प्रेरणा देता है कि यदि किसी क्षेत्र में सफलता चाहते हो, तो उस-उस क्षेत्र के अनुरूप ऐसे जीवन जीवो। प्रार्थना का मूल भाव यही है कि चाहत की तड़प उभार कर प्रेरणा दी जाए। (वेद मंथन)
वेद मंथन, लेखक - प्रा. भद्रसेन वेदाचार्य एवं संपादक - आचार्य डॉ. संजय देव (Ved Manthan, Writer- Professor Bhadrasen Vedacharya & Editor - Acharya Dr. Sanjay Dev) Motivational Speech on Vedas in Hindi by Dr. Sanjay Dev | घर की सुख और शांति के वैदिक उपाय | वेद कथा - 87 | वेद के चार काण्ड हैं। वेद का सरल परिचय | Explanation of Vedas in Hindi | Ved Gyan