ओ3म् देवैर्दत्तेन मणिना जङ्गिडेन मयोभुवा।
विष्कन्धं सर्वा रक्षांसि व्यायामे सहामहे॥ अथर्ववेद 2.4.4॥
शब्दार्थ- (देवैः दत्तेन) माता, पिता, आचार्य आदि तथा दिव्य पुरुषों, सन्त, महात्मा, योगियों द्वारा प्रदत्त, उपदिष्ट (मयोभुवा) आनन्ददायक, कल्याणकारी (जङ्गिडेन) अतिश्रेष्ठ ब्रह्मचर्यरूपी (मणिना) उत्तम धन द्वारा और (व्यायामे) व्यायाम में, व्यायाम द्वारा (विष्कन्धम्) रस और रक्त के शोषक रोगों को तथा (सर्वा रक्षांसि) समस्त रोग-कीणाणुओं को, राक्षसी भावों को, विकारों को, काम-क्रोधादि शत्रुओें को (सहामहे) पराभूत करते हैं, दूर भगाते हैं, दबाते हैं।
भावार्थ- मन्त्र में व्यायाम और ब्रह्मचर्य के महत्व पर प्रकाश डाला गया है। मन्त्र का सन्देश है-
1. विद्वानों द्वारा उपदिष्ट आनन्ददायक ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए।
2. प्रतिदिन नियमित रूप से व्यायाम करना चाहिए।
3. व्यायाम और ब्रह्मचर्य की शक्ति से मनुष्य शरीर के रस और रक्त का शोषण करने वाले सभी रोगों को मार भगाता है।
4. व्यायाम और ब्रह्मचर्य से मनुष्य शरीर पर आक्रमण करने वाले रोग के कीटाणुणों को पराभूत कर देता है।
5. ब्रह्मचर्य-पालन से और व्यायाम के अभ्यास से मनुष्य-शरीर ऐसा दृढ़ बन जाता है कि आन्तरिक और बाह्य कोई भी शत्रु उसके सामने ठहर नहीं सकता। - स्वामी जगदीश्वरानन्द सरस्वती
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