ऋग्वेद वाङ्मय
ऋचाओं का संग्रह होने के कारण इसे ’ऋग्वेद’ कहा जाता है।45 ‘ऋग्वेद’ की 21 शाखाएँ हैं46। इनमें ये पांच मुख्य हैं- शाकल, वाष्कल, आश्वलायन, शांखायन तथा माण्डूकायन। 47
इन सभी शाखाओं में केवल ‘शाकलशाखा’ ही सम्पूर्ण रूप में उपलब्ध है 48 तथा यही प्रचलन में भी है। अतः इसी शाखा के आधार पर ऋग्वेद का परिचय दिया जा रहा है।
ऋग्वेद की ऋचाओं (मन्त्रों) का विभाजन दो रूपों में उपलब्ध होता है- अष्टक-क्रम के अनुसार तथा मण्डल-क्रम के अनुसार।
अष्टक-क्रम के अनुसार, ऋग्वेद के सम्पूर्ण मन्त्रों (ऋचाओं) को 8 अष्टकों में बांटा गया है। प्रत्येक अष्टक में अध्यायों की संख्या भी 8 ही है। अध्यायों में वर्ग हैं तथा प्रत्येक वर्ग में 5 से 9 तक ऋचाएँ हैं। अष्टक क्रम के अनुसार ऋग्वेद संहिता में 8 अष्टक, 64 अध्याय तथा 2024 वर्ग है।
मण्डलक्रम के अनुसार, ऋग्वेद की सम्पूर्ण ऋचाओं को 10 मण्डलों में विभक्त किया गया है। प्रत्येक मण्डल में अनुवाक है तथा अनुवादों में सूक्त हैं। प्रत्येक सूक्त में ऋचाएँ (मन्त्र) हैं। मण्डल क्रम के अनुसार, ऋग्वेद संहिता में 10 मण्डल, 85 अनुवाक, 1028 सूक्त तथा 105801/4 मन्त्र हैं। वर्तमान में ऋग्वेद के मण्डल-क्रम के अनुसार विभाजन को ही विशेष महत्व दिया जाता है।
ऋग्वेद में वैदिक ऋषियों द्वारा की गई देवताओं की स्तुतियाँ तथा प्रार्थनाएँ हैं। स्तुति किए गए देवताओं की संख्या 33 मानी गई है। इनमें इन्द्र, अग्नि तथा सोम मुख्य देवता हैं। इन तथा अन्य अनेक देवताओं की स्तुतियों के साथ ही ऋग्वेद में विभिन्न विषयों से सम्बन्धित प्रार्थनाएँ हैं। इनमें शत्रु का नाश, युद्ध में विजय, धन-धान्य-पशु आदि की वृद्धि, वर्षा की कामना तथा परिवार की सुख समृद्धि की प्रार्थनाएँ सम्मिलित हैं। इसके अतिरिक्त ऋग्वेद में कुछ ऐसे सूक्त हैं, जिनका उपयोग यज्ञ में हो सकता है, यथा आप्री सूक्त, अन्त्येष्टि सूक्त आदि। पुरुष सूक्त, हिरण्यगर्भ सूक्त, नासदीय सूक्त आदि सूक्तों में भारतीय दर्शन के प्रारम्भिक तत्वों का संकेत मिलता है।
ऋग्वेद के कुछ सूक्त संवाद सूक्त कहे जाते हैं, जिनमें पुरूरवा-उर्वशी, यम-यमी तथा सरमा-पणि आदि के संवाद विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। इन सूक्तों में आख्यान मिलते हैं। इस कारण इन्हें आख्यान सूक्त भी कहा जाता है। ऋग्वेद में दान तथा वीरता आदि की स्तुतियाँ भी मिलती हैं।
इन सबके साथ ऋग्वेद में राष्ट्र, समाज, परिवार आदि से सम्बंन्धित विषयों का प्रसंगवश प्रचुर मात्रा में उल्लेख हुआ है।
पाश्चात्य विद्वान ऋग्वेद को एक उत्कृष्ट काव्य-संग्रह मानते हैं। क्योंकि इसमें प्राकृतिक शक्तियों का सुन्दर चित्रण हुआ है।
ऋग्वेद के भाष्यकारों में स्कन्दस्वामी, नारायण, उद्गीथ, वेंकटमाधव, आनन्दतीर्थ, आत्मानन्द, सायण, मुद्गल, हरदत्त, दयानन्द तथा सातवलेकर प्रमुख हैं।
ऋग्वेद से सम्बन्धित ब्राह्मण, आरण्यक, उपनिषद् तथा सूत्र ग्रन्थ निम्नलिखित हैं-
ब्राह्मण - ऐतरेय, कौषीतकि (शांखायन)
आरण्यक - ऐतरेय, शांखायन।
उपनिषद् - ऐतरेय, कौषीतकि।
श्रौतसूत्र - आश्वलायन, शांखायन (कोषीतकि)।
गृह्यसूत्र - आश्वलायन, शांखायन (कोषीतकि)।
धर्मसूत्र - वसिष्ठ धर्मसूत्र।
शुल्वसूत्र - कोई नहीं।
यजुर्वेद वाङ्मय
यज्ञ कर्म के लिए उपादेय यजुर्वेद में यजुषों का संग्रह है। ‘यजुस्’ का वैदिक साहित्य में ऋच् और सामन् के साथ बहुधा विभेद किया गया है। यजुस् के अन्तर्गत यज्ञ के समय उच्चरित मन्त्र आते हैं, जिनका स्वरूप गद्यात्मक या पद्यात्मक दोनों ही हो सकता है तथा इस शब्द के द्वारा ये दोनों ही अर्थ व्यक्त होते हैं। 49
‘यजुर्वेद’ तथा ‘यजुर्वेद वाङ्मय’ का विशेष परिचय शोध प्रबन्ध के द्वितीय अध्याय में दिया गया है।
सामवेद वाङ्मय
‘साम्’ का शाब्दिक अर्थ है- ऋचा का स्वरयुक्त गेय पाठ। सामनों के संग्रह का नाम ‘सामवेद’ है। 50 ‘सामानि यो वेत्ति स वेद तत्वम्’ अर्थात् जो सामवेद के सामों को जानता है, वह तत्व को जानता है।51 ‘साम’ शब्द से जिन गायनों का संकेत होता है, वे गान ‘गान-संहिताओं में संकलित’ किए गए हैं। सामयोनि ऋचाओं के आधार पर ही ऋषियों ने इन गान-मन्त्रों की रचना की थी। गान संहिताओं में संकलित इन गायनों के आधार पर ही आगे चलकर भारतीय संगीतशास्त्र का विकास हुआ है। 52
महाभाष्य के अनुसार सामवेद की एक हजार शाखाएँ 53 हैं। किन्तु आजकल सामवेद की ये तीन ही शाखाएँ उपलब्ध हैं- कौथुमीय, राणायनीय, जैमिनीय। 54
वर्तमान में सामवेद की ‘कौथुमीय’ शाखा ही सर्वाधिक प्रसिद्ध तथा प्रचलन में है। 55 अतः इसी आधार पर सामवेद का संक्षिप्त परिचय दिया जा रहा है।
‘कौथुमीय शाखा’ के अनुसार ‘सामवेद संहिता’ के दो प्रमुख विभाग हैं- पूर्वार्चिक तथा उत्तरार्चिक। ’आर्चिक’ शब्द का अर्थ है- ऋचा सम्बन्धी। पूर्वार्चिक में छः प्रपाठक हैं। प्रपाठकों में अध्याय हैं तथा अध्यायों में खण्ड हैं। खण्डों को ‘दशति’ भी कहा जाता है। पूर्वार्चिक के मन्त्रों की संख्या 650 है तथा उत्तरार्चिक में नौ प्रपाठक है। प्रपाठकों में प्रपाठकार्ध हैं। उत्तरार्चिक के मन्त्रों की संख्या 1225 है। इस प्रकार सामवेद में कुल 1875 मन्त्र हैं।
सामवेद में अग्नि, इन्द्र, सोम आदि की स्तुतियाँ की गई हैं। यह ‘उद्गाता’ ऋत्विक् की संहिता है तथा विभिन्न यज्ञों के अवसर पर सामगान करना ही उद्गाता का प्रमुख कार्य है।
भारतीय संगीत की दृष्टि से सामवेद का बहुत महत्व है। सामवेद के भाष्यकारों में माधव, भरतस्वामी, सायण, महास्वामी, शोभाकर भट्ट, गुणविष्णु तथा सातवलेकर प्रमुख हैं।
सामवेद से सम्बन्धित ब्राह्मण, आरण्यक, उपनिषद् तथा सूत्र-ग्रन्थ निम्नलिखित हैं-
ब्राह्मण - पञ्चविंश (ताण्ड्यमहाब्राह्मण), षड्विंश,
सामविधान, आर्षेय, मन्त्र, देवताध्याय,
वंश, जैमिनीय, तवलकार।
आरण्यक - अनुपलब्ध।
उपनिषद् - छान्दोग्योपनिषद्, केनोपनिषद्।
श्रौतसूत्र - खादिर, लाट्यायन, द्राह्यायण।
गृह्यसूत्र - खादिर, गोभिल, गौतम।
धर्मसूत्र - गौतम
शुल्वसूत्र - कोई नहीं।
अथर्ववेद वाङ्मय
यज्ञ की पूर्णता के लिए जिन चार ऋत्विजों की आवश्यकता होती है, उनमें से एक ऋत्विज् ‘ब्रह्मा’ का सम्बन्ध ‘अथर्ववेद’ से होता है। 56 इसी कारण इस वेद का एक नाम ‘ब्रह्मवेद’ भी कहा गया है। ब्रह्मा नामक ऋत्विज यज्ञ का अध्यक्ष होता है। इसका मुख्य कार्य यज्ञ की विधियों का निरीक्षण तथा सम्भावित त्रुटियों को दूर करना होता है। इस कार्य के लिये ब्रह्मा का चारों वेदों का ज्ञाता होना आवश्यक है। परन्तु उसका प्रधान वेद ‘अथर्ववेद’ को ही माना जाता है।
महाभाष्य के अनुसार अथर्ववेद की नौ शाखाएँ हैं। 57 परन्तु वर्तमान् में ये दो शाखाएँ ही उपलब्ध होती हैं- शौनक तथा पैप्पलाद। इनमें भी ‘शौनक शाखा’ अधिक प्रसिद्ध तथा प्रचलन में है। अतः इसी शाखा के आधार पर अथर्ववेद का परिचय दिया जा रहा है।
शौनक शाखा के अनुसार अथर्ववेद संहिता में 20 काण्ड, 731 सूक्त तथा 5987 मन्त्र हैं। अथर्ववेद में वर्णित विषयों का विभाजन तीन प्रकार से किया जाता है। अध्यात्म, अधिभूत तथा अधिदैवत। अध्यात्म प्रकरण में ब्रह्म, परमात्मा का विशेष वर्णन है, साथ ही साथ चारों आश्रमों का भी पर्याप्त उल्लेख है। अधिभूत प्रकरण में राजा, राज्य-शासन, संग्राम आदि विषयों का वर्णन है। अधिदैवत प्रकरण में विभिन्न देवता, यज्ञ तथा काल के विषय में उल्लेख है। अथर्ववेद के कुछ प्रसिद्ध सूक्त ये हैं- भौषज्यानि सूक्त, आयुष् सूक्त, पौष्टिक सूक्त, मृगार सूक्त, कौशिक सूक्त, राजकर्माणि सूक्त, यज्ञपरक सूक्त, अन्त्येष्टि सूक्त, रोहित सूक्त, पृथिवी सूक्त।
अथर्ववेद के इन सूक्तों में चिकित्सा, भौतिकी, राज्य, शासन, परिवार, समाज, संस्कार, मातृभूमि आदि से सम्बन्धित विषयों का सुन्दर वर्णन हुआ है। भारत की प्राचीन चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद के बीज भी अथर्ववेद में ही मिलते हैं।
अथर्ववेद के भाष्यकारों में सायण तथा सातवलेकर प्रमुख हैं।
अथर्ववेद से सम्बन्धित ब्राह्मण, आरण्यक, उपनिषद् तथा सूत्रग्रन्थ निम्नलिखित हैं-
ब्राह्मण - गोपथ ब्राह्मण।
आरण्यक - कोई नहीं।
उपनिषद - प्रश्नोपनिषद्, मुण्डकोपनिषद्,
माण्डूक्योपनिषद्।
श्रौतसूत्र - वैतान ।
गृह्यसूत्र - कौशिक।
धर्मसूत्र - कोई नहीं।
शुल्वसूत्र - कोई नहीं।
‘वैदिक वाङ्मय’ का अति संक्षिप्त परिचय ही यहाँ दिया गया है। विशेष परिचय हेतु वैदिक वाङ्मय के इतिहास से सम्बन्धित ग्रन्थों का अवलोकन करना चाहिए। (क्रमशः)
सन्दर्भ सूची
45. वैदिक इण्डेक्स-ख, मैकडानल एवं कीथ
46. महाभाष्य, पस्पशाह्निक
47. वैदिक साहित्य और संस्कृति, डॉ. बलदेव उपाध्याय
48. वैदिक साहित्य का इतिहास, डॉ. कर्णसिंह
49. वैदिक इण्डेक्स-खख, मैकडानल एवं कीथ
50. वैदिक इण्डेक्स-खख, मैकडानल एवं कीथ
51. वैदिक साहित्य और संस्कृति डॉ. बलदेव उपाध्याय
52. वैदिक साहित्य का इतिहास, डॉ. कर्णसिंह
53. महाभाष्य, पस्पशाह्निक
54. वैदिक साहित्य और संस्कृति डॉ. बलदेव उपाध्याय
55. सामवेद-आध्यात्मिक मुनि भाष्य, स्वामी ब्रह्ममुनि
56. वैदिक साहित्य और संस्कृति डॉ. बलदेव उपाध्याय
57. महाभाष्य, पस्पशाह्निक
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