पाकिस्तान द्वारा भारत के साथ किए जा रहे विश्वासघात को सिद्ध करने के लिए अब कुछ शेष नहीं है। हमारा नहीं बल्कि ब्रिटेन के प्रधानमन्त्री डेविड कैमरन का चेतावनी भरा कथन है, “पाकिस्तान उन सभी आतंकी गुटों को खत्म करे, जो भारत, ब्रिटेन और अफगानिस्तान में आंतकी घटनाओं को अंजाम दे रहे हैं।’’ आतंकी गुटों का नाम लेते हुए उन्होंने चेताया कि “पाकिस्तान को लश्कर ए-तोएबा, पाकिस्तानी तालिबान और अफगानिस्तानी तालिबान जैसे गुटों को पूरी तरह नष्ट करने की जरूरत है।’’ परन्तु इस ओर है हमारा वह अडिग विश्वास, जिससे प्रेरित होकर हम शान्तिवार्ता के कभी समाप्त न होने वाले क्रम चलाए जा रहे हैं। अभी-अभी इसी क्रम में हमारे प्रधानमन्त्री डॉ. मनमोहन सिंह पाकिस्तान पधारे थे और आतंकवाद के सवाल पर पाकिस्तान के प्रति विश्वास प्रकट करते हुए कहा था, “पाकिस्तान अपना वादा निभाएगा।’’ इसके विपरीत इस्लामाबाद में विदेश मन्त्रियों की बैठक में जो हुआ, वह ठीक नहीं था। इस पर प्रधानमन्त्री को श्री कैमरान के साथ प्रेसवार्ता में अपनी नाराजगी प्रकट करनी पड़ी। इस बैठक में कुछ मुद्दों पर सहमति बन गई थी, लेकिन पाकिस्तान के विदेश मन्त्री ने सब कुछ बिगाड़ दिया। उन्होंने जो टिप्पणियाँ की वे ठीक नहीं थी। इससे दोनों देशों के सम्बन्ध सुधारने के प्रयासों को गहरा झटका लगा। दूसरे शब्दों में पाकिस्तान के इस प्रयास को उसका भारत के प्रति विश्वासघात ही कहा जा सकता है। भारत का विश्वास और पाकिस्तान के विश्वासघात का साक्षी इतिहास है। ‘हिन्दू-मुस्लिम भाई-भाई’ इस नारे के प्रति भारत का विश्वास आजादी के बहुत पूर्व से रहा है। इस क्रम को हम आज भी बड़ी निष्ठा के साथ निभाते चले आ रहे हैं। हमारे विश्वास और उनके विश्वासघात की दुर्भाग्यपूर्ण विडम्बना के दर्शन सन् 1923 के करांची अधिवेशन से प्रारम्भ होते हैं। शिमला कान्फ्रेंस में तो इसके प्रत्यक्ष दर्शन हुए। अन्त में इसी विश्वासघात का परिणाम पाकिस्तान के निर्माण के रूप में हमारे सामने आया।
हमारा सद्भावना आधारित विश्वास फिर भी बना रहा। कश्मीर का एक हिस्सा विश्वासघाती छल का शिकार हुआ। हमने शान्तिवार्ता का प्रस्ताव रखा और विश्वास प्रकट किया। कारगिल युद्ध के बाद की शान्तिवार्ता हमारी सद्भावना को प्रकट करती है। पाक की आंतकवादी हरकतें चालू रहीं। इतना सब कुछ करने पर भी पाक के विदेश मन्त्रालय के प्रवक्ता अब्दुल वासिद ने कहा, “हमारे मित्र देशों को हम पर उंगली उठाने की बजाय भारत के नजरिए पर आपत्ति लेना चाहिए।’’ जबकि विकीलीक्स वेबसाईट ने सिद्ध कर दिया है कि पाकिस्तानी फौज और आईएसआई के आला अफसर तालिबान और अलकायदा के साथ मिले हुए हैं । ये अफसर भारत तथा अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर विश्वासघाती कार्य करते रहते हैं। वेबसाईट पर स्पष्ट किया है कि - अफगानिस्तान में भारतीय दूतावास पर हुए हमले में तालिबान सेण्टर नाम का गुट था। आईएसआई ने इस हमले पर 2,20,000 डालर खर्च किए। इस हमले में विदेश सेवा अधिकारी वेंकटेश्वर राव व ब्रिगेडियर आर.डी. मेहता सहित 58 व्यक्ति मारे गए थे। अफगानिस्तान में सड़क निर्माण करने वाले भारतीय दलों पर हमला करने का ठेका सेराजुद्दीन हक्कानी को 15 से 30 हजार डालर में दिया गया था। ऐसे ही पाकिस्तान के अन्य विश्वासघाती षड्यन्त्रों का विवरण वेबसाईट में दिया गया है। क्या पाकिस्तान के विश्वासघाती षड्यन्त्रों का जवाब हमारे पास है? विश्वासघाती पर विश्वास कर शान्तिवार्ता की हमारी वर्तमान नीति भविष्य के लिए खतरनाक है।
ब्रिटेन के प्रधानमन्त्री डेविड कैमरन ने पाकिस्तान को चेतावनी देते हुए कहा है कि वह आंतकी केन्द्रों को समाप्त करे। इससे आगे बढ़कर अफगानिस्तान के राष्ट्रपति हामिद करजई ने पाकिस्तान स्थित तालिबान की पनाहगार पर हमला करने की चेतावनी दे डाली है। उन्होंने पाकिस्तान को आतंकवादियों की जन्नत कहा है।
इन आधारों पर यह कथन सर्वथा उचित है कि भारत सरकार को विश्वासघाती पाकिस्तान पर कतई विश्वास न करते हुए शान्तिवार्ता की नीति का त्याग करना होगा। समझौतावादी नीति छोड़कर उसे ललकारना होगा। विश्वासघातियों को दण्डित करने का साहस जुटाना होगा। इससे सैनिकों में साहस की वृद्धि होगी। सारा भारत आपके साहसपूर्ण कदमों का अनुकरण करेगा। प्रो. जगदीश दुर्गेश जोशी
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