श्रीमन्महात्मा रामचन्द्र वीर महाराज
राजधानी दिल्ली में सन् 1966-67 के ऐतिहासिक गोरक्षा आन्दोलन का प्रारम्भ महात्मा वीर के अद्वितीय अनशन से ही हुआ था। आन्दोलन की दुर्भाग्यपूर्ण समाप्ति के पश्चात् सन्तों के अनुरोध पर उन्होंने अपने 166 दिन अर्थात् साढ़े पाँच महीने लम्बे अनशन को समाप्त किया। इस आन्दोलन को उनके महान् उत्तराधिकारी एवं एकमात्र आत्मज पूज्य आचार्यश्री धर्मेन्द्र महाराज के 52 दिवसीय अनशन तथा पुत्रवधू स्वर्गीया श्रीमती प्रतिभा देवी जी के सत्याग्रह ने भी शक्ति प्रदान की थी।
मूक पशुओं और गोवंश की रक्षा हेतु भगवान बुद्ध के पश्चात् किसी एक सन्त ने यदि विश्वव्यापी एवं प्रभावशाली आन्दोलन करके व्यापक सफलता प्राप्त की है, तो वे केवल महात्मा वीर महाराज हैं। किन्तु यह तो उनके विराट व्यक्तित्व का एक पहलू है। महाराजश्री का राष्ट्र पर दूसरा उपकार उनका अनवरत हिन्दू संगठन अभियान है। पूरे हिन्दीभाषी भारत में, महाराष्ट्र, बंगाल, उड़ीसा और असम में महाराजश्री ने हिन्दू संगठन का ग्राम-ग्राम तथा नगर-नगर में जाकर प्रचण्ड शंखनाद किया। मध्यभारत को हिन्दुत्व का अभेद्य दुर्ग बनाने में महात्मा वीर का विशिष्ट योगदान रहा है। इस्लामी जेहादी जुनून से महाराजश्री जीवन पर्यन्त पग-प्रतिपग संघर्ष करते रहे और सफल होते रहे।
देवतास्वरूप भाई परमानन्द, स्वातन्त्र्य वीर सावरकर, उनके क्रान्तिकारी अग्रज और अनुज, आद्य सरसंघचालक डॉ. हेडगेवार और धर्मसम्राट स्वामी करपात्री जी जैसे महापुरुष वीर जी महाराज के द्वारा हिन्दू हितों के लिए किये संघर्ष पर मुग्ध थे। हिन्दू महासभा, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, आर्यसमाज, भारतीय जनसंघ एवं रामराज्य परिषद् आदि हिन्दू संगठनों को वीर जी महाराज ने समान भाव से अपने खून-पसीने से सींचा है, यह कहना अतिशयोक्ति नहीं है। अपनी जन्मभूमि महाभारतकालीन तीर्थनगरी विराटनगर को विधर्मी समाजकंटकों के आतंक से उन्होंने न केवल मुक्त किया, प्रत्युत औरंगजेब द्वारा ध्वस्त एवं विकृत शक्तिपीठ का तथा पवित्र भीमगिरि का उद्धार भी किया।
श्रीपंचखण्ड पर्वत शिखर पर स्थापित पावनधाम में परमाराध्य श्री वज्रांगदेव हनुमान महाप्रभु का दिव्य देवालय वीर जी महाराज की कीर्ति का चिरस्थायी स्मारक है। महाराजश्री ने अपनी धारणा के अनुरूप अपने आराध्य देव श्री हनुमान की विश्व में एकमात्र विशाल मनमोहक मानवरूपिणी प्रतिमा सुस्थापित करके ‘हनुमान जी महाराज’ ‘हनुमत लाल’ या ‘बजरंग बली’ को ‘वज्रांगदेव महाप्रभु’ के महामहिम विरुद में जनमन में स्थापित किया।
कैसा विस्मय है कि जो वीर जी महाराज प्रचण्ड वक्ता, अडिग सत्याग्रही और योद्धा सन्त के रूप में प्रख्यात हुए वे कोमल हृदय कवि और गायक भी थे। उनके द्वारा रचित गीत और भजन स्वयं उनके कण्ठ से सुनने का सौभाग्य जिनको मिला है, वे उनके मेघमन्द्र स्वर के सम्मोहन को आज भी स्मरण करते हैं। वीर जी महाराज का अति विशिष्ट रूप उनका साहित्यिक स्वरूप है। उनके श्रद्धांजलि समारोह में एक विद्वान की यह उक्ति सर्वथा सत्य है कि वीर जी महाराज के विराट जीवन के विविध पक्षों को छोड़ भी दिया जाये तो उनके द्वारा रचित ‘श्रीराम कथामृत महाकाव्य’ ही उनके सुयश को अमर रखने के लिये पर्याप्त है।
‘श्री रामकथामृत’ खड़ी बोली अर्थात् हिन्दी भाषा की मुख्य धारा का सबसे बृहद् महाकाव्य है। सन् 1942 में उनके द्वारा रचित क्रान्तिकारी इतिहास ग्रन्थ ‘विजयपताका’ को ब्रिटिश सरकार ने प्रेस से ही उठाकर जब्त कर लिया था। तब उसके अनेक भूमिगत संस्करण देशभक्त संगठनों ने गुप्त रूप में छपवाकर सर्वत्र प्रसारित किये और ‘विजयपताका’ को पढ़कर पूर्व प्रधानमन्त्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी हिन्दुत्व की ओर आकृष्ट हुए। उनके प्रारम्भिक भाषणों में बरसों तक ‘विजयपताका’ का प्रभाव झलकता रहा।
वीर जी महाराज के सैद्धान्तिक ग्रन्थ ‘विनाश के मार्ग’ की रचना 1945 में हुई, जो तत्कालीन स्थितियों में महाराजश्री की दूरदृष्टि और भविष्य चिन्तन की यथार्थता का दस्तावेज है। ‘विकट यात्रा’ उनके जीवन के 5 दशकों की कथा है। उनकी अन्य कृतियाँ वीर रत्न मंजूषा, हिन्दू नारी, स्वास्थ्य सम्पत्ति, अमर हुतात्मा, भोजन और जीवन, पावन स्मृतियाँ, आदर्श रामायण और ज्वलन्त ज्योति शिखाएँ उनके राष्ट्रचिन्तन, समाज चिन्तन और सृजनात्मक प्रतिभा का प्रमाण हैं। महात्मा वीर की सबसे महत्वपूर्ण रचना है ‘वज्रांग वन्दना’, जो आकार में उनकी सभी कृतियों से छोटी है। आराध्यदेव श्री हनुमान महाप्रभु की इस स्तुति को महास्तोत्र कहना पूर्णतया उचित है। श्रीहनुमान के विराट व्यक्तित्व का ऐसा वर्णन अन्यत्र अप्राप्य है। ‘वज्रांगवन्दना’ न केवल परमसिद्ध स्तोत्र है, प्रत्युत हिन्दी साहित्य में वह एक काव्यात्मक चमत्कार है। उसे सुनना और उसका पाठ करना अनिर्वचनीय आनन्दानुभूति प्रदान करता है।
धीरोदात्त, धराधर-धारक, ध्यानी, ध्रुवमति, धर्म-धुरीण।
प्रचण्ड प्रतिकारक, प्रतिरोधक, प्रणतपाल, प्रतिवाद-प्रवीण।
अविकल, अविचल, अविगत, अव्यय, अभय, अमर, अतिरथी, अपार,
अग्रगण्य, अग्रणी, अघांतक, अच्युत, अविनश्वर, अविकार।
प्रकृत, प्रकट, प्रच्छन्न, प्रशंसित, प्रवर, प्रवीर, प्रबुद्ध, प्रधान।
नमो नमो रुद्रावतार प्रभु, श्री वज्रांग देव भगवान।
मैं साहित्य समीक्षक या समालोचक नहीं हूँ। किन्तू मेरी दृढ़ मान्यता है कि ‘वज्रांग वन्दना’ के एक-एक शब्द विस्तृत भाष्य संभव है। वह होना ही चाहिए। तभी उसकी अर्थ-व्याप्ति का उचित विवेचन होगा। महात्मा वीर की स्फुट रचनाएँ और लेख बड़ी संख्या में यत्र-तत्र बिखरे पड़े हैं। उन सबका संकलन, सम्पादन और प्रकाशन होना चाहिए, जिससे समाज एक महामानव की दिव्य प्रज्ञा से अवगत और अनुप्राणित हो सके।
कवि द्रष्टा होता है। सन्त तो द्रष्टा होते ही हैं। महात्मा वीर के प्रवचनों और भाषणों को आज से 60-65 वर्ष पूर्व सुनने और उनका साहित्य पढ़ने वाले सुधीजन उनकी भविष्य को देखने की दृष्टि से भली-भाँति अवगत हैं। 65 वर्ष पूर्व वे कहते थे- “भविष्य में पुड़ियाओं में अन्न और शीशियों में घी बिकेगा। जनसंख्या में स्त्रियों का अनुपात कम हो जाएगा। हिन्दू समाज अनेक टुकड़ों में विभाजित हो जाएगा। पानी दुर्लभ और वायु प्रदूषित हो जाएगा। भस्मासुरों के दल-बादल देश पर छा जाएंगे।’’(जारी) - शिवकुमार गोयल
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