वैसे तो बच्चों में डायरिया की समस्या होती ही रहती है, किन्तु इसका प्रकोप वर्षा ऋतु में विशेष रूप से अधिक बढ़ जाता है। यदि उचित समय पर उपचार न हुआ, तो गम्भीर परिस्थितियाँ उत्पन्न हो सकती हैं तथा बच्चों को जान के लाले पड़ सकते हैं। सामान्य तौर पर हर पाँच वर्ष के छोटे बच्चों में दो-चार बार डायरिया की बीमारी प्रतिवर्ष होती है।
अगर कोई बच्चा रोज तीन से अधिक बार पतले दस्त करता है, तो उसे डायरिया कहा जाता है। नन्हें-मुन्ने बच्चों के शरीर में जल की मात्रा वयस्कों से कम होती है। दस्त होने पर वे शीघ्र ही पानी तथा खनिज लवणों की कमी का शिकार हो जाते हैं। वक्त पर इलाज न होने की स्थिति में मृत्यु भी हो सकती है। लापरवाही, उदासीनता अथवा अज्ञानतावश आज भी प्रतिवर्ष लाखों बच्चे अकाल मौत का शिकार होते हैं। थोड़ी-सी सावधानी और विवेकपूर्ण समझदारी से इन मौतों को रोका जा सकता है।
दस्त का कारण- बच्चों में दस्त का कारण ऋतु तथा स्थान के साथ बदलता रहता है। छह माह तक की अवस्था के शिशुओं में जो ऊपरी दूध पीते हैं, को दस्त होने की संभावना माँ का दूध पीने वाले बच्चों से अधिक होती है। छह माह से दो वर्ष की आयु के बच्चों को डायरिया होने की संभावना बढ़ जाती है, क्योंकि बच्चे चलना-फिरना प्रारम्भ कर देते हैं। वे हाथों की गन्दी अँगुलियों के साथ ही बार-बार खाना भी खाते रहते हैं। दाँत निकलते समय प्रायः बच्चों को दस्त की शिकायत हो जाती है। किन्तु दाँतों के निकलने और डायरिया का कोई सम्बन्ध नहीं होता है।
डायरिया होने की संभावना गर्मियों और वर्षा ऋतु में बढ़ जाती है। क्योंकि यह ऋतु बैक्टीरिया, वायरस, फफूंद, कवक के बढ़ने का सहयोगी समय होता है। चारों तरफ गन्दगी का साम्राज्य होता है। साथ ही मक्खियों, मच्छरों, कॉकरोचों की संख्या बढ़ जाती है।
दस्त की समस्या बैक्टीरिया, वायरस अथवा फफूंद द्वारा संक्रमण से होती है। लगभग आधे बच्चों में दस्त का कारण ई. कोलाई बैक्टीरिया से संक्रमण है।
बैक्टीरिया, वायरस, परजीवी, कवक आदि दूध, जल इत्यादि खाद्य पदार्थों द्वारा शरीर में पहुँचकर विष स्रावित करते हैं, जो कि आँतों की श्लेष्मा झिल्ली को हानि पहुँचता है और डायरिया के लक्षण पैदा कर देता है।
दस्त के साथ अन्य लक्षण- शिशुओं में जलाभाव को सहने करने की शक्ति नहीं होती है। दस्तों के कारण वे निढ़ाल तथा चिड़चिड़े हो जाते हैं और अपनी बाल-क्रीड़ाओं को बन्द कर देते हैं। प्रायः दस्त के साथ ज्वर, सिरदर्द व उल्टी भी हो सकती है। यदि डायरिया के कारण शरीर में पानी अथवा खनिज लवणों की कमी हो गई है, तो मूत्र की मात्रा कम हो जाती है। आँखें गड्ढ़े में धंस जाती हैं। चेहरा मुर्झा जाता है तथा मुँह सूख जाता है। त्वचा में झुर्रियाँ पड़ने लगती हैं। अत्यधिक पानी की कमी के कारण त्वचा को चुटकी से उठाने पर धीरे-धीरे सीधी होती है। बच्चों को प्यास अधिक लगती है तथा बच्चे बेचैन रहने लगते हैं। पानी की अत्यधिक कमी होने पर बच्चे मरणासन्न हो जाते हैं। उनके हाथ-पैर ठण्डे तथा बदन गर्म रहता है। पानी के साथ पोटेशियम लवण की कमी होने पर माँसपेशियों का कसाव कम हो जाता है तथा पेट फूल जाता है। छोटे बच्चों की खोपड़ी भीतर धंस जाती है। कब्ज की गति बढ़ जाती है। रक्तचाप कम हो जाता है। पेशाब की मात्रा से बीमारी की गम्भीरता का अनुमान लगाया जा सकता है। यदि उपचार में अनुमान-विलम्बता हुई, तो गुर्दे प्रभावित हो सकते हैं। दस्तों के कारण रक्त की अम्लीयता बढ़ने से श्वास गति अत्यधिक तेज हो जाती है। कुछ बच्चों में दस्तों के कारण पानी और खनिज लवणों की कमी और संक्रमण के फलस्वरूप झटके आने लगते हैं।
बचाव तथा उपचार-
1. डायरिया से बचाव के लिए दूध, पानी तथा भोजन की स्वच्छता पर विशेष ध्यान देना चाहिए।
2. माँ का दूध नन्हें बच्चों के लिए सर्वोत्तम आहार है। हो सके तो एक वर्ष तक की आयु तक बच्चों को माँ का दूधपान अवश्य कराना चाहिए।
3. यदि बच्चा बोतल से दूध पीता है तो हर बार दूध पिलाने से पूर्व बोतल तथा निपल को उबले पानी से साफ करना आवश्यक है। निपल को अंगुलियों से न छुएं। बोतल में बचे हुए दूध को दुबारा न पिलाएं। अच्छा तो यह होगा कि स्वच्छ हाथों से चम्मच द्वारा बच्चे को दूध पिलाएं तथा बड़े होने पर गिलास से दूध पीने की आदत डालें और यह भी ध्यान रखें कि वह गन्दी अंगुलियों को मुँह में न डाले व गन्दे हाथों से खाना न खाए। उबालकर ठण्डा किया हुआ पानी पिलाएं तो उत्तम रहेगा।
4. दस्त होने पर अधिकतर लोगों की यह मान्यता होती है कि बच्चों का खाना बन्द कर देना चाहिए, जिससे आँतों को आराम मिलेगा। दस्त होने पर माँ का दूध पिलाना जारी रखें। बच्चों को दूध के साथ भोजन भी दें।
5. बच्चों को दस्त से बचाव के लिए शुद्ध जल की व्यवस्था आवश्यक है। घर को स्वस्छ रखें। भोजन को गन्दगी, मक्खियों, कीड़ों, काकरोच, चूहों से बचाने के लिए ढककर रखें। साबुन से हाथ साफ कर भोजन पकाएं, खाएँ और बच्चों को खिलाएं। बच्चों का पाखाना इधर-उधर न फेंककर टायलेट में बहा दें। बच्चों को हमेशा ताजा तैयार किया हुआ खाना ही दें। खुला रखा या बासी खाना जीवाणुओं का प्रजनन स्थान बन जाता है। बाजार में उपलब्ध चाट, पकौड़े, कटे हुए फल, ठेलों पर बिक रहे खुले बिस्कुट-टॉफी बच्चों को न खाने दें।
6. दस्त होने के कारण पानी और खनिज लवणों की कमी सबसे गम्भीर समस्या है। बीमार बच्चे में इनकी कमी न हो, इसका पूरा-पूरा ध्यान रखें। दस्त होने पर बच्चों को ओ.आर.एस. का घोल तुरन्त पिलाना चाहिए। यह हर प्राथमिक चिकित्सा केन्द्र तथा सरकारी चिकित्सालयों में निःशुल्क उपलब्ध रहता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन जो घोल उपबल्ध कराता है, उस पैकेट में 20 ग्राम ग्लूकोज, 3.5 ग्राम नमक, 2.5 ग्राम सोडियम कार्बोनेट अथवा 2.1 ग्राम सोडियम साइट्रेट तथा 1.5 ग्राम पोटेशियम क्लोराइड होता है। इस एक लीटर स्वच्छ जल में मिलाकर बनाए घोल को बच्चे को देना चाहिए।
7. यदि ओ.आर.एस. का घोल अनुपलब्ध है, तो उबालकर ठण्डे किए हुए एक लीटर पानी में चाय के आठ चम्मच चीनी, एक चम्मच नमक तथा इच्छा हो तो एक नीम्बू का रस मिलाकर तैयार किया हुआ शर्बत दें।
8. चार माह के शिशु को एक से दो गिलास, 4 से 11 माह के बच्चों को 2 से 3 गिलास, 1 से 2 वर्ष के बच्चों को 3 से 4 गिलास, 2 से 4 वर्ष की अवस्था के बच्चों को 4 से 5 गिलास तथा इससे अधिक उम्र के बच्चों को 6 से 11 गिलास ओ.आर.एर. का शर्बत प्रथम चार घण्टों में देना चाहिए। बच्चे को हर बार साफ हाथों से इसको चम्मच से पिलाएं।
9. बच्चों में जल की कमी की भरपाई होने का मापदण्ड पेशाब की मात्रा है। छोटे बच्चों को पानी, दूध आदि सिर थोड़ा ऊँचा करके पिलाएं। दस्त चालू रहने पर हर दस्त के बाद आधा कप पानी जरूर पिलाएं। यदि उल्टी होती है तो शर्बत पिलाना मत रोकें। दस मिनट इन्तजार के बाद फिर पानी पिलाएं।
10. ग्लूकोज चढ़ाते समय भी प्यास लगने पर ओ.आर.एस. का घोल दिया जा सकता है।
11. चिकित्सक से सम्पर्क करने का प्रयास करें।
डायरिया ठीक होने और जल की पूर्ति के बाद बच्चों के खानपान पर विशेष ध्यान दें। क्योंकि दस्त होने के कारण पोषक तत्वों की कमी हो जाती हैतथा वे कुपोषण की चपेट में आ सकते हैं। शरीर की प्रतिरक्षा क्षमता कम होने पर ये बच्चे सरलता से अन्य गम्भीर रोगों का शिकार हो सकते हैं तथा उनका विकास अवरुद्ध हो सकता है। - ओमप्रकाश ‘दार्शनिक‘ (सन्दर्भ-निरामय जीवन)
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