प्याज का मूल स्थान मध्य एशिया है। पर दुनिया भर के देशों में प्याज की खेती की जाती है। प्याज लाल, भूरे या सफेद रंग के और गोलाकार होते हैं। इनका कन्द गन्धयुक्त व गूदेदार होता है। कुछ जातियाँ तीव्र गन्ध की और कुछ जातियाँ मन्द-गन्ध की होती हैं। ज्यादा गन्ध वाली जातियाँ औषधीय उपयोग के लिए और कम गन्ध वाली जातियाँ आहार में उपयोग के लिए श्रेष्ठ मानी जाती हैं। प्याज के पत्तों में विटामिन ए, बी और सी काफी मात्रा में होते हैं। प्याज वातशामक, पित्तकारक और किंचित कफकारक होती है।
प्याज के अनेक औषधीय उपयोग हैं-
- दाह, त्वचा रोग, एलर्जी से आने वाला एक्जीमा और खुजली की शिकायत में प्याज का रस त्वचा पर घिसकर लगाया जाता है।
- प्याज अग्नि में भूनकर बवासीर और सूजन पर लगाने से लाभ होता है।
- अधिक उष्णता के कारण सिरदर्द होने पर या नाक से खून आने पर प्याज काटकर सिर पर रखने से फायदा होता है।
- तीव्र ज्वर में हथेलियों और पांवों के तलवों पर प्याज का रस लगाया जाता है। प्याज के रस में भिगोया वस्त्र माथे पर रखने से ज्वर कम होता है और ज्वर के कारण दिमाग पर होने वाले दुष्परिणामों से बचाव होता है।
- प्याज काटकर सूँघने से चक्कर कम होकर व्यक्ति मूर्छा से बाहर आता है।
- प्याज के रस में पिसी हुई राई मिलाकर मालिश करने से दर्द, संधिवात, मरोड़ में लाभ होता है।
- प्याज में नीम्बू का रस निचोड़कर सेवन करने से अजीर्ण, मंदाग्नि ठीक होते हैं।
- शरीर के किसी अंग पर मवाद होने पर उस जगह पिसा हुआ प्याज, तेल में भूनकर पुल्टिस के रूप में लगाने से मवाद शीघ्र बाहर निकलता है और वेदना से राहत मिलती है।
कृपया ध्यान रखें- पाचन में भारी और पित्तकारक होने से प्याज का उपयोग सीमित मात्रा में ही करना चाहिए। प्याज अधिक मात्रा में सेवन करने से वामक और विरेचक होता है। अत्यधिक मात्रा में सेवन करने से बेचैनी, पेशाब में खून, पेशाब करते वक्त दर्द, आँतों में दाह आदि तकलीफ उत्पन्न हो सकती है। - डॉ. बालाजी ताम्बे
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