बिना कड़ी भूख लगे भोजन न करें। भोजन उतना ही करें कि पेट को बोझ महसूस न हो। कहावत भी है- आधा भोजन, दोगुना पानी, तिगुना श्रम, चौगुनी मुस्कान।
भोजन करते समय चित्त में प्रसन्नता हो। इस समय बातें बिल्कुल न करें। चिन्ता, क्रोध, ईष्या, द्वेष, घृणा, भय आदि मानसिक उद्वेग के समय भोजन न करें, तो अच्छा है। क्योंकि उस समय किया गया भोजन ठीक से नहीं पचेगा और रोग पैदा करेगा। भोजन को भगवान का प्रसाद मानकर प्रत्येक ग्रास को अमृत-तुल्य और स्वास्थ्यवर्द्धक मानकर ग्रहण करें।
अनाज को चक्की में अधिक महीन पीसने से तथा तलने-भुनने से उसके स्वाभाविक गुण, आवश्यक खनिज लवण, विटामिन्स नष्ट हो जाते हैं। अतः स्मरण रहे कि मोटे आटे (चोकर युक्त) की रोटी ही खाएं। भोजन को भाप में पकाकर, कम मसालों का प्रयोग करें। घी, तेल, पचने में भारी होते हैं। अतः दूध, दही, अंकुरित अनाज आदि से इसकी पूर्ति कर लेनी चाहिए। अंकुरित अनाज चना, मूँग, मूँगफली, गेहूँ तथा नारियल आदि में पर्याप्त पोषक तत्व हैं। अंकुरित अन्न में पोषक शक्ति कई गुना बढ़ जाती है। नित्य प्रातः पचास ग्राम अंकुरित अन्न खूब चबा-चबाकर सेवन करना चाहिए।
सप्ताह में एक दिन पेट को छुट्टी देने के लिए उपवास की आदत डालनी चाहिए। जब सभी कर्मचारियों को नई स्फूर्ति अर्जित करने के लिए साप्ताहिक अवकाश मिलता है, तो पेट को छुट्टी क्यों न मिले? वास्तविक उपवास वह है जिसमें जल की कुछ मात्रा बढ़ाकर उसमें नीम्बू डालकर पिया जाता है। यह न बन पड़े तो दूध, छाछ, फलों का रस लेकर काम चलाना चाहिए। पूरे दिन जिन्हें भूखे रहना कठिन हो, वे एक समय शाम को तो उपवास कर ही लें। उपवास से पाचन शक्ति बढ़ती है तथा शरीर-शोधन में बड़ा सहयोग मिलता है।
खाद्य पदार्थों को सीलन, सड़ने वाले स्थानों एवं बदबू वाले पात्रों में नहीं रखना चाहिए। चूहे, घुन, कीड़े आदि उन्हें जहरीला न बना सकें, इसलिए सभी खाद्य पदार्थ ढककर रखने चाहिएं। समय-समय पर धूप में सुखाते रहना चाहिए। पकाने एवं खाने के उपकरण साफ-सुथरे रखने चाहिएं, जिससे उनमें विषाक्तता उत्पन्न न हो।
सभी प्रकार के नशे हानिकारक हैं। उनमें से किसी का भी व्यसन नहीं करना चाहिए। क्षणिक उत्तेजना के लिए शारीरिक, मानसिक स्वास्थ्य चौपट करने, अकाल मृत्यु तथा सर्वत्र निन्दित होने एवं परिवार को अस्त-व्यस्त करने वाली इस बुराई से हर किसी को बचना चाहिए। जिन्हें यह लत लगी हो, उन्हें छुड़ाने का प्रयत्न करना चाहिए।
सड़े-गले शाक-सब्जी, फल, मिठाई आदि को खाते रहना बुरी बात है। स्वाद, नाम या मूल्य के आधार पर नहीं, बल्कि खाद्य पदार्थों के सुपाच्य और ताजे होने को मुख्यता दी जानी चाहिए। सड़े अंगूरों की तुलना में ताजे टमाटर हजार गुने अच्छे हैं। आवश्यक नहीं कि कीमती मेवा, फल या टानिकों पर धन पानी की तरह बहाया जाए और पहलवान बनने का सपना देखा जाए। जिनके पास उतना धन नहीं है, वे अंकुरित अन्न से भी बादाम जैसा पोषण पा सकते हैं। गाजर में उच्चकोटि का विटामिन ‘ए’ है। गाजर का रस नित्य पीने से रक्त की शुद्धि होती है। गाजर का रस स्वयं ही एक टॉनिक है। आँवला, नीम्बू, केला, अमरूद, सेब, सन्तरा, मौसम्मी जैसे मौसमी फल, कीमती टॉनिकों से बढ़कर हैं।
चबा-चबाकर खाने से, कम खाकर भी अधिक तृप्ति मिलती है। मोटापा नियन्त्रित करने के लिए चबा-चबाकर धीरे-धीरे भोजन करना चाहिए। चबाने से खून में सेरीटोनिन नामक हार्मोन की मात्रा बढ़ जाती है, जिससे अनिंद्रा, तनाव, मानसिक अवसाद, सिरदर्द आदि रोग दूर हो जाते हैं।
भोजन को ठीक तरह चबाने से आँतों की क्रिया और पचन ठीक होता है। फलस्वरूप डायबिटीज (शुगर), संधिवात, गठिया इत्यादि रोग स्वतः ही ठीक होते हैं। हाइपर-एसिडिटी (अति अम्लता) तथा भूख न लगने की शिकायत दूर हो जाती है।
भोजन के साथ पानी पीने की आदत ठीक नहीं है। भोजन करने के एक घण्टे पूर्व पानी न पीएं तथा भोजन करने के डेढ़ घण्टे बाद पानी खूब मात्रा में पानी पिएं। भोजन को ठीक तरह चबाने पर लार (सलाइवा) के अच्छी तरह मिल जाने से पानी की आवश्यकता नहीं रह जाती है। यदि आवश्यकता नहीं रह जाती है। यदि आवश्यक हो तो 50-100 ग्राम जल पिया जा सकता है।
सुबह उठकर दो गिलास पानी पीना आँतों की शुद्धि के लिए हितकारक है। दोनों भोजन (सुबह-शाम) के बीच के समय में पर्याप्त पानी पीते रहें। नित्य 2.5 से 3.5 लीटर पानी पीना चाहिए। एक साथ अधिक मात्रा में पानी न पीकर हर घण्टे, आधे घण्टे बाद घूंट-घूंट पानी पीना बेहतर है।
शीतल पेय, फाष्ट-फूट, ब्रेड, बिस्किट, पूड़ी, केक, कचौरी, रंग-बिरंगी मिठाइयाँ, टॉफी, आइस्क्रीम, चाय आदि स्वास्थ्य के लिए अहितकर हैं। मैदा-खाद्य आँतों से चिपककर कब्ज पैदा करती है तथा डिब्बानन्द खाद्य पदार्थ में उनके संरक्षण के लिए कीटनाशक (जहरीले रसायन) मिलाए जाते हैं जो आँतें, गठिया, यकृत, फेफड़े आदि के रोग पैदा करते हैं।
स्वस्थ रहने के लिए हमारे खून का मिश्रण 80 प्रतिशत क्षारीय एवं 20 प्रतिशत अम्लीय होना चाहिए। अतः क्षारीय खाद्य पदार्थ अधिक सेवन करना चाहिए। क्षारीय खाद्य पदार्थ व अम्लीय खाद्य की संक्षिप्त सूची इस प्रकार है-
हानिकारक अम्लीय खाद्य- चीनी, कृत्रिम नमक, मैदा, पॉलिश हुआ चावल व दाल, बेसन, अचार, ब्रेड, बिस्किट, केक, डिब्बाबन्द खाद्य पदार्थ, माँस, मिठाइयाँ, तेल, घी आदि।
स्वास्थ्य क्षारीय खाद्य- गुड़, शहद, ताजा दूध, दही, ताजे सभी फल (जो स्वतः पककर मीठे होते हैं), सभी हरी सब्जियाँ, उबला या भुना आलू, चोकर युक्त आटा, छिलका सहित दाल, अंकुरित अन्न, मक्खन, कच्चा नारियल, किशमिश, मुनक्का, छुआरा, अंजीर आदि।
उपरोक्त खाद्य पचकर खून को अम्लीय या क्षारीय बनाने वाले हैं। नीम्बू अम्लीय है, परन्तु पचकर क्षारीय हो जाता है। अतः नीम्बू, सन्तरा, मौसम्मी, अनन्नास आदि क्षारीय की श्रेणी में रखे गए हैं। नीम्बू को भोजन के साथ नहीं, प्रातः पानी के साथ पीना अधिक लाभप्रद है। भोजन में कार्बोहाईड्रेट होता है। नीम्बू डालने से खटास के कारण अन्न के पाचन में कठिनाई आती है, क्योंकि कार्बोहाइड्रेट (गेहूँ, चावल, आलू) आदि का पाचन क्षारीय माध्यम से होता है। भोजन के दो घण्टे बाद या दो घण्टे पहले नीम्बू को पानी के साथ पी सकते है। नीम्बू कई रोगों से बचाता है। विटामिन ‘सी’ की पूर्ति करता है। रक्त को साफ रखता है। जीवनशक्ति और रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है।
भोजन के साथ ताजी चटनी, टमाटर, पालक, पोदीना, आँवला, नारियल आदि भी ले सकते हैं। परन्तु अचारों से परहेज रखना ही हितकर है।
खाद्य सम्बन्धी इन मामूली सी बातों का ध्यान रखकर, इस दुर्लभ मानव शरीर को स्वस्थ रखने का दायित्व हम सबका है। कहा भी कहा है- शरीरमाद्यं खलु धर्मसाधनम् अर्थात् शरीर को स्वस्थ रखना हमारा प्रथम कर्त्तव्य है। - डॉ. मनोहरदास अग्रावत
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