इलायची जो संपूर्ण औषधि है, हमारी शान-ओ-शौकत का भी है। इलायची जहां दूसरों को पेश करने का अजीबो-गरीब तोहफा है, वहीँ मुंह की दुर्गन्ध दूर करने की महौषधि भी है। इलायची भारत में उगाए जाने वाले पौधे से प्राप्त होती है। उसकी सबसे जायदा पैदावार तमिलनाडु, केरल और कर्णाटक में होती है। इसकी पैदावार के लिए ढलवां और नमीयुक्त भूमि सर्वोत्तम होती है। इलायची अपनी अत्यधिक सुगंध एवं विशिष्ट स्वाद के कारण विश्वविख्यात है। इसी कारण इसका विदेशों में बहुतयात से निर्यात होता है। यह जहां विभिन्न व्यंजनों में प्रयोग होती है, वही असंख्य रोगों की रामबाण दवा भी है इलायची को भारत के विभिन्न क्षेत्रों में विभिन्न नामों से पुकारा जाता है। इसे वनस्पति शास्त्र में 'कार्डिमम' नाम दिया गया है। बांग्ला में इसे ' छोटी इलायची' संस्कृत में 'एला' और गुजरती में 'एलर्जी' कहते हैं। इसे मान-प्रतिष्ठा का सूचक भी कहा गया है। इसके संबंध में लोकोक्ति चरितार्थ है कि 'मान-सम्मान हेतु सिर्फ एक इलायची ही पर्याप्त है।' जहां भोजन के बाद सौंफ या मिश्री पेश की जाती है वहीँ इलायची भी दी जाती है। इलायची के आभाव में सौंफ और मिश्री दोनों ही अधूरे लगते हैं। लेकिन सौंफ और मिश्री बिना इलायची अकेले ही रंग जमाने में समक्ष है। इलायची को कुछ लोग मुंह की खुश्की दूर करने के लिए भी खाते हैं। पान में इसका सर्वाधिक प्रयोग होता है।
इलायची जहां खीर, चाय, आइसक्रीम और अन्य व्यंजनों में भरपूर स्वाद के लिए इस्तेमाल की जाती है, वहीँ अनेक रोगों की चिकित्सा में भी यह सहायक है। घी, तेल से बना खाद्य पदार्थों के अधिक सेवन से बदहजमी होने के समय इलायची का प्रयोग लाभप्रद होता है। मोटापा कम करने के लिए भी इलायची का सेवन किया जाता है। पीलिया जैसे भयंकर रोग में भी इसका रस पीना रामबाण सिद्ध हुआ है। इलायची की तासीर ठंडी होने के कारण यह बवासीर रोग हेतु फायदेमंद होती है। कब्ज, पित्त, कफ जैसे विशिष्ट रोगों की चिकित्सा में भी इलायची लाभदायक है।
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