विशेष :

सूर्य का अनुवर्तन

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ओ3म् सूर्यस्यावृतमन्वावर्ते दक्षिणामन्वावृतम्।
सा मे द्रविणं यच्छतु सा मे ब्राह्मणवर्चसम्॥ अथर्ववेद 10.5.37

शब्दार्थ- मैं (सूर्यस्य) सूर्य के (आवृतम् अनु) नियम, रीति, व्रत पर (आवर्ते) चलूँ, आचरण करूँ। (दक्षिणाम्) वृद्धि के, तेज के (आवृतम्) मार्ग पर (अनु) आचरण करूँ (सा) वह सूर्य के मार्ग पर आचरण-शैली (मे) मुझे (द्रविणम्) बल, धन, सम्पत्ति (यच्छतु) प्रदान करे (सा) वही आचरण (मे) मुझे (ब्राह्मणवर्चसम्) सूर्य-सम तेज प्रदान करे।

भावार्थ-

1. सूर्य के व्रत, नियम अथवा मार्ग क्या है? नियमबद्धता, नियमितता। सूर्य समय पर उदय होता है, समय पर ही अस्त होता है। सूर्य स्वयं पवित्र है, दूसरों को पवित्र करता है। सूर्य तेजस्वी है। सूर्य स्वयं चमकता है, दूसरों को चमकाता है।
2. सूर्य के इन व्रतों को यदि हम अपने जीवन में धारण कर लें, हम भी अपने जीवन को नियमित, पवित्र और तेजस्वी बनाने का प्रयत्न करें, तो हम दक्षता=वृद्धि के मार्ग पर अग्रसर होंगे।
3. सूर्य के मार्ग का अनुसरण करने से हमें शारीरिक बल की, धन-धान्य और ऐश्‍वर्य की प्राप्ति होगी।
4. सूर्य के गुणों को जीवन में धारण करके हम भी सूर्य के समान चमक उठेंगे। हमारे जीवन ओजस्वी और तेजस्वी बनेंगे। जिस प्रकार सूर्य अन्धकार को नष्ट कर देता है, उसी प्रकार हम भी अविद्या-अन्धकार को नष्ट करने में सफल होंगे।
हे मानव ! सूर्य का अनुवर्तन कर, तू भी सूर्य-सम तेजस्वी बन जाएगा। - स्वामी जगदीश्‍वरानन्द सरस्वती

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