विशेष :

संकल्प-शक्ति

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ओ3म् आकूर्ति देवीं सुभगां पुरो दधे चित्तस्य माता सुहवा नो अस्तु।
यामाशामेमि केवली सा मे अस्तु विदेयमेनां मनसि प्रविष्टाम्॥ (अथर्ववेद 19.4.2)

शब्दार्थ- मैं (सुभगाम्) उत्तम सौभाग्यदात्री (देवीम्) दिव्यगुणों से युक्त (आकूतिम्) संकल्प-शक्ति को (पुरः दधे) सम्मुख रखता हूँ (चित्तस्य माता) चित्त की निर्मात्री वह संकल्प शक्ति (नः) हमारे लिए (सुहवा) सुगमता से बुलाने योग्य (अस्तु) हो। (याम्) जिस (आशाम्) कामना को (एमि) करूँ (सा) वह कामना (केवली) पूर्णरूप से (मे अस्तु) मुझे प्राप्त हो। (मनसि) मन में (प्रविष्टाम्) प्रविष्ट हुई (एनान्) इस संकल्प-शक्ति को (विदेयम्) मैं प्राप्त करूँ ।

भावार्थ-

1. किसी भी कार्य की सिद्धि के लिए संकल्प-शक्ति को सबसे आगे रखना चाहिए। बिना संकल्प के सिद्धि असम्भव है ।
2. संकल्प-शक्ति दिव्य गुणों वाली है। इसके द्वारा हम आश्‍चर्यजनक कार्यों को कर सकते हैं।
3. संकल्प-शक्ति ऐश्‍वर्य, श्री और यशरूप भग को देने वाली है।
4. संकल्प-शक्ति चित्त का निर्माण करने वाली है। चित्त की कार्यक्षमता और कुशलता संकल्प-शक्ति पर ही निर्भर है।
5. संकल्प-शक्ति हमारे लिए सहज में ही बुलाने योग्य हो अर्थात् सर्वदा हमारे वश में हो।
6. मन में प्रविष्ट हुई इस संकल्प-शक्ति को प्रत्येक व्यक्ति को प्राप्त करने का प्रयत्न करना चाहिए।। - स्वामी जगदीश्‍वरानन्द सरस्वती

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