ओ3म् अधासु मन्द्रो अरतिर्विभावाव स्यति द्विवर्तनिर्वनेषाट्।
ऊर्ध्वा यच्छ्रेणिर्न शिशुर्दन्मक्षू स्थिरं शेवृधं सूत माता॥ (ऋग्वेद 10.61.20)
शब्दार्थ- (माता सूत) माता (ऐसा पुत्र) उत्पन्न कर (यत्) जो (मन्द्रः) सदा सुप्रसन्न और आनन्दमग्न रहने वाला हो (अरतिः) जो अविषयी हो, भोगी, विलासी और लम्पट न हो (विभावा) जो सूर्य के समान कान्तिमान् और प्रकाशमान् हो (द्विवर्तनिः) जो द्वन्द्वरहित, निर्भय और निडर हो (वनेषाट्) जो जंगल में मंगल करने वाला हो (शिशुः) जो शिशु के समान निष्पाप और क्रीड़ाशील हो (स्थिरम्) जो चट्टान की भाँति सुदृढ़ और स्थिर रहता हो (शेवृधम्) जो सुखों की वृद्धि करने वाला हो (अध) और (ऊर्ध्वा श्रेणिः न) ऊपर ले जाने वाली सीढ़ी के समान (मक्षू) शीघ्र (दन्) उन्नतिशील हो। इन गुणों से युक्त पुत्र (आसु) इन मानवी प्रजाओं में (अवस्यति) अवस्थित रहता है।
भावार्थ- माता को किस प्रकार की सन्तानों को जन्म देना चाहिए, मन्त्र में इसका सुन्दर चित्रण है।
पुत्र निम्नलिखित गुणों से युक्त होना चाहिए-
1. वह सदा प्रसन्न रहने वाला होना चाहिए।
2. वह भोगी और लम्पट न होकर विषय-कामनाओं से रहित होना चाहिए।
3. वह सूर्य के समान दीप्त एवं प्रकाशमान होना चाहिए।
4. वह धीर, वीर, साहसी, पराक्रमी, निर्भय और निडर होना चाहिए।
5. वह जंगल में मंगल करने वाला हो।
6. वह शिशु के समान निष्पाप और क्रीड़ाशील होना चाहिए।
7. वह आपत्तियों और कष्टों में भी चट्टान की भाँति स्थिरता से युक्त हो।
8. वह सुखों की वृद्धि करने वाला होना चाहिए।
9. वह उन्नति करने का इच्छुक होना चाहिए। - स्वामी जगदीश्वरानन्द सरस्वती
Qualities of Son | Rig Veda | Good and Happy | Fugitive | Luxurious and Lame | Kanchanman and Prakashman | Fearless | Innocent and Playful | Rock Solid | Characteristic | Vedic Motivational Speech & Vedas Explained (Introduction to the Vedas, Explanation of Vedas & Vaidik Mantras in Hindi) for Goaljan - Saunda - Rohtas | Newspaper, Vedic Articles & Hindi Magazine Divya Yug in Gobardanga - Saunkh - Saharsa | दिव्ययुग | दिव्य युग