भारतीय समाज उत्सवधर्मी है। रोज कोई न कोई पर्व होता है, मेला लगता है और मेलों में उत्सवप्रिय व्यक्ति का उल्लास सामूहिक रूप में अभिव्यक्त होता है। उल्लास जब उमड़ता है तो वह एकाकी नहीं रहता। वह अपने आसपास के लोगों में बाँटता है। उल्लास एक सुगन्ध है, जो व्याप्ति के साथ बढ़ती जाती है। कदाचित भारतीय समाज इसीलिए जीवन्त और जाग्रत है। भारतवर्ष में पर्वों, उत्सवों, व्रतों की परम्परा अनवरत रूप से चलती रहती है। वह प्रत्येक उल्लास के साथ-साथ कर्मव्रत, तपस्या और उपाकर्म को भी जोड़ लेता है।
श्रावणी का भारतीय समाज में विशेष महत्व है। श्रावणी की पूर्णिमा को ज्ञान की साधना का पर्व माना गया है। यह वह पर्व है जब हम आधिदैविक और आधिभौतिक उत्पातों से बचने के लिए और आध्यात्मिक जागरण के लिए प्रस्तुत होते हैं। आषाढ़ मास की पूर्णिमा को गुरुपर्व और श्रावण मास की पूर्णिमा को रक्षा बन्धन तथा श्रावणी उपाकर्म मनाया जाता है। यह हमारा व्रत परम्परा का क्रम है। श्रावणी एक मास के यज्ञ की पूर्णाहुति है। हम अपने को त्रिविध तापों से बचाने के लिए क्रमशः अपनी आध्यात्मिक शक्ति विकसित करने के लिए गुरु के प्रति अपनी कृतज्ञता व्यक्त करते हैं। फलस्वरूप गुरु श्रावणमास की पूर्णिमा को हमें रक्षासूत्र प्रदान करके आशीर्वाद देता है। यज्ञोपवीत तो पहले ही हो जाता है और देवऋण, पितृऋण और गुरुऋण का संकल्प हो चुकने के बाद गुरु का अभिनन्दन करते हैं और आशीर्वाद के रूप में गुरु शिष्यों को रक्षा कवच के रूप में सूत्र देता है। यह पूरा महीना गुरुसेवा, आश्रम की सेवा, व्रत-नियम में रहने तथा शास्त्राध्ययन करने के लिए है।
हमें केवल तिथि पर्व मनाने से हटकर व्रत पर्व मनाने चाहिएं, हमें उपाकर्म करने चाहिएं।
पत्नी युद्ध में जाते समय पति को रक्षासूत्र बान्धती है, आचार्य शिष्यों को रक्षासूत्र बान्धता है, पुरोहित यजमान को बान्धता है और बहन भाई को बान्धती है।
इस अवसर पर जैसा कि कहा गया है, शास्त्रों के अध्ययन का विधान है। महर्षि दयानन्द सरस्वती ने कहा था- वेद सब सत्य विद्याओं का पुस्तक है, वेद का पढ़ना पढ़ाना और सुनना सुनाना सब आर्यों का परम धर्म है। इस श्रावणी उपाकर्म के अन्तर्गत वेदों के ‘श्रवण’ का भी विशेष महत्व है। इन दिनों सभी को स्वाध्याय करना चाहिए। संस्कृत साहित्य में तो सर्वत्र स्वाध्याय की महिमा गाई गई है। श्रावणी पर्व मनाने की सार्थकता स्वाध्याय में है। सभी के लिए श्रावणी उपाकर्म पर हार्दिक शुभकामनाएँ! - डॉ. धर्मपाल
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