13 अप्रैल बैसाखी का पर्व है। ऐसे बहुत कम पर्व हैं जो निश्चित तिथि पर ही होते हैं। वैसे तो बैसाखी का पर्व सारे भारतवर्ष में मनाया जाता है, किन्तु पंजाब में विशेष हर्षोल्लास से इस पर्व को मनाते हैं। सब व्यक्ति अपनी श्रद्धानुसार मन्दिरों और गुरुद्वारों में पूजा-आराधना करते हैं। कुछ अपने परिवार सहित हवन आदि का आयोजन करते हैं। इस दिन किसान अपने छः-सात मास के कठोर परिश्रम को फूला-फला देखकर हर्ष में मग्न हो जाते हैं तथा नई फसल काटनी आरम्भ करते हैं।
भारत में फिरंगियों का शासन था तथा प्रथम महायुद्ध समाप्त हुआ था। युद्ध के समय में जबकि भारत में भयंकर अकाल पड़ा हुआ था, ब्रिटिश अफसरों ने एक लाख पाउंड एकत्रित करके लन्दन भेजे। हजारों व्यक्ति भूख-प्यास से तड़प-तड़पकर मृत्यु के घाट उतर गये। महामारी ने अपना प्रकोप दिखाया। गरीबों के लिये औषधि आदि का कोई साधन न था। ब्रिटिश शासकों ने भारतीय नेताओं से वायदा किया था कि युद्ध के समाप्त होने पर काफी अधिकार भारतीयों को दिए जाएंगे। किन्तु ऐसा न करके उन्होंने रोलट बिल पास कर दिया, जिसका अर्थ था कि जिसको चाहें वे कारागार में डाल दें, जैसी उनकी इच्छा हो उसे दण्ड दें। उसके लिये कोई सुनाई नहीं कोई दलील नहीं। भारतीय नेताओं ने अपने त्यागपत्र उस समय की लोकसभा से दे दिये।
पंजाब में सैनिक शासन था। वहाँ पर जनरल डायर राज्यपाल था। वह बहुत ही क्रूर था। इसी बैशाखी के दिन व्यक्तियों का तांता गुरुद्वारों में और मन्दिरों में लगा तथा हर्षोल्लास से सबने इस पर्व को मनाया। पूजा अराधना की तथा सायंकाल को जलियाँवाला बाग में एक सभा का आयोजन किया गया। इसमें रोलट बिल के विरुद्ध आवाज उठाने का निश्चय किया गया। वहाँ पर पंजाब केसरी लाला लाजपतराय, डाक्टर किचलू, डाक्टर सतपाल महाशय तथा रत्नचन्द्र और अन्य मान्यगण एकत्रित हुये। लालाजी भाषण दे रहे थे। उसी समय जनरल डायर सेना के साथ तोप, बन्दूक, गोली आदि लेकर वहाँ पहुंच गया। बाग में एक ही दरवाजा है। उसे बन्द कर दिया गया, ताकि कोई भी वहाँ से बाहर न जा सके। वहाँ पहुंचते ही सेना को गोलियाँ तथा तोप चलाने की आज्ञा दी। देखते ही देखते क्षण भर में सहस्रों व्यक्ति धराशाही हो गये। जो दीवार फांदकर निकलना चाहते थे, उनके शरीर भी दीवार से लटकने लगे। क्रूर राक्षस डायर को इतना अत्याचार करने पर भी सन्तोष नहीं हुआ, उसने लोगों को गलियों में पेट के बल रेंंगने की आज्ञा दी तथा कहा कि भारतीय झुककर एक दूसरे का स्वागत करते हैं। इनको इसी प्रकार रेंगना चाहिए। फिरंगियों के अत्याचारों का इस छोटे से लेख में वर्णन करना कठिन है। वह व्यक्ति को वृक्ष से बान्धकर नीचे आग लगाकर व्यक्ति को तड़पते हुये देखकर प्रसन्न होते थे। इस हत्याकाण्ड से सारे देश में हाहाकार मच गया। कोई भी नेता पंजाब में जा नहीं सकता था। महामना पंडित मदनमोहन मालवीय तथा पंडित जवाहरलाल जी जो पंजाब जा रहे थे, रास्ते में बन्दी बनाकर नाभा जेल में बन्द कर दिये गये। उस समय हर बच्चे की वाणी में थे ये बोल-
चलने लगी जब के वही डायर की गोलियाँ।
छलनी हुई थी दिवारी वोह अब तक निशान हैं।
मारे गये थे बहुत से बच्चे आवेग में।
हाथों में जिनके नाही तीरो कमान हैं।
इस हत्याकाण्ड में सहस्रों बच्चे अनाथ हो गये। सहस्रों नारियों के मांग का सिन्दूर पोंछ दिया गया। जब अंग्रेजों ने देखा कि जनता बहुत क्रुद्ध है तब उन्होंने कहा कि डायर के विरुद्ध कार्यवाही करेंगे तथा उसे दण्ड देंगे। पूछताछ करने पर उन्होंने कहा कि केवल चार सौ के लगभग व्यक्ति मारे मारे गये हैं। वास्तव में यह आंकड़े बिल्कुल गलत थे। डायर इंग्लैण्ड वापिस चला गया। उसको दण्ड देने की अपेक्षा सर की उपाधि से विभूषित किया गया। उधमसिंह सन् 1919 में एक छोटा सा अनाथ बालक केवल सात या आठ वर्ष का था। उसने प्रण किया कि इसका बदला अवश्य लूंगा। न जाने किस प्रकार कितनी कठिनाइयों से वह लन्दन पहुंचा। सन् 1940 में डायर को मारकर अपना प्रण पूरा किया। उसे उसी समय बन्दी बना लिया गया। बिना केस चलाये उसे फांसी के फन्दे पर लटका दिया गया। किसी ने भी ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध आवाज नहीं उठाई। भारत तो अभी अंग्रेज के पंजे में जकड़ा हुआ था, उसने भी कोई आवाज नहीं उठाई तथा उसकी आवाज की कोई कीमत भी न थी। हमें स्वतन्त्रता बहुत कठिनाइयों से प्राप्त हुई। हजारों महान् व्यक्तियों ने भारत माँ को स्वतन्त्र करवाने के लिये कठिन से कठिन यातनाएँ सहीं। सहस्रों व्यक्तियों ने हंसते-हंसते सीने पर गोलियां खाईं। कितने ही माँ के लालों ने फांसी के फन्दे को हंसते-हंसते चूमा। वह सब अमर हो गये तथा देशवासियों के लिये स्वतन्त्रता का सूर्य उदय कर गये। किन्तु शोक आज हम अपनी सभ्यता को तिलांजलि देने जा रहे हैं। हमारी प्राचीन सभ्यता की तुलना संसार में कोई कर नहीं सकता। जिस स्वतन्त्रता को इतनी कठिनाइयों से प्राप्त किया है उसी को हम भाषा तथा सम्प्रदायों के नाम पर मिटाने को उतारू हो रहे हैं। ब्रिटिश सरकार जाते-जाते देश को खण्डित कर गई। आज वही अलगाव तथा वैमनस्य पैदा हो रहा है। ब्रिटिश सरकार ने स्वतन्त्रता प्रेमियों को किस प्रकार तड़पा-तड़पा कर मारा तथा देशवासियों पर कितने अत्याचार किये, आज हम उन्हीं की सभ्यता और वेशभूषा को अपनाने में गौरव समझते हैं। क्या एक स्वतन्त्र देश के वासियों के लिये यह उपयुक्त है?
सारे भारत देश में हमें सब झगड़ों को छोड़कर एकजुट होकर देश तथा देशवासियों की सेवा का प्रण लेना चाहिये, ताकि हम विश्व को दिखा सकें कि भारतवासियों में देश तथा अपने बहन-भाइयों के प्रति, अपने समाज के प्रति कितना प्रेम, कितनी लग्न है तथा यह संकल्प करना चाहिए कि कठिनाइयों से प्राप्त हुई स्वतन्त्रता पर आंच नहीं आने देंगे। - सरला कपिला
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