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शान्ति के बिना कैसा प्रकाश?

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दीपावली। प्रकाश का पर्व। उल्लास और उत्साह का पर्व। शान्ति और समृद्धि का पर्व। प्रतिवर्ष हम देशवासियों के लिए, स्वजनों के लिए यही कामना करते हैं कि उनके जीवन में ज्ञान का प्रकाश आलोकित हो, तिमिर का नाश हो, राष्ट्र के शत्रुओं का समूल विनाश हो। भारत हमेशा एकता और अखण्डता के सूत्र में बन्धा रहे। यहाँ तक कि पूरे विश्‍व में शान्ति की अविरल धारा प्रवाहित होती रहे। वसुधैव कुटुम्बकम् की भावना और प्राणिमात्र के कल्याण की कामना हमारी संस्कृति की युगों-युगों से चली आ रही परम्परा का ही तो हिस्सा है।

...लेकिन आज व्यक्ति के भीतर और बाहर की शान्ति कहीं विलुप्त हो गई है। क्या शान्ति के बिना प्रकाश की कल्पना की जा सकती है? कदापि नहीं। हमारे उत्सव भी हमें यही सन्देश देते हैं। हम सदियों से सुनते-पढ़ते आ रहे हैं कि रावण वध के पश्‍चात् राम के अयोध्या लौटने पर उत्सव मनाया गया था तथा इसके बाद भगवान श्रीकृष्ण द्वारा नरकासुर का वध कर 16000 युवतियों का उद्धार करने के उपलक्ष्य में अगले दिन अर्थात् अमावस्या को प्रकाश पर्व के रूप में मनाया गया था। कालान्तर में यही दिन दीपावली के रूप में मनाया जा रहा है। हम भी उसी परम्परा का निर्वाह कर रहे हैं।

इन दोनों ही घटनाओं में एक मुख्य बात है तो वह है शान्ति। अर्थात् पहले समाज को आतताइयों से मुक्त कर शान्ति की स्थापना की गई। तत्पश्‍चात ही उत्साह, उल्लास और उत्सव का प्रकाश पल्लवित हुआ। हम पर्व तो मनाते हैं, लेकिन उनमें छिपे सन्देश और भाव को भूल जाते हैं।

आज राष्ट्र और समाज में भ्रष्टाचार, आतंकवाद, व्यभिचार रूपी कई रावण और नरकासुर मौजूद हैं। ऐसे में इनका विनाश किए बिना कैसे दीपावली मनाने की कल्पना की जा सकती है। पहले हमें ’दशहरा’ मनाना होगा अर्थात इन दुष्प्रवृत्तियों का विनाश करना होगा, तभी हम शान्ति और समृद्धि रूपी दीपावली का आनन्द उठा सकेंगे।

दीपावली अपने भीतर प्रकाश को और गहरे उतारने का पर्व है। प्रकाश ज्ञान का प्रतीक है। दिव्य ज्योतिस्वरूप महर्षि दयानन्द सरस्वती का बलिदान भी दीपावली के दिन ही हुआ था। महर्षि दयानन्द सरस्वती आजीवन समाज में व्याप्त अन्धकार रूपी अज्ञान को नष्ट करने के लिए संघर्ष करते रहे। इस अवसर पर हमें संकल्प लेना चाहिए कि उनके सन्देशों को जीवन में आत्मसात् कर ज्ञान का प्रकाश फैलाएं और राष्ट्र को बुराइयों से मुक्त करने के लिए प्राणपण से जुट जाएं।
अन्त में महादेवी जी की इनकी पंक्तियों के साथ दिव्ययुग के समस्त पाठकों और सहयोगियों को दीप पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं...
मधुर मधुर मेरे दीपक जल, युग युग प्रतिदिन प्रतिक्षण प्रतिपल, प्रियतम का पथ आलोकित कर । (दिव्ययुग- नवंबर 2012)

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