विशेष :

भारतीय संस्कृति का प्रतीक यज्ञोपवीत

User Rating: 5 / 5

Star ActiveStar ActiveStar ActiveStar ActiveStar Active
 

upanayanam

यज्ञोपवीत भारतीय संस्कृति का प्रतीक है। यह यज्ञ की वेश-भूषा है। यह विद्या का चिह्न है। मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम, योगिराज श्रीकृष्ण, महाराज शिव, ब्रह्मा जी, ब्रह्मवादिनी गार्गी, भगवती सीता सती-साध्वी द्रौपदी आदि सभी नर-नारी यज्ञोपवीत धारण करते थे। यज्ञोपवीत में तीन तार होते हैं। तीनों तारों का सन्देश है- मनुष्य पर तीन ऋण चढ़े हुए हैं- देवऋण, ऋषि-ऋण, पितृ-ऋण। इन तीनों ऋणों से अनृण होना होता है। यज्ञ करो, विद्वानों का सत्कार करो, परमेश्‍वर की उपासना करो। वेद का स्वाध्याय करो, माता-पिता की सेवा करो। इस प्रकार इन ऋणों से अनृण होंगे।

तीन अनादि पदार्थ हैं- ईश्‍वर, जीव, प्रकृति। इन तीनों को जानें। ईश्‍वर का और हमारा क्या सम्बन्ध है? उसे कैसे पाया जा सकता है। मैं कौन हूँ? कहाँ से आया हूँ? मुझे कहाँ जाना है? इन बातों का चिन्तन करें। संसार क्या है? हम इस गोरखधन्धे में कैसे फंस गये? इससे कैसे निकल सकते हैं? इन तत्वों पर चिन्तन और विचार करना।

सत्व, रज, तम (प्रोटोन, इलैक्ट्रोन, न्यूट्रोन) तीन गुण हैं। इन गुणों से ऊपर उठकर त्रिगुणातीत होना है। माता, पिता, आचार्य तीन गुरु हैं। तीनों की सेवा तथा आदर-सम्मान करो। प्रातःसवन, माध्यन्दिनसवन और सायंसवन ये तीन सवन होते हैं। तीनों समय के कार्यों को यथासमय करो। इस प्रकार तीन-तीन के अनेक जोड़े हैं। इन सभी का समावेेश यज्ञोपवीत के तीन तारों में हो जाता है। इसलिए यज्ञ के तीन तारों में सारे विश्‍व का विज्ञान भरा हुआ है। यज्ञोपवीत के एक-एक तार में तीन-तीन तार होते हैं। इस प्रकार कुल तारों की संख्या नौ हो जाती है। नौ तार क्या सन्देश देते हैं? वेद में कहा है-

अष्टाचक्रा नवद्वारा देवानां पूरयोध्या॥ अथर्ववेद 10.2.31

आठ चक्रों और नौ द्वारों वाला अयोध्या नामक एक नगर है। यह नगर है मानवदेह। इसमें आठ चक्र हैंऔर नौ द्वार हैं। नौ द्वार हैं- दो आंख, दो कान, दो नासिका छिद्र, एक मुख ये सात हुए। इनके लिए वेद में कहा है कि हमारे शरीर में सात ऋषि बैठे हुए हैं। इन्हें ऋषि बनाना है। ये ऋषि बन गये तो जीवन का कल्याण हो जाएगा। यदि ये राक्षस बन गये तो जीवन का विनाश हो जाएगा। दो मल और मूत्र के द्वार हैं। इस प्रकार कुल नौ द्वार हैं। यज्ञोपवीत के नौ तार सन्देश देते हैं कि अपनी इन्द्रियों पर एक-एक चौकीदार बैठाओ, जिससे किसी इन्द्रिय से कोई बुराई जीवन में प्रवेश न करे। हम कानों से अच्छा सुनें, आँखों से अच्छा देखें। नासिका से ओ3म का जप करें। (जप नासिका से ही होता है) मुख से अभक्ष्य पदार्थों का सेवन न करें। मल-मूत्र के द्वारों से ब्रह्मचर्य का पालन करें 

यज्ञोपवीत में पांच गांठें होती हैं। पांच गांठों के दो सन्देश हैं- काम, क्रोध, लोभ मोह और मद (अभिमान) ये मनुष्य के पाँच शत्रु हैं। इन पर विजय प्राप्त करें। दूसरा गृहस्थों को प्रतिदिन पाँच यज्ञों का अनुष्ठान करना चाहिए। पाँच यज्ञ ये हैं- ब्रह्मयज्ञ- सन्ध्या और स्वाध्याय। देवयज्ञ-अग्निहोत्र और विद्वानों का मान-सम्मान। पितृयज्ञ- जीवित माता-पिता, दादा-दादी, परदादा आदि का श्राद्ध और तर्पण करना, इनकी सेवा-शुश्रूषा करके इन्हें सदा प्रसन्न रखना और इनका आशीर्वाद प्राप्त करना। बलिवैश्‍वदेवयज्ञ- घर में जो भोजन बने उसमें से खट्टे और नमकीन पदार्थों को छोड़कर रसोई की अग्नि में दस आहूतियाँ देना तथा कौआ, कुत्ता, कीट-पतंग, लूले-लंगड़े, पापरोगी, चाण्डाल को भी अपने भोजन में से भाग देना। अतिथियज्ञ-घर पर आने वाले वेद-शास्त्रों के विद्वान, धार्मिक उपदेशकों का भी आदर-सम्मान करना। इसे बायें कन्धें पर डाला जाता है। यह हृदय से होता हुआ कटि तक पहुंचता है। मनुष्य जन्म से शूद्र होता है। यज्ञोपवीत संस्कार होने पर द्विज बनता है। द्विज बनने पर कर्त्तव्यों का भार वहन करना होता है। मनुष्य में बोझ उठाने की शक्ति कन्धे में होती है, इसलिए इसे कन्धे पर डाला जाता है। यज्ञोपवीत धारण करते हुए कुछ प्रतिज्ञाएं की जाती हैं। इन प्रतिज्ञाओं का हृदय से पालन करना होता है। इसलिए यह हृदय से होता हुआ आता है। अपने कर्त्तव्यों को करने के लिए हम सदा कटिबद्ध रहेंगे, इसलिए यह कटि तक पहुंचता है।

संक्षेप में यह सन्देश है यज्ञोपवीत का। इसे धारण करके उतारे नहीं, घर जाकर खूंटी पर न टांगें । सोपवीती सदा भाव्यम्। सदा यज्ञोपवीतधारी रहना चाहिए। महर्षि दयानन्द के इस कथन को सदा ध्यान में रखें- “विद्या का चिह्न यज्ञोपवीत और शिखा को छोड़ मुसलमान ईसाइयों के सदृश बन बैठना, यह भी व्यर्थ है। जब पतलून आदि वस्त्र पहिनते हों और तमगों आदि की इच्छा करते हों, तो क्या यज्ञोपवीत आदि का कुछ बड़ा भार हो गया था?’’ (सत्यार्थप्रकाश एकादश समुल्लास) - स्वामी जगदीश्‍वरानन्द सरस्वती

यज्ञोपवीत प्रतिज्ञा
मैं प्रतिज्ञा करता हूँ कि अपने जीवन को आदर्श बनाऊंगा। परिवार, समाज, राष्ट्र को ऊंचा उठाने का भरसक प्रयत्न करूंगा। जीवन में अण्डे, मांस, मछली, शराब आदि अभक्ष्य पदार्थों का सेवन नहीं करूंगा। मैं वैदिक धर्म और वैदिक सिद्धान्तों का सदैव पालन करूंगा। मैं जीवन में आगे बढ़ने, ऊपर उठने, निरन्तर कर्मशील रहने तथा सूर्य-चन्द्रमा के समान बनने का संकल्प लेता हूँ।

Lord Ram | Yogiraj Krishna | Shiva | Sanatan | Mandir | Bhartiya Sanskriti | Sanskar | Hindusm | Hindu | Dharm | Yagyopavit Sanskar | Satyarth Prakash | Kartvya |


स्वागत योग्य है नागरिकता संशोधन अधिनियम
Support for CAA & NRC

राष्ट्र कभी धर्म निरपेक्ष नहीं हो सकता - 2

मजहब ही सिखाता है आपस में बैर करना

बलात्कारी को जिन्दा जला दो - धर्मशास्त्रों का विधान