क्रान्तिकारी स्वाधीनता सेनानी पं. रामप्रसाद बिस्मिल से लेकर अमर शहीद सरदार भगतसिंह, सुखदेव, राजगुरु तथा चन्द्रशेखर आजाद तक सभी को स्वातन्त्र्यवीर सावरकर तथा देवतास्वरूप भाई परमानन्द जी ने किसी न किसी रूप में अनुप्राणित अवश्य किया था।
पं. रामप्रसाद बिस्मिल ने तो स्पष्ट लिखा था कि “अंग्रेजों द्वारा भाई परमानन्द जी को फांसी की सजा सुनाए जाने की घटना ने उन्हें हाथ में रिवाल्वर लेकर अंग्रेजों की सत्ता के विरुद्ध सशस्त्र क्रान्ति के लिए प्रेरित किया था।’’
सरदार भगतसिंह तथा सुखदेव जब लाहौर के नेशनल कालेज में पढ़ते थे तब वे जहाँ भाई परमानन्द जी के टिकट सम्पर्क में आने के बाद क्रान्ति पथ के राही बने, वहीं स्वातन्त्र्यवीर सावरकर द्वारा लिखित ‘1857 का प्रथम स्वातन्त्र्य समर’ ग्रन्थ ने उन्हें अत्यधिक प्रभावित किया। उसी ग्रन्थ से प्रेरणा लेकर उन्होंने 1857 की क्रान्ति की तरह देश में सशस्त्र क्रान्ति का बीड़ा उठाया था। सुखदेव के भाई श्री मथुरादास थापर ने कहा था कि भगतसिंह तथा सुखदेव वीर सावरकर तथा भाई परमानन्द जी को अपना महान प्रेरणास्रोत मानकर उनके प्रति अगाध श्रद्धा रखते थे।
देश के जाने-माने राष्ट्रभक्त स्वाधीनता सेनानी तथा काशी विद्यापीठ के शिक्षाविद् श्री राजाराम शास्त्री को लाला लाजपतराय जी ने लाहौर के द्वारकादास पुस्तकालय का प्रबन्धक नियुक्त किया था। सरदार भगतसिंह, सुखदेव आदि क्रान्ति की प्रेरणा देने वाली पुस्तकों की खोज में पुस्तकालय आने लगे थे।
श्री राजाराम शास्त्री के शब्दों में- “जब भगतसिंह ने मेरी मैत्री अधिक बढ़ी और हमने एक दूसरे को भली प्रकार से जान लिया, तब द्वारकादास पुस्तकालय में और मेरे निवास स्थान पर उनका आना-जाना बहुत बढ़ गया। किसी को किसी प्रकार का सन्देह न हो, इससे बचने के लिए मैंने उन्हें पुस्तकालय का सदस्य बना लिया था। मेरा तो काम ही था कि पुस्तकालय में रखी हुई क्रान्तिकारियों की पुस्तकों की जानकारी करूं। हम दोनों ने यह निश्चय किया कि इस पुस्तकालय का अधिक से अधिक उपयोग किया जाये और प्रतिदिन वहाँ आने-जाने वाले युवकों एवं छात्रों को क्रान्तिकारी विचारों से प्रभावित किया जाये।
भगतसिंह ने मुझे यह काम सौंपा था कि पहले मैं अच्छी-अच्छी पुस्तकों का अध्ययन किया करूं और जो भी पुस्तक अच्छी लगे उन्हें भगतसिंह और सुखदेव को पढ़ने को दूं। इसके बाद धीरे-धीरे सावधानी के साथ उन पुस्तकों को कालेजों के छात्रावासों तक पहुंचाने की व्यवस्था की जाये। केवल इतना ही नहीं, कुछ छोटे-छोटे पैम्फलेट भी प्रकाशित किये जायें। इन छोटी-छोटी पुस्तिकाओं के लिखने में प्रिंसिपल श्री छबीलदास जो लोकसेवक मण्डल के आजीवन सदस्य भी थे, से बहुत सहायता मिलती थी। मुझे याद है कि उन्होंने एक पुस्तिका ‘भारत माता के नाम से’ और एक पुस्तक ‘सोशलिज्म क्या है’ शीर्षक से लिखी थी। उन्हें प्रकाशित भी किया गया था। प्रिंस क्रोपाटकिन का लेख ’नवयुवकों से अपील’ (ऐन अपील टु दि यंग’ भी प्रकाशित किया गया था और बहुत बड़ी संख्या में इसे युवकों एवं छात्रों में वितरित किया गया था।
प्रथम स्वातन्त्र्य युद्ध का प्रभाव- वीर सारवकर द्वारा लिखित ‘भारत का प्रथम स्वातन्त्र्य संग्राम (फर्स्ट वार ऑफ इण्डियन इण्डिपेंडेंस) पुस्तक ने भगतसिंह को बहुत अधिक प्रभावित किया था। यह पुस्तक सरकार द्वारा जब्त कर ली गई थी। मैंने इस पुस्तक की बहुत प्रशंसा सुनी थी और उसे पढ़ने का बहुत ही इच्छुक था। पता नहीं कहाँ से भगतसिंह को यह पुस्तक प्राप्त हो गई थी। एक दिन उसे वह मेरे पास ले आए। जिससे ली होगी उसे शीघ्र वापिस करनी होगी, इसलिए वह मुझे बहुत कहने पर भी देने को तैयार नहीं हो रहे थे। पर जब मैंने शीघ्र पढ़कर उसे अवश्य लौटा देने का पक्का विश्वास दिलाया, तब उन्होंने वह मुझे केवल 36 घण्टे के लिये पढ़ने को दी। उसको मैं कभी भूल नहीं सकता। मैंने एक समय खाना नहीं खाया और दिन-रात इसे पढ़ता ही रहा। इस पुस्तक ने मुझे बहुत अधिक प्रभावित किया। भगतसिंह के आने पर मैंने पुस्तक की बहुत प्रशंसा की। कुछ समय बाद भगतसिंह ने एक दिन मुझसे कहा कि यदि तुम कुछ परिश्रम करो और सहायता करने के लिए तैयार हो जाओ तो गुप्त रूप से इसे प्रकाशित करने का उपाय सोचा जाये। मैं पूर्ण रूप से सहायता करने को तैयार हो गया।
भगतसिंह ने किसी प्रेस में प्रबन्ध कर लिया। वह प्रतिदिन रात के समय कुछ मैटर मुझे प्रूफ देखने को दे जाते थे। मैं रात में उसे देखकर प्रूफ ठीक करके रख छोड़ता था। दूसरे दिन भगतसिंह उसे ले जाते थे। कुछ दिनों तक बराबर यह क्रम चलता रहा। इस पुस्तक को दो खण्डों में प्रकाशित किया गया। प्रत्येक खण्ड की कीमत आठ आना रखी गई। फिर गुप्त रूप से इसे बेचने का प्रबन्ध हुआ। मुझे याद है कि मैंने इस पुस्तक को सर्वप्रथम राजर्षि श्री पुरुषोत्तम दास टण्डन के हाथ बेचा। इसके प्रकाशन से टण्डन जी बहुत प्रसन्न हुए थे। इसके बेचने में सुखदेव ने बहुत परिश्रम किया था।’’ - शिवकुमार गोयल
Inspiration | Revolutionary | Freedom Fighter | Ramprasad Bismil | Bhagat Singh | Sukhdev | Rajguru | Chandrashekhar Azad | Rajaram Shastri | Lala Lajpat Rai | Divya Yug | Vedic Motivational Speech in Hindi by Vaidik Motivational Speaker Acharya Dr. Sanjay Dev for Bisauli - Padagha - Fazilka | Newspaper, Vedic Articles & Hindi Magazine Divya Yug in Bisharatganj - Padampur - Firozpur | दिव्ययुग | दिव्य युग |