हम भारत के लाल आग पर चलते हैं, बढ़े चलें हम बढ़े चलें।
पर्वत हो या मंझधारा, बिजली हो या तमकारा, थकें नहीं हम रुकें नहीं।
सिहों से खेले आंधी में चलते हैं।
बढ़े चलें हम बढ़े चलें!
बन्दर-घुड़की देता है, समय परीक्षा लेता है,
कदम मिलाकर गाएंगे, दुश्मन दूर भगाएँगे!
खेल-खेल में हम इतिहास बदलते हैं।
बढ़े चलें हम बढ़े चलें!
सत्य-अहिंसा का व्रत है, प्राण देश-रक्षा हित है,
हम छोटे सेनानी हैं, मन में नई रवानी है हुँकारें सुनकर पाषाण पिघलते हैं।
बढ़ें चलें हम बढ़े चलें!
जन्मभूमि के रखवाले, आजादी के मतवाले, माँ की शान बढ़ाएंगे, भाग्य-सूर्य चमकाएँगे।
सिर पर कफन लपेट सदैव निकलते हैं।
बढ़ें चलें हम बढ़े चलें!
धरती को स्वर्ग बनाओ
शूलों के दुर्गम पथ को, फूलों की राह बनाओ।
कर में लेकर दीप सृजन का, तम को दूर हटाओ॥
बाधा का हर पर्वत लांघो, मुश्किल सरल बनाओ।
बंधन की हर बेड़ी काटो, गीत मुक्ति के गाओ॥
प्यासे अभी अधर मिट्टी के, कण-कण अब तक प्यासा।
सूखा पतझड़ लिए खड़ा है, हरियाली की आशा॥
श्रमकण से हर अंकुर सींचो, प्रण की अलख जगाओ।
मेहनत के जादू से इस धरती को स्वर्ग बनाओ॥
चिर-सुख की नव-किरण लिए, रवि अम्बर में मुस्काया।
कदम गढ़ा आगे बढ़ने का, देख नया युग आया॥
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