विशेष :

सप्त सम्पदा

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ओ3म् इन्द्रावरुणा सोमनसमदृप्तं रायस्पोषं यजमानेषु धत्तम्।
प्रजाम्पुष्टिं भूतिमस्मासु धत्तं दीर्घायुत्वाय प्रतिरतं न आयुः॥ ऋग्वेद 8.59.7 ॥

शब्दार्थ- (इन्द्रावरुणा) हे अध्यापक और उपदेशक लोगो! आप (अस्मासु यजमानेषु) हम यज्ञशील जनों में (अदृप्तम्) निरभिमानता, शालीनता (सौमनसम्) सुप्रसन्नता (रायः पोषम्) नैश्‍वर्य की समृद्धि (धत्तम्) धारण कराओ। हम लोगों में (प्रजाम्) सुसन्तान (पुष्टिम्) शारीरिक दृढता (भूतिम) आत्मविभूति (धत्तम्) धारण कराओ। (दीर्घायुत्वाय) चिरजीवन के लिए (नः आयुः) हमारी आयु को (प्रतिरत) बढाओ।

Motivational Speech on Vedas in Hindi by Dr. Sanjay Dev
Ved Katha Pravachan - 76 | Explanation of Vedas | अधिकतर दुःख स्वयं की असावधानी से होते हैं।

भावार्थ- अध्यापक और उपदेशकों को ऐसा प्रयत्न और पुरुषार्थ करना चाहिए, जिससे यज्ञशील लोगों में निम्नलिखित गुणों का विकास हो-
1. मनुष्यों में अभिमान और उद्दण्डता के स्थान पर निरभिमानता और शालीनता का विकास हो।
2. वे सदा सुप्रसन्न रहना सीखें, कष्ट और आपत्तियों में भी हँसते हुए आगे बढते रहें।
3. उनके पास धनैश्‍वर्यों की कमी नहीं होनी चाहिए।
4. उनकी सन्तान सुसन्तान हो, वे देश के सु-नागरिक बनें।
5. उनके शरीर हृष्ट-पुष्ट, नीरोग और दृढ हों।
6. आत्मशक्ति से वे भरपूर हों। वे अध्यात्म-मार्ग का अवलम्बन करने वाले हों।
7. उनकी आयु दीर्घ हो। - स्वामी जगदीश्‍वरानन्द सरस्वती (दिव्ययुग - अक्टूबर 2019)