राष्ट्रीय एकता के सन्दर्भ में आयोजित एक विशाल सभा-मञ्च। मञ्च की पृष्ठभूमि में भारत का बृहत् मानचित्र। मध्य में भारतमाता का चित्र। ऊपर बड़े अक्षरों में अंकित ‘वन्देमातरम्’। मानचित्र के चारों ओर विभिन्न सम्प्रदायों के प्रवर्तकों एवं आचार्यों के साथ नेताजी सुभाषचन्द्र बोस, भगतसिंह, चन्द्रशेखर आजाद आदि के चित्रों पर तेज प्रकाश चमक रहा था। विभिन्न धर्म-सम्प्रदायों के प्रमुख प्रतिनिधि मञ्च पर अपना आसन ग्रहण करते जा रहे थे। मञ्च खचाखच भर चुका था। सभा में बड़ी संख्या में श्रोतागण उपस्थित हो चुके थे। भारी भीड़ आती जा रही थी। मञ्च पर बिराजमान एक प्रतिनिधि ने पास बैठे महानुभाव का ध्यान पृष्ठभूमि पर अंकित चित्र की ओर आकृष्ट करते हुए कुछ कहा। उसने वहाँ लिखे वाक्य को पढ़ा और उसके चेहरे पर क्रोध की रेखाएँ उभर आई। उसने पास बैठे अन्य व्यक्तियों को उठने का संकेत दिया और वे सभी मञ्च छोड़कर चले गए। लोगों को कुछ समझ में नहीं आया।
सभा की कार्यवाही प्रारम्भ करते हुए उद्घोषक से संकेत पाकर कार्यकर्ता उठे और मञ्च पर बिराजमान सभी प्रतिनिधियों को पुष्पमाला पहिनाकर स्वागत किया। इसके पश्चात् संचालक महोदय ने एक धर्म विशेष के प्रतिनिधि को सभा की अध्यक्षता करने हेतु आमन्त्रित किया। जैसे ही प्रस्तावित प्रतिनिधि अध्यक्ष की कुर्सी पर बैठने के लिए उठे, एक अन्य प्रतिनिधि चिल्लाते हुए बोला- “मैं इस प्रस्ताव का विरोध करता हूँ। आयोजक एक धर्म-विशेष को बढ़ावा देना चाहते हैं। इस पद पर किसी धर्मनिरपेक्ष व्यक्ति को आमन्त्रित करना चाहिए था।’’ ऐसा कहकर वह तथा उसके साथी उठकर बाहर निकल गए। इस प्रकार दो धर्मों के प्रतिनिधि सभा छोड़कर मञ्च से चले गए। प्रस्तावित अध्यक्ष महोदय सभा से क्षमा मांगते हुए अपनी जगह पर बैठ गए।
सभा में सन्नाटा छा गया और इस बात की प्रतीक्षा की जाने लगी कि अध्यक्ष किसे बनाया जाता है। थोड़ी सी देर के पश्चात् ही एक प्रतिनिधि उठा और बड़ी गम्भीरता से बोला “भाइयों और बहिनो! आप सभी इस सत्य से तो अच्छी तरह परिचित हैं ही कि यह आयोजन जिस क्षेत्र में हो रहा है, उसकी भाषा क्या है! मेरी इस बात से आप सभी सहमत होंगे कि राष्ट्रीय एकता को समर्पित यह समारोह इस क्षेत्र की भाषा में ही होना चाहिए। इसका कारण यह है कि इस क्षेत्र का साधारण से साधारण व्यक्ति भी वक्ताओं के विचारों को अच्छी प्रकार समझ सके। सभा में उपस्थित श्रोताओं में से अधिकतर उठ खड़े हुए और जोर-जोर से नारे लगाते हुए वक्ता के भाषा-पक्ष का समर्थन करने लगे। बैठे हुए श्रोता-गण सभा छोड़कर जाने लगे।
देखते ही देखते सभागृह में बहुत थोड़े लोग रह गए। उद्घोषक खड़े होकर सभा को नियन्त्रित करने का प्रयास करने लगे। वे बोले- “हमने माननीय मन्त्री महोदय से मुख्य अतिथि के रूप में पधारने का अनुरोध किया है। वे व्यस्त होते हुए भी कुछ विलम्ब से पधार रहे हैं। तब तक आप शान्ति बनाए रखिए। फिलहाल कार्यक्रम राष्ट्रभाषा में ही होना सम्भव है, क्योंकि प्रतिनिधियों में अधिकतर महानुभाव स्थानीय भाषा से परिचित नहीं है। श्रोताओं ने हाथ उठा-उठाकर इस बात का विरोध किया और नारे लगाते हुए बाहर निकल गए। उद्घोषक बड़े उदास भाव से बोलने लगे- “राष्ट्रीय एकता के सन्दर्भ में आयोजित यह सभा स्थगित की जाती है। इस स्थिति को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि लोगों को राष्ट्रीय एकता की कोई आवश्यकता नहीं है। आज का दृश्य इस कटुसत्य का प्रतीक है।’’ - प्रा. जगदीश दुर्गेश जोशी
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