विशेष :

समरसता का सूचक होली

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Holi 385

विश्‍व का प्रत्येक प्राणी सुख-शान्ति की आकांक्षा रखता है, जिसकी प्रात्यर्थ वह नानाविध प्रयत्न करता रहता है। पर्वों का प्रादुर्भाव व अनुष्ठान इस दिशा में किए जाने वाले प्रयास का यथार्थ विधान है। षड् ऋतुओं से युक्त भारतवर्ष की विशेषता है कि समय-समय पर इसकी वसुन्धरा शृंगार करती है। नूतन रस में संचरण करती रहती है। संसार का यही एकमात्र देश है, जहाँ विभिन्न प्रकार का जलवायु, वनस्पति, वातावरण और भूमि उपलब्ध है। सृष्टिकर्ता ने भारत की भूमि को विभिन्न रूपों से पूर्णतः भरा है। इस महिमामण्डित देश की विशिष्टता का जयनाद कवि के शब्दों में मुखरित हुआ है-
भूलोक का गौरव, प्रकृति का पुण्यलीला स्थल कहाँ? फैला मनोहर गिरि हिमालय, और गंगाजल कहाँ? सम्पूर्ण देशों से अधिक, किस देश का उत्कर्ष है? उसका कि जो ऋषि-भूमि है, वह कौन? भारतवर्ष है।(भारत-भारती)
प्रमुख सार्वभौम चार पर्वों में फाल्गुन पूर्णिमा को मनाई जाने वाली भारतवर्ष की प्रकृति की ओर इंगित करती वासन्ती नवशस्येष्टि होली का महत्वपूर्ण स्थान है। इस शुभावसर पर प्रकृति कहती है कि देखो ! पतझड़ समाप्त हुआ, अब वसन्त का साम्राज्य छा रहा है। जैसे प्रकृतिस्थ सम्पूर्ण पेड़-पौधे नवीन जीवन प्राप्त करके विशेष शक्ति व स्फूर्ति का अनुभव करते हैं, वैसे मनुष्य भी हर्षोत्फुल्ल हो उठता है। ऋतुराज वसन्त के शुभागमन के मनोहर सुसमय में आषाढ़ी फसल के स्वागत की शुभाशा भारत के अन्नदाता कृषक-जन के मन में आनन्द का संचार कर देती है। आषाढ़ी की फसल भारत की सब फसलों में सर्वश्रेष्ठ मानी जाती है। इस दिन नई आई फसल को सर्वप्रथम अग्निदेव को अर्पित किया जाता है। संस्कृत-कोश में अधपके अन्न को होलक की संज्ञा दी गई है- तृणाग्निभृष्टार्द्धपक्वशमीधान्यं होलकः। (शब्दकल्पदु्रम्)
देवयज्ञ का प्रधान साधन भौतिक अग्नि है। क्योंकि वह सब देवों का दूत है। इसी कारण वैदिक कर्मकाण्ड के अनुसार नवीन वस्तु को प्रथम देवों के लिए समर्पित कर पुनः अपने उपयोग में लाया जाता है। यथा- व्रीहयश्‍च मे यवाश्‍च मे माषाश्‍च मे तिलाश्‍च मे मुद्गाश्‍च मे खल्वाश्‍च मे प्रियङ्गवश्‍च मेऽणवश्‍च मे श्यामाकाश्‍च मे नीवाराश्‍च मे गोधूमाश्‍च मे मसूराश्‍च मे यज्ञेन कल्पन्ताम्॥(यजुर्वेद18-12)
अर्थात् मनुष्यों को चाहिए कि चावल, जौ, उड़द, तिल, मूंग, गेहूँ और मसूर आदि से अच्छे प्रकार संस्कार किए हुए पक्वान्न बनाकर अग्नि में होम करें। तत्पश्‍चात् स्वयं खाएं और अन्यों को खिलाएँ।
श्रुति कहती है- केवलाघो भवति केवलादी। अकेला खानेवाला पाप खाने वाला है।
मनु महाराज इसका समर्थन करते हुए कहते हैं- “जो मनुष्य केवल अपने लिए भोजन पकाता है, वह पापभक्षण करता है। यज्ञशेष ही सज्जनों का भोज्य पदार्थ है।’’
इस प्रकार प्रकृति-क्रम के अनुकूल आचरण एवं नवशस्येष्टि यज्ञ कर देवताओं तक उनका भाग पहुँचाते हुए उनके प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करना इस पर्व की विशेषताएँ हैं।
भारतीय उत्सव ही केवल आमोद-प्रमोद के साधन नहीं, अपितु धर्मपरायण भारतीयों की प्रत्येक बात में वैज्ञानिकता की पुट लगी हुई है। यथा, होली के दिन रंग गुलाल लगाने की प्रथा का वैज्ञानिक गूढरहस्य हो सकता है। इस ऋतु में ढाक तथा कुसुम्ब के फूलों का रंग डालने से प्लेग के उत्पादक कीड़े नहीं काटेंगे, मच्छर दूर रहेंगे, चेचक का प्रकोप कम होगा। पुष्प-पत्तों का रस मलने से रक्त-विकार का भय दूर हो जाता है। लेकिन अब बहुत ही भ्रष्ट ढंग से तैयार किए हुए रंग मिलते हैं, जिन्हें लगाना अत्यन्त हानिकारक है। साथ ही शराब आदि मादक द्रव्यों का पान कर मदान्ध हो नाचना-गाना तथा अपशब्दों का प्रयोग करना हमारी संस्कृति पर कुठाराघात करना है ।
इस शुभ पर्व पर सब लोग ऊँच-नीच का विचार छोड़कर स्वच्छ हृदय से आपस में मिलते रहें, तो होलिकोत्सव को भारत की एकता को सबल सूत्र में बांधे रखने का श्रेय प्राप्त होता है। जहाँ हमारे देश में वेशभूषा, स्थानीय रीति-रिवाज, अनेक बोलियों और खान-पान की दृष्टि से विविधता झलकती है, वहाँ हमारी संस्कृति ने सदैव विविधता में एकता का आभास कराया है। होली के दिन राजा-रंक, स्वामी-सेवक, अमीर-गरीब का भेदभाव रंग-अबीर की बहारों में तिरोहित हो जाता है।
भक्तशिरोमणि प्रह्लाद व दैत्यराज हिरण्यकशिपु की कथा से हमें शिक्षा मिलती है कि सत्य की ज्योति के समक्ष असत्य का समस्त कुचक्र भस्मसात् हो जाता है। होलिका राक्षसी का दहन मानो सारी बुराइयों को मिटाने का संदेश देता है।
इस प्रकार समता और बन्धुत्व के भावों को अपनी जीवन-विधा का शाश्‍वत स्वर बनाते हुए हमें कामना करनी चाहिए कि प्रतिवर्ष इसी तरह प्रेम-प्रसार का पर्व, समरसता का सूचक होलिकोत्सव आता रहे और हम सब द्विगुणित उत्साह, उल्लास एवं उमंग से भरपूर हो यह पर्व मनाते रहें, आनन्दित होते रहें।• - डॉ. मुक्तावाणी शास्त्रीHoli | Bharat | Sanskrati | Rang | Jeevan | Parv | Prahlad | Culture | Social | Behavior | Hindu | Festival | Celebrate | Colours |