हिन्दू धर्मशास्त्रों में बलात्कार करने वाले पापी मनुष्यों को जीवित जला दिए जाने का विधान किया गया है।
नारी जाति के महान उद्धारक, महिलाओं को शिक्षा का अधिकार दिलाने वाले महान समाज सुधारक महर्षि दयानन्द सरस्वती ने अपने कालजयी ग्रन्थ सत्यार्थप्रकाश में मनुस्मृति का सन्दर्भ देते हुए लिखा है कि लोहे के पलंग को आग से तपाकर लाल करके बलात्कारी पापी को उस पर सुलाकर बहुत पुरुषों के सामने भस्म कर देवें। देखें - सत्यार्थप्रकाश छठा समुल्लास।
महर्षि इसी प्रकरण में यह लिखते हैं कि जो इसको कठोर दण्ड समझते हैं, वे राजनीति को नहीं समझते। क्योंकि एक पुरुष को इस प्रकार दण्ड होने से सब लोग बुरे काम करने से अलग रहेंगे और बुरे काम को छोड़कर धर्म मार्ग में स्थित रहेंगे। यदि सरल दंड दिया जाए, तो दुष्ट काम बहुत बढ़कर होने लगें।
महर्षि दयानंद सरस्वती ने यह भी लिखा है कि धर्म और ऐश्वर्य की इच्छा करने वाला राजा (शासक) बलात्कार के काम करने वालों को दण्ड देने में एक क्षण भी देर न करे।
यह व्यवहार सिद्ध है कि कठोर दण्ड और तुरन्त दण्ड के बिना जनता को अनुशासित करना अति कठिन है।
देश के प्रत्येक नागरिक और राजनेता को सत्यार्थप्रकाश अवश्य पढ़ना चाहिए तथा राजनेताओं को तो सत्यार्थप्रकाश के छठे समुल्लास का प्रतिदिन पाठ करना चाहिए, ताकि वे देश में सच्ची राजनीति कर सकें।