विशेष :

सफल प्रबन्धक के गुण

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स्वास्थ्य के प्रति सजगता - एक इंसान दुनिया में चाहे जितना धन कमा सकता है, लेकिन अगर वह अपनी सेहत और परिवार खो देता है तो उसके द्वारा कमाया गया धन, किस काबिल है ? आज पुरे संसार में धन के प्रति जो लिप्सा जागृत हो गई है, उसकी वजह से अधिकांश लोग केवल अधिक धन कमाने के लिए ही अपना कार्य कर रहे हैं। वे हर कीमत पर अधिक से अधिक धन कमान चाहते हैं। चाहे इसके लिए उन्हें कितनी भी कीमत चुकानी पड़े, लेकिन वह उचित नहीं है। मनुष्य अपनी जिन्दगी में जो कुछ भी अर्जित करता है, यदि वह शारीरिक रूप से उसका उपभोग करें की स्थिति में नहीं रह पाता तो उसेक इस अर्जन का भी कोई महत्त्व नहीं है। ऐसे अनेक लोग हैं, जिन्होंने धन के चक्कर में अपनी सेहत गँवा दी और बाद में उस अर्जित धन से अपनी गँवाई एक चीज भी प्राप्त नहीं कर सके। हम चाहे किसी भी क्षेत्र में कार्य करें, लेकिन हमें अपने स्वास्थ के प्रति हमेशा सजग रहना चाहिए।

सही पृष्ठभूमि बनाना - यह आवश्यक है कि आप स्थिति का सही विशेलषण करके, उसके संदर्भ में सही पृष्ठभूमि बनायें। हम हम जो भी महत्वपूर्ण निर्णय करने जा रहे हैं, यदि उनके संदर्भ में हमें पृष्ठभूमि की सही जानकारी नहीं है तो हमारे कार्य करने की दिशा गलत गलत हो सकती है। गाँधीजी ने अपनी बात को कहने से पहले उसे तर्क की कसौटी पर कसकर अपने अनुभव के आधार पर पुष्ट किया, उसके बाद उसे सही पृष्ठभूमि में प्रस्तुत किया। उन्होनें अंग्रेज सरकार की आलोचना करते हुए भी, उन पर सीधा प्रहार करने के स्थान पर पहले अपनी बात के समर्थन में सही पृष्ठभूमि निर्मित की। फिर उसे आदर्श के रूप में प्रस्तुत किया।

सबको साथ लेकर चलने की कला - एक सफल 'मैनेजमेंट' कर्मी के लिए यह आवश्यक है कि वह अपने भीतर ऐसे गुणों का विकास करे, जिसके द्वारा वह सभी को एक साथ लेकर चलने की कला में दक्षता प्राप्त कर सके। इसके लिए सबसे पहले उसे स्वयं को तैयार करना होगा। जब तक हम दूसरों का सम्मान नहीं करेंगें, तब तक दूसरे भी हमारे प्रति आदर का भाव नहीं रखेंगे। मानवीय गुणों के विकास के बिना, आप अपने आपको समाज में प्रतिष्ठापित नहीं कर सकते। समाज में शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति होगा, जिसके विरोधी न हों। महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि आप अपने कार्यो के द्वारा समर्थक अधिक बना रहे हैं या विरोधी।

सकारात्मक दृष्टिकोण - जब तक जिन्दगी है, जिन्दादिली के साथ जीओ। बिना उत्साह के जिन्दगी मौत से पहले मर जाने के समान है। उत्साह और इच्छा व्यक्ति साधारण से असाधारण की तरफ ले जाती है। जिस तरह सिर्फ एक डिग्री के फर्क से पानी भाप बन जाता है और भाप बड़े-से-बड़े इंजन को खींच सकती हैं, उसी तरह उत्साह हमारी जिन्दगी के लिए काम करता है। ये उत्साह व्यक्ति को सकरात्मक जीवन-दृष्टि से प्राप्त होता है। यदि आपके पास सकारात्मक नजरिया है तो आप विषम से विषम स्थिति में भी अपने आपको संतुलित रखते हुए धीरे-धीरे सफलता की डगर पर चले जायेंगे और यदि आपके पास छोटी-छोटी बातों को लेकर भी नकारात्मकता है तो धीरे-धीरे आपके आस-पास के लोग भी आपके शत्रु बन जायेंगे।

समान दृष्टि से देखना - यह एक ऐसे बुद्धिमान व्यक्ति की कहानी है जो अपने गाँव के बाहर बैठा हुआ था। एक यात्री उधर से गुजरा और उसने उस व्यक्ति से पूछा - 'इस गाँव में किस तरह लोग रहते हैं, क्योंकि मैं अपना गाँव छोड़कर किसी और गाँव में बसने की सोच रहा हूँ।' तब उस बुद्धिमान व्यक्ति ने पूछा - 'तुम जिस गाँव को छोड़ना चाहते हो, उस गाँव में कैसे लोग रहते हैं? उस आदमी ने कहा - 'वे स्वार्थी, निर्दयी और रुखे हैं।' बुद्धिमान व्यक्ति ने जवाब दिया - 'इस गाँव में भी ऐसे ही लोग रहते हैं।'

कुछ समय बाद एक दूसरा यात्री वहाँ आया और उस बुद्धिमान व्यक्ति से वही सवाल पूछा। बुद्धिमान व्यक्ति ने उससे भी पूछा - 'तुम जिस गाँव को छोड़ना चाहते हो, उसमें कैसे लोग रहते है?' उस यात्री ने जवाब दिया- 'वहाँ लोग विन्रम, दयालु और एक-दूसरे की मदद करने वाले हैं।' तब बुद्धिमान व्यक्ति ने कहा- 'इस गाँव में भी तुम्हें ऐसे ही लोग मिलेंगे। 

उपरोक्त कहानी इस बात की प्रेरणा देती है कि जैसी हमारी जीवन दृष्टि होगी, दूसरे लोग भी हमें वैसे ही दिखाई देंगें। यदि हम अपनी प्रवृत्ति में सकरात्मक जीवन दृष्टि विकसित करें तो हमें दूसरों में खूबियाँ अधिक दिखाई देने लगेंगी। यदि हमारे भीतर नकारात्मक जीवन दृष्टि विकसित होने लगे, तो हमें दूसरों में खामियाँ अधिक नजर आने लगेंगी।