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हिन्दी स्वाभिमान की भाषा, जन-जन की पहचान है

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हम भारतवासियों को सदा स्मरण रखना चाहिए कि संविधान में हिन्दी को राजभाषा बनाने का प्रस्ताव गुजराती भाषा कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी और तमिलभाषी स्वामी अयंगार ने रखा था जिसके फलसवरूप १४ सितम्बर १९४९ ई० को संविधान का अनुच्छेद ३४३ पारित हुआ। यही दिन हिन्दी दिवस बना। तब से लेकर आज तक हम प्रतिवर्ष हिन्दी दिवस मानते चले आ रहे हैं। हिन्दी भाषा एवं हिन्दी साहित्य को प्रतिष्ठित करने का कार्य भारतेन्दु हरिश्चन्द्र, राष्ट्र-कवि पण्डित सोहनलाल द्विवेदी, पं० शिवशंकर मिश्र, मैथिलशरण गुप्त, महादेवी वर्मा आदि असंख्य साहित्यकारों ने किया है। हिन्दी कवियों ने सुन्दर गीतों की रचना करके हिन्दी को स्नेह एवं सदभाव की भाषा में बनाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। गीतकार श्री सोम ठाकुर की ये पंक्तियां कितनी प्रेरणादायी है-
करते हैं तन, मन से वन्दन, जन-गण-मन की अभिलाषा का।
अभिनन्दन अपनी संस्कृति का, आराधना अपनी भाषा का।

भारतवर्ष की एकता का आधार हिन्दी भाषा है। १५ अगस्त स्वतंत्रता दिवस पर राजधानी दिल्ली में लालकिले के प्राचीर से प्रधानमंत्री का राष्ट्र के नाम सम्बोधन हिन्दी भाषा में ही होता है। इसी प्रकार २६ जनवरी गणतंत्र दिवस पर राष्ट्रपति का राष्ट्र के नाम उद्बोधन हिन्दी भाषा में ही होता है। इस प्रकार हिन्दी पूरे देश की सम्पर्क भाषा है।

आज यह विडम्बना नहीं तो और क्या है कि विदेशों में हिन्दी पढ़ने का आकर्षण बढ़ता जा रहा है लेकिन लेकिन अपने देश में हिन्दी की अपेक्षा हो रही है। अंग्रेजी का वर्चस्व बढ़ता जा रहा है। मध्यम वर्गीय एवं धनि परिवारों में बच्चों को महंगे पब्लिक स्कूलों में दाखिला दिलवाने की होड़ लगी है। उनके सामने बच्चों का भविष्य है। उनकी मान्यता है कि यदि बच्चों को अंग्रेजी भाषा में प्रवीणता होगी तभी वे चिकित्सक, इंजीनियर एवं आई०ए०एस० अधिकारी बन सकते हैं। इस प्रकार चारों ओर कैरियर का शोर है, इसलिए अंग्रेजी भाषा का वर्चस्व है।

आज भी उच्च प्रशासनिक पदों पर अंग्रेजी भाषा जानने वाले शोभायमान हैं। सरकारी नौकरियों में उन नवयुवकों को तरजीह दी जाती है जिनका अंग्रेजी भाषा का ज्ञान श्रेष्ठ होता है। आज भी विधानपालिका, कार्य-पालिका और न्यायपालिका में अंग्रेजी भाषा का वर्चस्व है। इसलिए यह आवश्यक है कि हिन्दी भाषा जानने वालों को सरकारी नौकरियों में नियुक्त किया जाए। हिन्दी भाषा में विभिन्न विषयों की पुस्तकें प्रकाशित की जाएं। इसीलिए हिन्दी भाषा को रोजगार से जोड़ा जाए।

१४ सितम्बर हिन्दी दिवस पर केवल समारोह ही आयोजित करके कर्त्तव्य की इतिश्री न मान ली जाए बल्कि कुछ व्यावहारिक कदम भी उठाए जाएं। हिन्दी में विभिन्न विषयों का प्रकाशन किया जाए। विधानपालिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका में अधिक से अधिक कार्य हिन्दी में किया जाए। देश के प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति तथा अन्य अधिकारीयों को स्वयंम हिन्दी भाषा का प्रयोग करना चाहिए। यह कहना असत्य है कि दक्षिणी भारत में हिन्दी का विरोध है। अब वहां हिन्दी भाषा के प्रति अनुराग होने लगा है।

इसी प्रकार १८२६ ई० में कलकत्ता से हिन्दी भाषा का सर्वप्रथम पत्र उदन्त मार्तण्ड निकला। इसी प्रकार स्वामी दयानन्द सरस्वती ने गुजरती होते हुए भी सत्यार्थप्रकाश हिन्दी में ही लिखा। चैन्नई के सुब्रम्हण्यम भारती ने प्रयाग से हिन्दी की परीक्षा पास की और तमिल भाषियों को हिन्दी पढाई। हिन्दी भाषा में पूरे राष्ट्र को एकता के सूत्र में बांधने की शक्ति है। हिन्दी एक राष्ट्रीय भाषा है। प्रादेशिक भाषायें अपने-अपने प्रदेश तक सिमित हैं, लेकिन हिन्दी पूरे राष्ट्र का गौरव है, सम्मान है।

हिन्दी के सुविख्यात कवि श्री रविचन्द्र कुमार 'राजेश' के एक शब्दों में-

हिन्दी स्वाभिमान की भाषा, जन-जन की पहचान है।
हिन्दी है अभिव्यक्ति देश की, मातृभूमि की आन है।।