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पर्यावरण के बिना सुख प्राप्त नहीं होगा

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आज पूरे विश्व में पर्यावरण के प्रति चिन्ता व्यक्त की जा रही है। क्योंकि यह भयानक सांप किसी भी समय पूरे विश्व को डस सकता है। इस जहरीले नाग को नाश समूल नाश करने के लिए मानव मात्र को पूर्ण रूप से जागृत होकर कदम उठाना होगा। अधिकतर देशों में ५ जून को पर्यावरण दिवस मात्र दिखावे के रूप में मनाया जाता है। बड़े-बड़े भाषणों के माध्यम से वक्तागण अपने आपको पर्यवरणादि दिखाने का प्रयास करते है ठीक इसके विपरीत ये पर्यवरणादि कागजों में करोड़ों पेड़ लगाते है मगर पेड़ों की देखभाल कोई नहीं करता और धरातल बिन पेड़ों के नंगा होता जा रहा है।

अब समय आ गया है हर व्यक्ति १०-१० पेड़ लगाकर उन्हें अपने बच्चे की भांति पाल पोसकर बड़ा करके पर्यावरण बचाने का कर्त्तव्य पालन करें। कागजी पर्यावरण विदों को हतोत्साहित कर उन्हें साकार प्रयोगात्मक भूमिका निभाने के लिए मजबूर किया जाए। राज्य व केंद्र सरकार भी ऐसे पर्यावरणविदों के कार्य कलाप पर विशेष नजर रखे जो आए दिन समाचार पत्रों में सूर्खियों में रहते हैं। इसके साथ-साथ सरकार बड़े शहरों को और अधिक बढ़ने से रोककर पर्यावरण प्रदूषणता से मुक्ति दिला सकती है। भारत जो ऋषि मुनियों का देश रहा है उस देश की हालत नाजुक स्थिति में पहुंचे यह एक हास्यापद बात लगती है। हमारे पूर्वजों ने हमें विरासत में यज्ञ करने की परम्परा दी है जो कभी भी पर्यावरण प्रदूषणता नहीं होने देता है। आज हम हवन को छोड़ पाश्चात्य सभ्यता के रंग में रंगने लगे हैं। पाश्चात्य संस्कृति में हमें न घर का न घाट का छोड़ा है मगर फिर देशवासी घिनौनी संस्कृति के पीछे पड़कर अपने जीवन को तबाह करने पर तुले है। भारत सरकार को चाहिए कि यज्ञ का सभी संस्थाओं में आयोजन करने का प्रावधान कर पर्यावरण प्रदूषणता से बचने का उपाय किया जाना चाहिए। जिस देश में रोजाना हवन होता हो उस देश में किसी भी प्रकार का प्रदुषण रह ही नहीं सकता। समय पर वर्षा होगी, जितनी चाहेगें उतनी होगी। इस प्रकार जल प्रदूषण में कमी आऐगी और यदि जल शुद्ध होगा तो मिट्टी शुद्ध होगी और उससे उत्पन्न होने वाले पदार्थ भी शुद्ध होगें। जब सभी वस्तुएं शुद्ध होगी तो प्राणी मात्र निरोग रहकर अपने कर्त्तव्य पथ पर आगे बढ़ता जाएगा।

आज आवश्यकता है हर व्यक्ति यह प्रतिज्ञा ले कि मैं आज से ही पेड़ लगाकर पर्यावरण की रक्षा करूंगा तथा दूसरों को भी साथ लेकर इस भयंकर नाग की चपेट से संसार को मुक्ति दिलाऊंगा। तभी हमारा यह नारा सार्थक हो सकता है कि सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः सर्वे भद्राणि पश्यन्तु माँ कश्चिद् दुखभाग भवेत।