पर्यावरण में पेड़ों का महत्त्व सबसे अधिक हैं। पेड़ हमें छाया एवं शीतलता के साथ प्राणवायु, फल, रंग, लकड़ी (जलाऊ व ईमारती) प्रदान कर जल चक्र को नियमित रखने में अहम् भूमिका निभाते हैं। कई पक्षियों एवं किट-पतंगों को आवास प्रदान कर वायु एवं शोर प्रदुषण की तीव्रता घटाकर रेगिस्तान का विस्तार तथा बाढ़ नियंत्रण में भी योगदान देते हैं। पेड़ के इन बहुआयामी कार्यों के कारण इनके संरक्षण पर हमेशा ही जोर दिया गया है। स्टॉकहोम में १९७२ में आयोजित पहले वैश्विक मानव पर्यारवण सम्मलेन के एक सत्र में विशेषज्ञों ने बताया था कि जिन देशों में पेड़ों की कमी है वहां यदि एक पेड़ बचाने हेतु एक सिपाही भी लगाना पड़े, तो यह किया जाना चाहिए।
विशेषज्ञों की इतनी महत्वपूर्ण सलाह को भी भागीदारी देशों ने भूला दिया एवं पेड़ कटते गये तथा पर्यावरण बिगड़ता गया। वर्ष २०१८ की रिपोर्ट के अनुसार दुनिया में प्रतिव्यकित ४२२ पेड़ हैं एवं भारत में यह संख्या २८ है। इतनी काम संख्या होने के बावजूद राजमार्ग व विमानतल निर्माण, मार्ग चौड़ीकरण, विद्युत जल व रेलवे लाइन, खेल आयोजन, बांध निर्माण, मेट्रो-रेल, कृषि कार्य, आवासीय योजनायें एवं अवैध अतिक्रमण के कारण जंगल, शहर एवं गाँव में पेड़ों का काटना जारी है। चिपको तथा आपिको समान बड़े जन आंदोलन के कारण पेड़ बचे, परन्तु काम वजूद वालेलोग प्रताड़ित हुए, मारे भी गये, मुकदमे भी चले एवं जुर्माना भी भरा। वर्ष २००८ में दिल्ली वि.वि. के शिक्षक कर्मचारी एवं विद्यार्थी कामनवेल्थ गेम की तयारी हेतु पेड़ काटनें का विरोध कर रहे है। वही दूसरी ओर दक्षिणी दिल्ली के एक पेड़ प्रेमी को पीपल का एक पेड़ काटनें का विरोध करने पर स्थानीय पार्षद ने जान से मारने की धमकी दी। धमकी से पेड़ प्रेमी डर गया, उसे दिल का दौरा पड़ा एवं लम्बे समय तक उपचार के बा वह ठीक हुआ।
वर्ष २०१४ में राजस्थान के जोधपुर जिले के हरियाणा गाँव की २७ वर्षीय महिला ललिता को जिंदा जला दिया गया। इसके पीछे कारण यह था कि ललिता के खेल के पास पंचायत सड़क चौड़ी करना चाहती थी एवं ललिता सड़क किनारे लगे पेड़ों को बचाना चाह रही थी। ललित के विरोध से कुछ लोगों के लाभ-लालच की शायद पूर्ति नहीं हो रही थी, अतः पंचायत कुछ राजनैतिक संरक्षण प्राप्त लोगों ने धोखे से ललिता को पकड़ा, उस पर मिट्टी का तेल डाला एवं आग लगा दी। अधिक जलने से अंततः ललित की मौत हो गयी। यह मामल वहां की विधानसभा में भी उठाया गया था, परन्तु दोषियों पर क्या कार्यवाही की गयी, ज्ञात नहीं हो पाया। ललिता को पेड़ बचाने हेतु जलने का दर्द उतना ही गहरा हुआ होगा जितना लगभग २७०-२८० वर्ष पूर्व खेजड़ी के वृक्ष को बचाने हेतु सैनिकों द्वारा तलवार से काटे जाने पर श्रीमती अमृता देवी को हुआ था। अमृतादेवी के साथ उनकी दो पुत्रियाँ तथा जंभो महाराज के २९ नियम मानने वाले विश्नोई जाति के ३६६ लोग भी मारे गये थे।
इस ह्रदय विदारक हादसे से ऐसा लगा मनो अमृतादेवी की आत्मा ललिता में आ गयी हो। हाल ही एक एक महत्वपूर्ण घटना मुम्बई की और कॉलोनी में मेट्रो रोड बनाने हेतु २००० से ज्यादा पेड़ काटने की इस कॉलोनी में पेड़ों की अधिकता के कारण ऐसे इस शहर का ''हरा-फेफड़ा'' कहा जाता था। पिछले पाँच-छः वर्षो से यह मामला चल रहा था, परन्तु अगस्त २०१९ के अंत में महानगर पालिका की बैठक में वृक्ष प्राधिकरण (ट्री-ऑथोरिटी) की अनुमति प्रदान की। इस स्वीकृति से विरोध प्रदर्शन शुरू हुए एवं पेड़ों को बचाने हेतु चार याचिकाएँ भी हाईकोर्ट में लगायी गयी इन याचिकाओं पर ३० सितम्बर को कोर्ट में सुनवायी हुई थी एवं ०४ अक्टूबर की सारी याचिकाएँ खारिच करते हुए पेड़ काटने पर लगी रोक हटा ली गयी। ०४ से ०६ अक्टूबर के मध्य मेट्रो रेल कारपोरेशन ने २१४१ पेड़ काट लिए। पेड़ काटते समय कॉलोनी के सारे रास्ते रोक दिये गये, धारा १४४ लगायी गई। कभी संख्या में पुलिस बुलायी गयी। कॉलोनी में जाने से लोगो को रोका गया एवं कुछ जो पेड़ बचाने अंदर पहुँचे, उन्हें गिरफ्तार किया गया (ये वही युवा थे, जिन्होंने अपने स्कूल, कॉलेज की पढ़ाई में हिमालयीन क्षेत्र के चिपको आंदोलन के बारे में पढ़ा था।
एक जनहित याचिका के तहत सुप्रीम कोर्ट ने पेड़ काटने पर रोक लगायी मुम्बई हाई कोर्ट ने याचिकाएँ खारिच करते हुए एक याचिकाकर्ता (नगर सेवक यशवंत जाधव) पर ५० हजार रूपये जुर्माना भी लगाया। राजनीती से हटकर सोचे तो जिन लोगों ने भी याचिकाएँ लगायी थी उनका मकसद मेट्रो को बचाना था, जो बिगड़ते पर्यावरण के सन्दर्भ में जरुरी भी है। जुर्माना लगाना यानी यह तो एक पर्यावरण हितैषी कार्य की सजा हो गयी। देश में हाईकोर्ट एवं सुप्रीम कोर्ट से सम्बन्धित कई मुक़दमे हुए, जिन पर सम्बन्धित कोर्ट ने स्वविवेक से निर्णय भी लिए, परन्तु जुर्माना लगाने की कार्यवाही तो शायद ही कहीं की गयी हो।