विशेष :

जीवन जीने की कला

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हर इंसान की एक दिनचर्या होती है? रोज सोना, उठना, खाना, पीना और काम करना, इसी में उसकी जिंदगी गुजर जाती है। जब कभी वह अपने बीते वक्त पर नजर डालता है तो उसे एहसास होता है कि उसका सारा जीवन बस ईर्ष्या, द्वेष, स्वार्थ और व्यस्तता में ही बीत गया। मशीन की तरह काम करते हुए उसने अपनी जिंदगी के लिए जो भी ठीक समझा वही किया, चाहे उसका असर किसी ओर पर कितना भी प्रतिकूल पड़ा हो।

ये सब बातें जब समय के साथ-साथ याद आती हैं तो एक ही बात मन को कचोटती है कि काश हमने दिनचर्या में ये बातें शामिल की होतीं तो आज हमें पछताना न पड़ता। जो भी बीत गया, उसी की चिंता करते रहने से आने वाला वक्त भी वक्त धूमिल पड़ जायेगा, अतः गुजरी बातों को भूलकर वर्तमान में पूर्ण आनंद के साथ जीने का प्रयास करना चाहिए।

विघ्नों से घबराकर भागना कायरता की निशानी है, इसलिये हमें यह सोचना चाइये कि आपत्तियां हमें आत्मज्ञान कराती है। हम कसी मिट्टी के बने हैं। हर हालत में खुश रहने की कोशिश करनी चाहिए। यदि संसार में कोई भी दुःख का कारण है तो वह है- 'अपने मन की निर्बलता' अतः मन इतना मजबूत बनाइये कि वो हर विपत्ति पर हंसकर रह जाये। दूसरों का अपराध क्षमा करना भी एक गुण है। इससे मन में किसी के प्रति कोई द्वेष नहीं रहता।

बड़ों की आज्ञा का पालन आवश्यक है। ऐसा करके आप उनका आशीर्वाद सहज ही पा सकेंगे। इन्द्रियों के गुलाम बने रहने से जीवन दुःखद हो जाता है, अतः आप इन्द्रियों के गुलाम न बने बल्कि इन्द्रियों को अपने वश में कीजिए। हमारे द्वारा बिना सोचे-विचारे बोली गई कड़वी बातें दूसरों के दिल को चोट पहुंचा सकती हैं, इसलिए भले कम ही कम बोलें पर मीठा बोलें।

पुरुषार्थ के द्वारा ही दुनिया को जीता जा सकता है अतः पुरुषार्थी बनिए। मांगने की आदत व्यक्ति को लोगों की नजरों में भी गिरा देती है, इसलिए मांगे नहीं अपितु देने का प्रयास करें। आनन्द बांटने से बढ़ता है, अतः जितना हो सके, दूसरों में खुशियां बांटने का प्रयत्न करें। किसी चीज को देखकर यह सोचना कि काश यह मेरे पास होती, गलत है। अपनी इच्छाएं जितनी सिमित हो उतना ही अच्छा है। जीवन शांति से जीना एक कला है। यदि हम यह सोच ले कि हमारा अपना स्वाभाव ही उसे तंग करता है तो अंदर एक परिवर्तन आयेगा और दूसरों से सब शिकायतें खत्म हो जायेंगी।

यदि उपर्युक्त बातों को ध्यान में रखकर प्रतिदिन का जीवन जिया जाये तो हम अपनी जिंदगी खुशनुमा बना सकते हैं। जरूरत इस बात की है कि हम आज से और अभी से इन बातों को खुद में समाहित कर लें। फिर उम्र के अंतिम पड़ाव पर आकर आ जब अपनी पिछली जिंदगी सोचेंगे तो आपके चेहरे पर उदासी नहीं बल्कि एक संतुष्ट मुस्कुराहट दमकेगी जो यह साबित करेगी कि आपने अपने जीवन को भरपूर व आनंद के साथ जिया है।