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यह गद्दारी नहीं तो क्या है

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उसने सोचा भी नहीं था कि जीवनभर की तपस्या का उसे ये फल मिलेगा कि एक दिन वह असहाय बेसहारा रह जाएगी अपने जिन बच्चों को उसने अपने खून से सींचकर पाला-पोसा, बड़ा किया, उन्हें अपने पैरों पर चलना सिखाया, दुनिया में रहने लायक बनाया, उन्होने ही अपनी मां को अकेला छोड़कर अपनी अलग दुनिया बसा ली। बच्चों का अपने माता-पिता को इस कदर अकेले और असहाय छोड़कर चले जाना अपने आपमें ऐसी कृतज्ञता है जिसकी जोड़ का कोई और उदाहरण मिल पाना असमंभव है। यह अपने जन्मदाता के साथ सरासर गद्दारी है। लेकिन आजकल ऐसे ही गद्दारों की तादाद बढ़ती जा रही है। यह आप-बीती भी ऐसे ही गद्दार संतानों की करतूतों की बनेगी।

कुछ समय पूर्व एक मां एक सामाजिक कार्यकर्ता से आंखों में आंसू लिए मिलने आई। उनके दुखी ह्रदय की वेदना मुंह से शब्द नहीं निकलने दे रही थी। कुछ देर में उसने अपने पर संयम रखकर कहना शुरू किया उसने बताया कि उसकी एक अच्छे परिवार में शादी हुई थी, किन्तु शादी के एक साल बाद ही ससुर जी की मृत्यु होने के कारण मेरे पति को दिन-ब-दिन बिजनेस में नुकसान होने लगा। पति के बहुत बुद्धिमान होने के बाद भी बिजनेस सफलतापूर्वक नहीं कर पाए और उनके घर में गरीबी आती गई। इस दौरान उनके दो बेटे हुए। बेटों को अच्छी शिक्षा देने के विचार से उन्होंने एक स्कूल में नौकरी कर ली। बच्चों के लालन-पालन और अच्छी परवरिश हेतु दोनों पति-पत्नी रात-दिन एक करके मेहनत कर रहे थे। दोनों बेटे लायक थे। जब उन्होंने डिग्री प्राप्त कर ली तो सभी सलाह देने लगे कि उन्हें भी छोटी-मोटी नौकरी में लगवा दो, पर मां की इच्छा थी कि उसके होशियार बच्चे उच्च शिक्षा प्राप्त करके बड़ा आदमी बने।

एक हुक सी निकलती है- इसके लिए उन्हें अपने भाई-बहनों की भी मदद लेनी पड़ी। कई बार तो उनके भाई-बहन भी कह देते कि बच्चों को पढानें और उनकी फीस जुटाने के लिए कितना मेहनत करती रहोगी, इन्हें भी किसी नौकरी में लगवा दो। लेकिन मां का दिल कहां मानता। वह स्वयं भूखी रहती लेकिन बच्चों का पेट भरती रो बचत कर करके अपने लाडलों को अच्छे कपडे पहनाती। जिससे समाज में कोई ये न कह पाए कि इनके पास तो कपडे भी नहीं। एक दिन मां की पच्चीस सालों की मेहनत रंग लाई और उनके बच्चे उच्च शिक्षा प्राप्त करके वैल सेटल्ड हो गए थे। घर में खुशियां आनी शुरू हो गई थी। जहां कभी घर चलाने के पांच हजार रूपये जुटाना पहाड़ सा लगता था, वहां अब पांच लाख रुपए तक आने लगे थे। माता-पिता के आज्ञाकारी और संस्कारी बच्चों ने माता-पिता को नौकरी छोड़कर आराम करने को कहा, लेकिन उन्होंने कहा कि वह खली बैठकर भी क्या करेंगे ? माता-पिता ने बड़े अरमानों से बेटे की उसी के पसंद की लड़की के साथ शादी करवा दी। बहू बनने के पहले से ही उसका घर में आना-जना था। वह हमेशा आकर कहा करती थी 'ममा में घर में आ जाऊं फिर तो आपको बस आराम ही आराम करना। ' परन्तु ये सब बातें कोरी ही सिद्ध हुईं।

एक हुक सी निकलती है- घर के अन्दर पैर रखते ही वह बदल गई। जिस लड़की ने सुखद सपने दिखाकर घर में बहू बनकर आई, वह धीरे-धीरे अपना रंग बदलने लगी। दूसरे बेटे ने भी अमरीका में शादी कर ली। एक दिन मां-बाप ने बहू को लेट नाईट पार्टी में जाने और पारदर्शी कपडे पहनने से रोका तो उसने बेटे को मां-बाप के विरुद्ध भड़काना शुरू कर दिया। आखिर एक दिन उनका बेटा अपना हिस्सा मांगने लगा और सामान बांधकर पत्नी के साथ यह कहता हुए चला गया कि 'मैं तीस साल का हो गया हूँ अब बच्चा नहीं हूं अपने फैसले खुद कर सकता हूं। ' मां ने जब बेटे के मुंह से ऐसी बात सुनी तो वह उगी से रह गई। बुढ़ापे का सहारा बेटा अपने पैरों पर खड़ा होकर बूढ़े मां-बाप को बेसहारा छोड़कर अलग घर में रहने चला गया। बेटों की ऐसी करनी से मां-बाप दोनों की तबियत खराब हो गई। घर में सन्नाटा छा गया है। समय की रफ्तार तो जैसे रुक गई हो।

एक हुक सी निकलती है- दिल में एक हुक सी निकलती है बेटों के जाने के बाद मां दिनभर में न जाने कितनी बार रोती है। किसी से बात करने और मिलने से भी डरती है कि सगे-संबंधियों द्वारा बच्चों के बारे में पूछने पर क्या जवाब देगी? जिन बच्चों के आगे का भविष्य संवारने के लिए उनकी मदद ली, उन्हें बड़ा आदमी बनाने के लिए दिन - रात मेहनत करके फीस जुटाई उन लायक बेटों ने मां-बाप की जीवन भर की तपस्या का ये सिला दिया।

बेटों द्वारा ठुकराए मां-बाप का एकमात्र सहरा घर के पालतू दो कुत्ते ही हैं। बेटों का असली फर्ज तो ये बेजुबान जानवर ही निभा रहें हैं। वह दुखियारी मां जब वह रोती है तो कुत्ते भी खाना नहीं खाते जब वह रोती है तो दोनों पास बैठकर सिर्फ मां की आंसू भरी आंखे देखते रहते हैं, जैसे मां का दुःख महसूस कर खुद भी दुखी हो रहे हों।