किसी के अपकार का बदला अपकार से देना या आँख फोड़ने वाले की बदले में आँख फोड़ देना उचित हो सकता है परन्तु इसके हानिकारक प्रभाव भी हो सकते हैं। चाहे आप युद्ध जीत लें परन्तु दिल के एक कोने में आपको कुछ खालीपन का अनुभव होता है और लगता है कि आपकी कोई मूल्यवान वस्तु आपसे दूर हो गई है। महात्मा गांधी के शब्दों में, ''आँख के बदले दूसरे की आँख को फोड़ने का परिणाम संसार को अन्धा कर सकता है।'' समय बीतने के साथ किसी समय उपलब्धि दिखने वाली यह बात, निराशा व पछतावे में बदल जाती है। ऐसी परिस्थिति में, अपने प्रतिशोध को पूरा करने का दूसरा बदला ऐसा हो कि दूसरे का ह्रदय परिवर्तन कर दे और आपसी वैमनस्य को खत्म कर आपसी सम्बन्धो को सुधार दे। ऐसा करने से गलत काम करने वाले के मन में एक नया परिवर्तन होता है। अक्सर ऐसा करने पर विरोध मित्रता का रूप ले लेता है जो कि एक उल्लेखनीय उपलब्धि कही जा सकती है। ऐसा करने से हमारे मित्रों की संख्या में वृद्धि होती है और यह कहने की आवश्यकता नहीं कि जिसके जितने अधिक मित्र होते हैं वह उतना ही अधिक इस धरती पर स्वयं को सुखी व संतुष्ट अनुभव करता हैं।
जैसा हम जानते हैं बर्लिन की दीवार पूर्वी बर्लिन को और पश्चिम बर्लिन को बाँटती थी। कुछ पूर्वी बर्लिन वासियों ने पश्चिम बर्लिन वासियों के प्रति गहरा द्वेष भाव अपने अन्दर उत्पन्न कर लिया था। इस द्वेष भाव के कारण पूर्वी बर्लिन वालों बर्लिन वासियों का अपमान करने के लिये एक ट्रक में कूड़ा, ईंट के टुकड़े और अन्य अनाप-शनाप व्यर्थ की वस्तुएं भरकर चोरी छिपे पश्चिम बर्लिन वासियों को भेजीं। जब पश्चिम बर्लिन वालों को उसका पता लगा, तो वे इससे कुपित हुए और उन्होंने चाहा कि वह भी उसके बदले में वैसा ही व्यवहार करें। पश्चिम बर्लिन वासियों ने पूर्वी बर्लिन वासियों को एक ऐसा उपहार भेजने का निर्णय किया जिससे कि उनके किए गए अपमान का उचित बदला लिया जा सके। उनमें से एक बुद्धिमान व्यक्ति को जब पता लगा तो उसने उनको परामर्श दिया कि उनके भेजे समान के बदले उनको भोजन, कपड़े और चिकित्सा का सामान, दुर्लभ वस्तुएँ एवं मूल्यवान पदार्थ भेजें। उन्होंने, उस सामान के साथ एक पत्र भी रखा, जिसमें कहा गया था कि कोई अपने सामर्थ्य और बुद्धि के अनुसार देता है। यह कहने की आवश्यकता नहीं की पश्चिमी बर्लिन के इस उदारपूर्ण कार्य से दोनों पक्षों में विश्वास का भाव एवं अच्छे सम्बन्ध पैदा हुए।
बुद्धिमान मनुष्य महान गुणों को जीवन में धारण करते हैं व उनका पालन करते हैं। एक जुनूनी धार्मिक अन्धविश्वासी व्यक्ति समाज सुधारक सन्त स्वामी दयानन्द सरस्वती के अन्धविश्वासों व कुरीतियों के खण्डन एवं सत्य मान्यताओं में मण्डन से चिढ़कर प्रायः हर समय चिल्लाकर-चिल्लाकर उनके लिए अपशब्दों व गलियों का प्रयोग करता था। एक दिन स्वामीजी का एक अनुयायी उनके लिए फलों की एक टोकरी ले कर आया। स्वामीजी ने तुरन्त अपने एक अन्य भक्त को पास बुलाया और उसे टोकरी में से कुछ फल ले जाकर उस गेरुए वेशभूषा वाले व्यक्ति को देने को कहा जो प्रतिदिन उन्हें गालियाँ दिया करता था। उन्होंने उसे यह संदेश भेजा कि उसे इन फलों की अधिक आवश्यकता है क्योंकि स्वामीजी के प्रति अपनी भावनाओं को अभिव्यक्त करने के लिए उसे गालियाँ देने में अपनी भारी ऊर्जा खर्च करनी पड़ती है। स्वामीजी का भक्त स्वामीजी की यह बात सुनकर हतप्रभ रह गया पर स्वामीजी की इच्छानुसार उसने उस व्यक्ति के पास जाकर उसको फल देकर स्वामी जी का सन्देश भी दे दिया। वह व्यक्ति स्वामीजी के उस व्यवहार से चकित रह गया और स्वयं को लज्जित अनुभव करते हुए उनके पास क्षमा माँगने जा पहुँचा। उसका ह्रदय परिवर्तन हो गया और वह उनका अनुगामी भक्त बन गया। इस घटना से यह सिद्ध होता है कि उदारता व दान आदि गुणों को धारण करने से शत्रु को मित्र में बदला जा सकता है। यह प्रतिशोध के पवित्र तरीकों को अपनाने से मिलने वाली शक्ति है।
प्रतिशोध की भावना से अन्धे होकर आँख के बदले आंख लेने की जगह इस प्रकार के प्रेम युक्त मधुर व्यवहार को अपनाकर आज के युग में शत्रुता के रवैये को मित्रता में बदला जा सकता है खास कर जबकि आज द्वेष भावना व इससे उत्पन्न हिंसा ने सबमें परस्पर डर पैदा किया हुआ है। यह स्थिति मानवता के लिए शर्मनाक है।