इधर परोंख गांव से लौटती अकबर की सेना ने साकेत में पड़ाव डाला। हिन्दुओं की कुछ बड़ी हवेलियां खाली करवाकर उसमें बंदी रखे गए। प्रातः अकबर तो आगरा की ओर चल दिया, बचे सैनिकों को अटघड़े के ग्रामों को लूटने के आदेश थे ही । उन्होंने सोचा गांव तो खाली पड़े हैं, न धन मिलेगा न औरतें। यहाँ साकेत में व्यापारियों की हवेलियां सोने-चांदी और खूबसूरत औरतों से भरी पड़ी हैं, यहीं हाथ साफ कर आगरे चला जाए। आनन-फानन में मुगल सैनिक साकेत की हर हवेली पर टूट पड़े। निर्दोष व्यापारी मार दिए गए। काफिरों को मारने का सबाब (पुण्य) लूट घरों का सोना-चांदी और सुन्दर जवान औरतें लूटी गई। जो परोंख में नहीं मिला, उससे कहीं अधिक माल हाथ लगा। लूटखसोट कर मुगल फौजें आगरा पहुंचीं। आगरा के बाजार से जब बंदी गुलाम-औरतों-बच्चों के समूह गुजरे, तब अपनी पत्नियों-बहनों-बेटियों को देख-पहचान साकेत के व्यापारी धक् रह गए। लेकिन क्या करते ! मौत के डर ने उन्हें छाती पर सब्र का पत्थर रखने पर मजबूर कर दिया।
यह कथा मात्र साकेत परगने की ही नहीं है, अकबर के विनाशक पाँव जिस भी धरा पर पड़े, वहीं मौत और तबाही का पोचा फिर गया। अकबर विश्व का अकेला ऐसा बादशाह था, जिसने निरीह किसानों को कुचलने के लिए हमले के अभियान का स्वयं नेतृत्व किया। अकबर भारत को हिन्दू विहीन बनाना चाहता था। यहाँ मुसलमानों की संख्या बढ़ाना चाहता था। उसी मार्ग पर वह चल रहा था। किसी भी बहाने से हो, हिन्दू पुरुषों की हत्या करो, हिन्दू औरतों को मुसलमानों के घरों में डाल मुस्लिम आबादी बढ़ाओ। आगरा में राजधानी लाने का उद्देश्य भी हिन्दुओं का सफाया था।
इसके प्रमाण में प्रस्तुत हैं अकबर द्वारा ईरान के शाह अब्दुल्ला को लिखे पत्र के अंश -
भाई अब्दुल्ला ! अब हम दोनों में नई मित्रता का उदय हुआ है। हम 30 वर्ष से शासन कर रहे हैं। हमने युद्ध किए हैं और देश जीते हैं। धन के लोभ से हमने यह काम नहीं किया। ईश्वर जानता है कि भारत के देशों को जीतने में हमारा (व्यक्तिगत) कोई स्वार्थ नहीं था। हम तो अत्याचारियों (हिन्दुओं) को नष्ट करना चाहते थे। टिप्पणीः (कौन अत्याचारी, विधवा दुर्गावती, स्वातंत्र्यवीर महाराणा प्रताप, रामचन्द्र बुंदेल, हिन्दू किसान?) हमने जन्म लिया तबसे और राजकाज संभाला तब तक हमारी एक मात्र अभिलाषा यह रही है कि धर्म (इस्लाम) और सत्य (कुरान) के मार्ग पर चला जाए। कितने ही स्थानों पर जहाँ इस्लाम की सेना नहीं पहुंची थी (मेवाड़, मारवाड़, बुंदेलखंड, गढ़ा मंडला, उड़ीसा, कुमायुं गढ़वाल, हिमाचल प्रदेश, जम्मू, कूचबिहार, लद्दाख के हिन्दू राज्य) अब वहाँ मुसलमान निवास कर रहे हैं । हिन्दुओं को जबरन मुसलमान बना लिया है और विदेशी मुसलमान, हिन्दुओं को भगा उनके मकानों में बस गए हैं। काफिरों (हिन्दुओं) के मंदिर (तोड़कर) गिरजे और मस्जिदें बन गई हैं। हिन्दू और अन्य (लद्दाख के बौद्ध) लोगों ने हमारी आज्ञा पालन करना शुरू कर दिया है और हमारी सेना में भरती हो गए हैं। (आधीन हो गए हैं) हमारा यह भी विचार है कि जब इन कामों से (हिन्दुओं के सफाए से) अवकाश मिल जाए, तब फिरंगी काफिरों (इसाइयों) के विनाश का काम हाथ में लिया जाए। (अकबरनामा पृष्ठ 589)
उपरोक्त पत्र अकबर के नवरत्न अबुल फजल ने अपने अकबरनामा में लिखा है। यह अबुल फजल अकबर का चापलूस दरबारी था और अकबर को बड़ा उदार, धर्मनिरपेक्ष और दयालु घोषित करता था।
हमारे सेक्युलर बंधु जरा इस पत्र को अकबरनामा में पढ़ें और इस विदेशी आक्रमणकारी हत्यारे के बारे में अपनी धारणा बदलें । और क्या प्रमाण चाहिए अकबर को हत्यारा सिद्ध करने के लिए ?
अकबर अत्यन्त ही धूर्त था । उसने अपने पाप छिपाने के लिए तथा अपनी झूठी प्रशंसा करवाने के लिए कवि-साहित्यकार-इतिहासकारों को पाल रखा था, किन्तु उन्हीं इतिहासकारों-कवियों की लेखनी में वे अंश खोजे जा सकते हैं, जो अकबर को हत्यारा तथा हिन्दू शत्रु सिद्ध कर देते हैं। - रामसिंह शेखावत
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