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काश ! हमारे आज के नेता

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महात्मा गान्धी ने कहा था कि अपने शासकों के दोषों के प्रति सहानुभूति रखना या उन्हें छिपाना देशभक्ति को लज्जित करना है, इसके विपरीत उनकी बुराइयों का विरोध करना सच्ची देशभक्ति है। लेकिन वर्तमान समय में राजनीतिक घटनाक्रम और ’सत्ता शिरोमणियों’ के आचरण को देखकर तो ऐसा लगता है कि हमने गान्धी जी के साथ ही उनके विचारों का भी ’तर्पण’ कर दिया है। पीड़ा तब और अधिक होती है जब स्वयं को गान्धी का अनुयायी और उनकी विरासत का उत्तराधिकारी कहने वाले लोग ही सत्ता मद में विपरीत आचरण करते हैं और अपने दोषों पर पर्दा डालने का हरसम्भव प्रयास करते हैं ।

हाल ही में अन्ना हजारे के सहयोगियों ने केन्द्रीय मंत्रिमंडल के 14 मंत्रियों और प्रधानमन्त्री पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए थे। आश्‍चर्य तो तब हुआ जब प्रधानमंत्री ने बिना किसी जांच के इन आरोपों का खंडन कर दिया और संप्रग अध्यक्ष सोनिया गांधी ने भी सभी को ’ईमानदारी’ का प्रमाण-पत्र दे दिया। क्या यह उचित नहीं होता कि मन्त्रियों पर लगे आरोपों की जांच करवाई जाती, ताकि दूध का दूध और पानी का पानी हो जाता और जनता में भी सकारात्मक सन्देश जाता तथा इससे सरकार के प्रति विश्‍वास बढ़ता। मगर दुर्भाग्य से ऐसा हुआ नहीं। यह भी किसी से छिपा नहीं है कि महीनों जेल में गुजारने वाले राजा इसी सरकार में दूरसंचार मन्त्री थे।

यूं तो संप्रग सरकार के कार्यकाल में घोटालों की लम्बी सूची है। लेकिन राष्ट्रमण्डल घोटाला, 2 जी स्पेक्ट्रम घोटाला, आदर्श हाउसिंग घोटाला आदि ऐसे कई घोटाले हैं जिनकी आँच कांग्रेस के कई बड़े नेताओं तक पहुंची। इनसे आम भारतीय का सरकार के प्रति विश्‍वास तो डगमगाया ही, साथ ही विपक्ष भी उसकी उम्मीदों पर खरा नहीं उतरा।

23 जुलाई को महान क्रान्तिकारी अमर बलिदानी चन्द्रशेखर आजाद और लोकमान्य तिलक का जन्मदिन भी है। हर वर्ष की तरह यह तारीख आएगी तथा चली भी जाएगी और बहुत से लोगों को शायद पता भी नहीं चलेगा। सार्वजनिक धन को निजी सम्पत्ति समझने वाले देश के नेताओं को आजाद से जुड़े एक प्रसंग से प्रेरणा लेनी चाहिए। उन्होंने कभी सार्वजनिक धन का उपयोग स्वयं पर अथवा अपने परिवार पर नहीं किया। भगतसिंह ने एक बार आजाद से उनकी माता का पता पूछा ताकि उन्हें कुछ पैसे देकर उनका उचित प्रबन्ध किया जा सके, लेकिन आजाद ने अपनी जननी माता से ज्यादा ’भारत माता’ को प्राथमिकता दी। काश! हमारे आज के नेता भी ऐसा आचरण करें, तभी सच्चे स्वराज का हमारा सपना पूरा होगा । - वृजेन्द्रसिंह झाला

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