अकबर के हाथी के दाएं-बाएं आमेर का राजा भगवानदास और मगर कोट का राजा बक्षीचंद्र चले। घटना जून 1962 की है।
प्रातः मुगलों के अग्रिम दस्तों ने आठों गावों पर धावा मारा। अकबर भी कस्बा साकेत पहुंचा। वहाँ अकबर के फकीर वेश में घूमते गुप्तचरों ने खबर दी कि गांवों के नौजवान परोंख गांव की ओर चले गए हैं। एक गांव से खबर आई कि गांव में केवल बूढे लोग हैं, बाकी गांव खाली है। जाटों के गांव से खबर मिली कि जाट वृद्धों ने शाही सेना का सामना किया था। उनमें से कइयों को मार एक को कैद कर ले आए हैं। अकबर ने अग्रिम दस्तों को खबर भेजी कि सभी सैनिक परोंख गांव चले और जहाँ भी विद्रोही मिलें, उनका पीछा किया जाए। (अकबरनामा)
दोपहर 11 बजे अकबर परोंख गांव की कांकड़ पर पहुंचा । वहाँ अकबर की अग्रिम सेना के घायल, हारे हुए सैनिक वृक्षों के झुरमुटों में छिपे मिले। प्रातः की पहली मुठभेड़ में परोंख के हिन्दुओं ने इन्हें मार भगाया था। अकबर न तो रुका न हारकर भागे मुगलों से पूछताछ ही की। उसने जाकर चारों ओर से परोंख गांव घेर लिया। अकबर को देख गांव का एक आदमी बाहर आया, उसने नीचे झुक सलाम कर कहा कि इस गांव में कोई विद्रोही नहीं है। अकबर ने अपना एक सैनिक गांव में भेजा। गांव के नौजवान घरों में छिप गए थे। उस सैनिक ने जा गांव के लोगों से आत्मसमर्पण करने को कहा। किन्तु गांव वाले तैयार नहीं हुए । वे जानते थे कि आत्मसमर्पण किया तो भी बंदी अवस्था में मार दिए जाएंगे। इसलिए लड़कर मरना अच्छा है।
दोपहर 12 बजे अकबर ने हाथियों द्वारा गांव के मार्गों पर रखी लकड़ियों को हटाने का आदेश दिया। हाथियों को बढ़ते देख मकान की खपरैलों पर छुपे पड़े हिन्दुओं ने पत्थर फैंकना प्रारंभ किए। कुछ हिन्दुओं ने चारों ओर बिछी लकड़ियों में आग लगा दी। तीर-पत्थरों की बौछार से हाथियों का बढ़ना रुक गया। तभी खबर मिली कि ग्राम के पीछे का मार्ग प्रवेश के लिये खाली कर लिया गया है और मुगल सैनिक गांव में घुस पड़े हैं। अकबर भी उसी ओर दौड़ पड़ा। गलियों में मुगल सैनिक और मकानों पर हिन्दू। घमासान लड़ाई होने लगी। मुगल सैनिक जिरह बख्तर (कवच) से लैस थे। इसलिए हिन्दुओं के प्रहारों का असर नहीं हो रहा था। हाथियों पर बैठे कुछ मुगल मकानों पर चढ़ गए । खपरैलों और मकानों की छतों पर गुत्थम-गुत्था लड़ाई होने लगी। कुछ मुगल घोड़ों से उतर ग्रामीणों के घरों के द्वार तोड़ने लगे। मुगलों के हाथी बेकार हो गए, क्योंकि गलियों में मुगल और हिन्दू इतने पास-पास लड़ रहे थे कि नेजे और तलवार चलाने की जगह नहीं थी। गांव की छोटी-छोटी गलियों में मुगलों की छुरियाँ और हिन्दुओं के गंडासे (कुट्टी काटने के), दराते, हंसिये चल रहे थे। यदाकदा एक आध हिन्दू को महावत के इशारे से हाथी पकड़कर चीर देता था।
अकबर ने देखा कि एक मकान की छत पर कुछ मुगल हिन्दुओं से लड़ रहे हैं। एक मुगल पीतल का पीला कवच पहने था। यह सिपहसालार दस्तमखां था। अकबर ने हाथी बढाया, तो आसपास के मकानों की छतों से उस पर तीर पत्थर बरसने लगे। एक कद्दावर राजपूत छत से तीर चला रहा था। अकबर ने रक्षा के लिए ढाल आगे कर ली। सात तीर अकबर की ढाल पर लगे जिनमें से पांच ढाल फोड़ तीन-चार अंगुल बाहर निकल आए। दो ढाल में अटके रह गए। अकबर ने पुनः हाथी को आगे बढाया, तो हाथी का पांव आंगन में बनी अनाज की बोखारी में धंस गया। हाथी लड़खड़ाया, महावत नीचे गिर गया, पीछे बैठा अकबर का अगंरक्षक झुझार खाँ अकबर पर आ गिरा। अकबर ने खुद हाथी को संभाला । मकान का द्वार खोल एक राजपूत बाहर निकला । उसने हाथी पर तलवार चलाई, जो उसके दांत पर लगी। दांत कट गया, क्रोधित हाथी ने राजपूत को पकड़ कुचल डाला। तभी एक पन्द्रह वर्ष का राजपूत बालक चीखता हुआ छत से हाथी पर कूद पड़ा। जून की दोपहर थी, भीषण गर्मी पड़ रही थी, प्यास के मारे अकबर का बुरा हाल था। उसने पास के हाथी पर बैठे राजा भगवानदास से पानी मांगा। राजा ने अपनी छागल उसे दे दी। अकबर ने प्यास बुझाई व पुनः हाथी दीवार पर हूल दिया। हाथी दीवार पर टक्कर मारने लगा। अंत में बादशाह ने दीवार तोड़ डाली। (अकबरनामा)
अल्लाहो-अकबर के नारे लगाते मुसलमान मकान में घुस पड़े। मकान के आंगन, भीतरी कक्ष ऊपर की मंजिलें रक्त से लाल हो उठीं। एक अन्य मकान से हिन्दू कड़ा मुकाबला कर रहे थे। अकबर ने मकान को चारों ओर से घेर आग लगा दी। जलते मकान से हिन्दू तीर-गोलियां चला रहे थे। मकान ध्वस्त हो गया। एक हजार हिन्दू मकान में जल गए। हिन्दुओं का प्रमुख मोर्चा टूटते ही गांव में भगदड़ मच गई। गांव के बचे 3000 हिन्दू लड़ते-लड़ते गलियों में से मार्ग बनाते गांव से भागने लगे। पुरुषों को भागते देख गांव की स्त्रियां परोंख गांव की चौपाल के निकट बने कुएँ में अपनी लाज बचाने के लिए कूदने लगीं। कुछ जलते मकानों में और जलती लकड़ी के ढेरों पर लौटने लगी। कुछ भागती महिलाओं को मुगलों ने पकड़ लिया।
ग्राम में संघर्ष समाप्त होते ही चला घर-घर तलाशी का दौर। घरों में अंधेरे कमरों, गाय-भैंस के कोठों, मचानों, अनाज की बोखारियों, घास-भूसे के ढेरों में छिपी-दुबकी-सहमी बैठी डर से थर-थर कांपती हिन्दू महिलाओं को मुगल ढूंढ-ढूंढकर निकालने लगे। आधे मुगल भागते हिन्दुओं के पीछे लग गए। आधा पहर दिन शेष था, जब अकबर गांव के मध्य की चौपाल पर पहुँचा। वहाँ पकड़े गए हिन्दू स्त्री-पुरुष असहाय खड़े थे। घायल हिन्दू धरती पर पड़े छटपटा रहे थे। उनके परिजन उन्हें घेरे बैठे थे। अन्य हिन्दू महिलाओं, पुरुषों को मुगल घसीट-घसीटकर चौपाल की ओर इकट्ठा कर रहे थे।
अन्य स्त्री-बच्चे-बूढ़े परोंख गांव नहीं आए थे। इस कारण पकड़े गए महिला-बच्चों की संख्या कम थी। अकबर हाथी पर बैठा आदेश दे रहा था। कुछ मुगल चौपाल के चबूतरे पर खड़े हो गए। कुछ कैदियों की भीड़ में से पुरुषों को पकड़ चौपाल पर लाने लगे। हिन्दुओं के हाथ मरोड़ उन्हें नीचे झुकाया जाता और उनके सिर काट दिए जाते। 15-20 सिर काटने के बाद जब हत्यारे थक जाते, तो उनका स्थान दूसरे मुगल ले लेते। पुरुषों को समाप्त कर अब हिन्दू महिलाओं की बारी आई। बच्चे छांटकर अलग कर दिए गए। घूंघट काढे खड़ी महिलाएँ अपनी आंखों के सामने अपने पति-बेटों-भाइयों को बकरों की तरह काटे जाते देख धाड़ मारकर रो रही थीं। चीख रही थीं। मुगलों ने उनसे घूंघट उघाड़ने को कहा। न मानने पर बरछियाँ कोंच-कोंचकर उनके घूंघट हटवाए गए। कुछ वधुएँ अपने छोटे-छोटे शिशुओं को आंचल में छिपाए खड़ी थीं। उनसे शिशु छिनकर फैंक दिए गए। कुछ शिशुओं से लिपट गईं, उन्हें लात-घूंसे-थप्पड़ मार शिशुओं से अलग किया गया।
अब जवान और बूढ़ी औरतें साफ दिखाई देने लगी थीं। जवान और सुन्दर हिन्दू अबलाएँ प्रमुख मुगल सरदारों में बांट दी गईं। शेष सैनिकों को बच्चे तथा बूढी महिलाएं गुलाम के रूप में सौंप दिए गए। इसके बाद भी कुछ सैनिकों को न औरतें मिली, न गुलाम । उन्हें आदेश दिए गए कि अटघड़ा के अन्य गांवों की जो औरतें तथा बच्चे जंगलों में जा छिपे हैं, उन्हें खोज निकालें और कब्चे में कर लें। फिर हुई परोंख गांव की लूट। नगदी, रकम, बरतन जो भी मिला मुगलों ने लूट लिया। अब मरों, अधमरों की लाशों को यूं ही छोड़ अकबर आगरा की ओर रवाना हुआ। परोंख गांव में भागे हिन्दुओं ने सारी रात जंगलों में जाकर बिताई। प्रातः भुंसारा होते ही वे धीरे-धीरे छिपते-छिपाते गांव की ओर बढे। आसपास के खेतों में भागते हुए मारे गए हिन्दुओं की इक्का-दुक्का लाशें पड़ी थीं। गांव में कुत्ते घूम रहे थे, किसी जीवित मानव के आसार नहीं दिख रहे थे। वे गांव के निकट आए। गांव के बाहर नई ताजा कबरें दिख रही थीं, जो लौटने के पूर्व अकबर द्वारा मृत मुसलमानों को दफनाने की निशानी थी। गांव की गलियां मृत हिन्दुओं की देह से अटी पड़ी थी। गांव की रक्षार्थ जलाई गई लकड़ियों के ढेर पर अधजली हिन्दू माँ-बहनों की लाशें पड़ी थीं, जो परोंख गांव की महात्रासदी की कथा कह रही थीं।
लाशों को उल्हांघते हुए हिन्दुओं का समूह गाँव की चौपाल पर आया। यहाँ का वीभत्स दृश्य देख सभी के रोंगटे खड़े हो गए। चौपाल के चारों ओर सैकड़ों कटे मस्तक और धड़ पड़े थे। बहे रक्त से ग्रीष्म ऋतु में भी चौपाल पर कीचड़ हो गया था। मृत देहों के पास 25-30 जीवित शिशु (6 माह से 2-3 वर्ष के) रोते हुए मिले। तभी चौपाल के कुएँ से रोने की आवाज सुनाई दी। झांककर देखा तो लाशों से पटे कुएं में कमर-कमर पानी में 4-5 स्त्रियां खड़ी थीं। कुएं में रस्सी डाल उन्हें निकाला गया। सभी अपने भाग्य को कोस रो रही थीं कि उनके ही लिए कुएं का पानी कम क्यों पड़ गया ?
यहाँ का हाल देख अटघड़े गाँवों के अन्य किसान अपने-अपने परिवारों की चिन्ता में अपने गाँवों को लौट गए। - रामसिंह शेखावत
Akbar | Muslim | Hindu | Creed | Worship | Arya | Sanatan | Mandir | Prachin Itihas | Hindusm |