किसी भी देश की मुख्यधारा वहाँ की सांस्कृतिक पृष्ठभूमि और वहाँ के संविधान पर आधारित होती है। इस मान्यता एवं सिद्धान्त के आधार पर भारत की मुख्य धारा भारतीय संस्कृति के अमृत-रस से परिपूर्ण है। इससे पोषित भारतवासियों के चरित्र में उदारता, सहिष्णुता, बन्धुत्वभाव आदि उदात्त भावों के दर्शन होते हैं। इसी से पोषित भारतीय मानस में निहितभाव है- मनुष्य मात्र बन्धु है, यही बड़ा विवेक है। इसी विवेक पर आधारित है भारतीय संविधान। भारतीय संस्कृति और भारतीय संविधान की उपज है भारत की मुख्यधारा । यह धारा पतितपावनी गंगा की तरह सर्वमान्य है। यह धारा सर्वजनहिताय कार्य व्यवस्था का निर्धारण करती है। इसे दृष्टिगत रखते हुए विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका सभी अपनी कार्य योजना निर्धारित करती है तथा समस्त भारतीयों के हितों की रक्षा करती हैं। यदि कहीं कोई पुरुष महिलाओं के अधिकारों को कुचलता हुआ दिखाई देता है, तो भारत की न्यायपालिका उसे ठीक करने की दिशा निर्देशित करती है।
ऐसा ही एक प्रसंग महिलाओं के अधिकारों को लेकर सर्वविदित है। महिलाओं पर हो रहे अत्याचार, उनके अधिकारों की अवहेलना के समाचार, समाचार पत्रों की सुर्खियों में प्रकाशित होते रहते हैं। पुरुष वर्ग द्वारा विवाहित स्त्रियों के अधिकारों पर प्रहार करना, उनके पालन-पोषण के उत्तरदायित्व को अस्वीकार करना, तलाकशुदा महिला के बालबच्चों की परवरिश करने से इन्कार करना आदि के अतिरिक्त पति द्वारा उन पर अमानवीय अत्याचार करना और कभी-कभी यहाँ तक कि घमंडी पति उस स्त्री के साथ विवाह होने तक से इन्कार कर देता है। ये महिलाओं के अधिकार हनन के ज्वलंत उदाहरण हैं। डेढ दो वर्ष पूर्व सामाजिक क्षेत्र के चिन्तकों द्वारा महिलाओं पर हो रहे अत्याचार और उनके अधिकार हनन को लेकर सुप्रीम कोर्ट का ध्यान आकर्षित किया गया था। इस आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने डेढ वर्ष पूर्व विवाह-पंजीकरण अनिवार्य करने के लिए राज्यों को निर्देश दिए थे। परन्तु कुछ राज्यों ने इस निर्देश को गंभीरतापूर्वक नहीं लिया और इस दिशा में कोई कदम नहीं उठाया। इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने विवाह पंजीकरण अनिवार्य करने के लिए राज्यों को पुन: आदेशित किया है।
विवाह पंजीकरण को सभी सम्प्रदायों तथा वर्गों के लिए अनिवार्य करना निर्देशित है, किन्तु मुस्लिम नेता इसे अपनी परम्परा में हस्तक्षेप मानकर इसका विरोध कर रहे हैं। अखिल भारतीय मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड़ ने सुप्रीम कोर्ट के इस सम्बन्धी निर्णय पर आपत्ति प्रकट की है। इसे वे अपने धार्मिक मामले में दखल मान रहे हैं। उन्होंने कोर्ट से पुनर्विचार करने हेतु अपील भी की है। न्यायपालिका महिलाओं के उत्पीड़न और उनके अधिकार हनन से परिचित है। अत: विवाह पंजीकरण का उसका यह निर्णय समग्र महिलाओं के हित में है। इसे स्वीकार किया जाना ही भारत की मुख्य धारा की स्वीकारोक्ति है। इसे स्वीकार न करना राष्ट्र की मुख्यधारा के विरुद्ध प्रतिकूल आचरण माना जाएगा। इस प्रकार भविष्य में भारत की समग्र जनता के कल्याण की दिशा में कोई भी नियम निर्धारित करना असंभव हो जाएगा। भारतीय संस्कृति ही उस चरित्र का निर्माण कर सकती है, जो सद्भावना, बन्धुत्वभाव और विश्वशान्ति स्थापित करने में समर्थ है। - जगदीश दुर्गेश जोशी
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