देशभर में रिटेल व्यापार की विदेशी कम्पनियों को अनुमति दिये जाने से देश में रिटेल का व्यापार करने वाले करोड़ो छोटे व्यापारियों की बर्बादी का रोड़मैप तैयार हो गया है। फिलहाल लगभग सभी नगरों में ऐसे बड़े-बड़े डिपार्टमेंटल स्टोर खोले गए हैं, जहाँ एक ही छत के नीचे घर का सारा सामान मिलता है। कुछ लोगों विशेष रूप से युवापीढ़ी और नवधनिक वर्ग में इनके प्रति आकर्षण है। अतः वे ऐसे वातानुकुलित केन्द्रों पर पहुंच रहे हैं, जहाँ सब कुछ पैक किया हुआ मिलता है और सेल्फ सर्विस है। अब तो इनसे भी व्यापार छीनने की तैयारी है।
सरकार दावा कर रही है कि विदेशी कम्पनियों को रिटेल व्यापार करने की अनुमति देने से देश में रोजगार बढ़ेगा। किसानों का माल सीधे ये कम्पनियाँ खरीदेंगी जिससे उन्हें लाभ होगा। सरकार के अनुसार फिलहाल बिचौलियों का दबदबा है और ग्राहक उत्पाद के लिए जो कीमत अदा करता है उसका केवल एक तिहाई ही किसान को मिलता है और बाकी फायदा बिचौलिये कमाते हैं। जब बिचौलियों की बात उठी है तो यह भी जानना जरूरी हो जाता है कि ये कौन लोग हैं।
बैलगाड़ी चलाने वाले, ट्रांसपोर्टर, एजेण्ट और छोटे कारोबारी ये बिचौलिये हैं। दूसरी ओर वैश्विक दिग्गज कम्पनियों के लिए महंगे विज्ञापनों में ब्राण्ड एम्बेसेडर बिचौलियों का काम करते हैं जो कम्पनियों से करोड़ों रुपये लेते हैं। इसके अलावा बिजली खपत, गोदाम और ट्रांसपोर्ट के उनके खर्चे भी बहुत ज्यादा होते हैं।
हमारे बिचौलिये अर्थव्यवस्था को मजबूती देते हैं। छोटे कारोबारियों पर जो दो तिहाई मुनाफा बनाने का आरोप लगाया जा रहा है वह पूरी तरह गलत है। यह सर्वविदित है कि पिछले सात वर्षों से बड़े कारोबार घराने खुदरा कारोबार में शामिल हैं। यदि हम तुलना करें तो स्पष्ट होता है कि उनके भाव बाजार के बराबर या उससे कुछ ज्यादा हैं। अतः ज्यादा मुनाफा कमाने का आरोप केवल बहुराष्ट्रीय कम्पनियों को इस बाजार में उतारने का एक जरिया मात्र है। सरकार को खुदरा कारोबार में विदेशी पूंजी निवेश को मंजूरी देने के बजाय छोटे एवं मझोले व्यवसायियों की सुरक्षा और संरक्षा पर जोर देना चाहिए। गान्धी जी जिस कुटीर उद्योग और गांव के विकास की कल्पना करते थे क्या वह रिटेल व्यापार में विदेशी पूंजी की अनुमति देकर पूरा होगा?
जहाँ तक रोजगार वृद्धि का प्रश्न है अगर वालमार्ट रोजगारी पैदा कर सकता है तो उसे बताना चाहिए कि अमेरिका जहाँ वह अपना धन्धा कर रहा है, वहाँ की जनता क्यों बेरोजगार है? 2011 के आंकड़ों के मुताबिक पूरी दुनिया में उनके 9970 स्टोर मौजूद है। इनके कर्मचारियों की कुल संख्या 2012 के आंकड़े के मुताबिक 22 लाख है अर्थात् 245 व्यक्ति प्रति स्टोर को उसने काम दिया है। विशेषज्ञों के अनुसार वे भारत में 1000 स्टोर भी खोलें तो मात्र ढाई लाख से ज्यादा लोगों को नौकरी नहीं मिल सकती, जबकि बेरोजगार होंगे 22 करोड़। वालमार्ट स्टोर के बारे में कहा जाता है कि वे जहाँ व्यवसाय शुरु करते हैं उनका सबसे पहला काम उस क्षेत्र में कार्यरत प्रतिद्वन्द्वियों को खत्म करता है। खुद अमेरिका की आज की स्थिति यह है कि वहाँ की छोटी रिटेल चेन खत्म हो गई है। खुद राष्ट्रपति ओबामा लोगों को छोटे स्टोर से चीजें खरीदने की अपील कर रहे हैं तो भारत को क्या हासिल होने वाला है? वालमार्ट ज्यादातर चीजें चीन से खरीदता है। चीनी माल की क्वालिटी के बारे में सभी जानते हैं। ये विदेशी कम्पनियाँ घटिया माल बेचकर भारी मुनाफा अपने देश में ले जाना चाहती हैं और दूसरी ओर भारत के करोड़ों लोगों को बेरोजगार और दरिद्र बनाना चाहती हैं।
यह कदम कृषि और लघु उद्योग क्षेत्र को भी भारी नुकसान पहुंचा सकता है। पारम्परिक किराना स्टोरों को भी मुश्किलों का सामना करना होगा क्योंकि ग्राहकों को फायदा पहुंचाने के मामले में ये हमेशा पीछे रहे हैं। सबसे महत्वपूर्ण है कि हमारे देश के ढीले मानकों का उल्लंघन कर बड़े पैमाने पर स्वास्थ्य के लिए हानिकारक खाद्य उत्पाद धकेले जा सकते हैं। भारतीयों में विदेशी उत्पादों की ललक अंग्रेजी काल से रही है। उन पर आंख मून्दकर विश्वास करने की मानसिकता रही है। भारत में स्वास्थ्य, सुरक्षा और दूसरे गुणवत्ता मानकों की धज्जियाँ उड़ती रही है। ऐसी स्थिति में सैकड़ों लोगों का रोजगार छिन जाता है और इससे सामाजिक ताने-बाने को नुकसान पहुंचता है। रिटेल से जुड़े लोग ज्यादातर युवा होते हैं और जब रोजगार छिनता है तो छोटे-मोटे अपराधों की ओर मुड़ जाते हैं। कुल मिलाकर यह देशी खुदरा कारोबारियों के अस्तित्व पर ही संकट खड़ा कर देगा। इसको देखते हुए कारोबारी तबका हर सम्भव तरीके से इसका कड़ा विरोध करेगा। यह केवल कारोबारियों को ही नुकसान नहीं पहुंचाएगा बल्कि किसानों, ट्रांसपोर्टर, कामगारों और खुदरा कारोबार से जुड़े कई अन्य पक्षों के लिए भी घातक साबित होगा।
अगर भारत में बहुब्राण्ड खुदरा को मंजूरी दे दी जाती है तो वैश्विक रिटेलरों का मकसद बाजार में उतरते ही ज्यादा से ज्यादा बाजार हिस्सेदारी हासिल करना होगा। उनकी क्षमताओं तथा सरकार से नजदीकी को देखते हुए ऐसा करना मुश्किल भी नहीं होगा और जब एक बार वे बाजार पर काबिज हो जाएंगे तो फिर मनमाने तरीके से बाजार को चलाएंगे और लोगों से मनमाने दाम वसूलेंगे।
पिछले दिनों हमने दिल्ली की अनेक कालोनियों का सर्वेक्षण किया, ताकि रिटेल सेक्टर में पहले से मौजूद बड़ी कम्पनियों के प्रभावों का अध्ययन कर सकें। परिणाम बताते हैं कि पॉश कालोनियाँ ही नहीं बल्कि अनधिकृत बस्तियों में छोटे दुकानदारों की बिक्री भी प्रभावित हुई है।
पश्चिम दिल्ली व्यापार संघ के प्रवक्ता ने बताया कि सीलिंग के विरुद्ध सारी दिल्ली एकजुट थी, सरकार को गलत नीतियों पर पुनर्विचार करने पर मजबूर होना पड़ा। पर अब छोटे दुकानदार पर फिर से खतरे के बादल मण्डरा रहे हैं, कहीं कोई हलचल नहीं है। लगता है जैसे राजनीति के सारे धुरन्धरों ने भी हमारी बर्बादी को अपनी स्वीकृति दे दी हो।
इन विदेशी कम्पनियों के पास अपार धन है। वे वर्षों के घाटे को सहन करने को तैयार हैं। लेकिन छोटे व्यापारी ज्यादा दिन तक घाटा बर्दाश्त नहीं कर सकते। ऐसे में धीरे-धीरे इन कम्पनियों का एकाधिकार हो जाएगा और जो लोग आज खुश हो रहे हैं उन्हें भी एक दिन पछताना पड़ेगा। यदि इस सिलसिले को रोका नहीं गया, तो देश के खुदरा दुकानदारों की बर्बादी तय है। देश में लगभग 8 करोड़ छोटे व्यापारी हैं। यदि एक दुकान से 5 व्यक्तियों के परिवार की रोजी-रोटी को निर्भर मान लिया जाए, तो देश के लगभग 40 करोड़ लोग खुदरा व्यापार से अपना जीवन चलाते हैं। देश की इतनी बड़ी जनसंख्या को रामभरोसे छोड़ देना किसी भी जिम्मेदार सरकार के एजेण्डे में नहीं हो सकता। फल-सब्जी बेचने वाले हों या किराने जैसा छोटा-मोटा काम करने वाले, यह जैसे-तैसे अपना गुजारा करने वाला वर्ग है। यदि इनकी रोजी-रोटी छीन ली गई तो उनके भटकने का भी खतरा है, जिससे समाज की शान्ति भंग होगी। सरकार को हर पहलू पर विचार करने के बाद ही इस बारे में फैसला करना चाहिए। विडम्बना है कि गान्धी का नाम लेने वाले ही गान्धी के दर्शन से दूर भाग रहे हैं।
देश का विकास तभी सार्थक माना जा सकता है, जब समाज के आखिरी आदमी का जीवन स्तर भी सुधरे। आज सरकारी नौकरियाँ घट रही हैं, निजीकरण के कारण छटनी बढ़ रही है, रोजगार के अवसर दिन-प्रतिदिन कम होते जा रहे हैं। ऐसे में स्वरोजगार ही एक मात्र विकल्प बचता है। पर छोटा-मोटा व्यापार करने वालों पर इन बड़ी कम्पनियों का प्रभाव पड़ना लाजमी है। इसलिए नेताओं को दोहरा आचरण छोड़कर बहुजन हिताय बहुजन सुखाय काम करना चाहिए। - डॉ. विनोद बब्बर (दिव्ययुग- फरवरी 2013)