विशेष :

पति सम्राट हो न हो पत्नी साम्राज्ञी हो सकती है

User Rating: 0 / 5

Star InactiveStar InactiveStar InactiveStar InactiveStar Inactive
 

पत्नी को साम्राज्ञी घोषित करने के सम्बन्ध में वेद से अधिक उदात्त उपकारक उद्गार अन्यत्र कहाँ मिलेंगे! आइए! कुछ निदर्शन करें।

यथा सिन्धुर्नदीनां साम्राज्यं सुषुदे वृषा।
एथा त्वं सम्राज्ञ्येधि पत्युरस्तं परेत्य॥ (अथर्ववेद 14.1.43)

(यथा) जैसे (वृषा) बलवान् (सिन्धुः) समुद्र ने (नदीनाम्) नदियों का (साम्राज्यं) साम्राज्य- चक्रवर्ती राज्य अपने लिए उत्पन्न किया है। हे वधू! (एव) वैसे (त्वम्) तू (पत्युः) पति के (अस्तम्) घर (परेत्य) पहुँचकर (सम्राज्ञी) राजराजेश्‍वरी (एधि) हो।

सम्राज्ञ्येधि श्‍वशुरेषु सम्राज्ञ्युत देवृषु।
ननान्दुः सम्राज्ञ्येधि सम्राज्ञ्युत श्‍वश्रवाः॥ (अथर्ववेद 14.1.44)

हे वधू ! तू (श्‍वशुरेषु) अपने ससुर आदि गुरुजनों के बीच (साम्राज्ञी) राजराजेश्‍वरी (उत) और (देवृषु) अपने देवरों आदि कनिष्ठ जनों के बीच (साम्राज्ञी) राजराजेश्‍वरी (एधि) हो। (ननान्दुः) अपनी ननद की (साम्राज्ञी) राजराजेश्‍वरी (एधि) हो (उत) और (श्‍वश्रवाः) अपनी सास की (साम्राज्ञी) राजराजेश्‍वरी (एधि) हो।

आपने देखा कि वेद ने स्थान-स्थान पर पत्नी को साम्राज्ञी के रूप में सम्बोधित किया है। आइए, समीक्षा करें कि यह मात्र कोरी कल्पना है या इसमें कोई वास्तविकता भी है। पुरुष चाहे चपरासी हो, अधिकारी हो, मन्त्री या महामन्त्री कुछ भी क्यों न हो, वह अपने से उच्चपदस्थ किसी न किसी की आधीनता में अवश्य रहता है। राष्ट्राध्यक्ष हो जाने पर भी उसे अपनी संसद के नियन्त्रण का पालन करना पड़ता है। यदि वह उच्छृफल या तानाशाह हो जाता है तो एक दिन न केवल उसका पतन हो जाता है प्रत्युत उककी हत्या भी कर दी जाती है। प्राचीन-अर्वाचीन इतिहास में ऐसे उदाहरण भरे पड़े हैं। यही नहीं नवीन उदाहरण भी सामने आते जाते हैं। अब नारी के पक्ष में विचार करें तो हम पायेंगे कि वह चाहे शासक-प्रशासक-अधिकारी-कर्मचारी या चपरासी की पत्नी ही क्यों न हो, केवल पत्नी होती है। पत्नी होने से ही वह गृहलक्ष्मी, देवी और घर की रानी बन जाती है। परिवार चाहे बड़ा हो या छोटा, सम्पन्न हो या विपन्न, सुविधा-असुविधा की हर दशा में वह घर की सूत्रधारिणी होती है।

प्रस्तुत मन्त्रों की भावभूमि को स्पर्श करें तो पता चलता है कि नदियाँ पर्वत से चलकर समुद्र को अपना जल देती रहती हैं। जल के साथ जगत के त्याज्य पदार्थ भी समुद्र में जाते रहते हैं। समुद्र संसार के खारेपन को सहन करता रहता है। किन्तु सूर्य किरण रूपी हाथों के द्वारा मेघों को अपना शुद्ध जल प्रदान कर वर्षा से पुनः नदियों को भर देता है। ऐसे ही पत्नी को अपने घर के भाव-अभाव, सुख-दुःख को सहन करते हुए परिजनों का पोषण करना पड़ता है, क्योंकि वह समुद्र की भांति धीर-गम्भीर साम्राज्ञी जो है। मन्त्र में परिवार के सभी बड़े-छोटे पुरुष-स्त्री के साथ वधू को साम्राज्ञी की तरह व्यवहार करने का निर्देश है। साम्राज्ञी का साम्राज्य स्वयं शब्द-ध्वनि से ध्वनित है। जो (साम+राज्य) सबके प्रति मधुर या प्रिय व्यवहार का सूचक है।

पति महोदय मासिक-दैनिक आय या वेतन घर में लाकर पत्नी को पकड़ा देते है और निश्‍चिन्त हो जाते हैं। घर की व्यवस्था पत्नी को करनी पड़ती है। पुरुष प्रातः घर से निकलकर रात्रि में घर आता है। घर की स्वच्छता, वस्तुओं का रखरखाव तथा उनकी आपूर्ति-प्रबन्ध की योजना गृहिणी को ही बनानी पड़ती है। परिवार में पति से बड़े-छोटे स्त्री-पुरुष-बालक-बालिकाओं का ध्यान उसी को रखना होता है। इस प्रकार पत्नी के अनुशासन से घर में सुख का साम्राज्य बढ़ता जाता है। इसमें पति महोदय की भूमिका एक सहायक की अवश्य होती है। पति एक बार अपनी आय पत्नी को पकड़ा तो देते हैं, पर धीर-धीरे उससे मांग-मांगकर व्यय करते जाते हैं। इस प्रकार सभी कुछ भले व्यय हो जाए, किन्तु पारस्परिक समझदारी से सौहार्द के वातावरण का सृजन हो जाता है। पत्नी अनजाने में भी कुछ न कुछ भविष्य के लिए बचत भी कर लेती है।

कुछ लोग ऐसा करते हैं कि पत्नी को पता भी नहीं लगने देते हैं कि क्या आय है। अपनी या घर की छोटी-बड़ी आवश्यकताओं की मांग पत्नी पति से करती रहती है। कभी मांग की पूर्ति हो जाती है कभी नहीं। ऐसी दशा में दोनों के मध्य एक स्वस्थ संतुलन नहीं बन पाता है। पत्नी आय को अधिक समझकर मांग बढ़ा सकती है अथवा कम समझकर पूर्तियां रिक्त रह सकती है। अंगुलियों पर गिने जाने वाले अति सम्पन्न उच्च व्यापारिक घरानों को यदि अपवाद रूप में छोड़ दिया जाये, जहाँ असीम आय का पता स्वयं उसके स्वामी को भी नहीं रहता है, वहाँ भी पारिवारिक मांगें लगभग सबकी समान ही होती हैं। मूल्य की कोटि या गुणवत्ता में भले अन्तर हो किन्तु जन्म, मृत्यु, विवाह, नामकरण, यज्ञोपवीत, पर्व, पूजन, यज्ञ-दान, शिक्षा, अतिथि-सत्कार आदि कृत्य तो सभी को करने पड़ते हैं।

घर के बाहर जो भी होता है वह सब व्यापार है, घर के अन्दर जो रहता है वह परिवार है। दोनों क्षेत्रों में आचार-विचार एवं व्यवहार के एक सौम्य धरातल की आवश्यकता है। घर में इनसे अधिक ‘आहार’ एक मुख्य पोषक कारक है। बाजार के भोजनालय कोई स्थायी व्यवस्था नहीं है। स्थायी रूप से भोजन के लिए हर व्यक्ति को परिवार में ही आना पड़ता है। यह सुस्वादु, स्वास्थ्यवर्धक भोजन गृहिणी के द्वारा ही परोसा जाता है। भोजन के हर ग्रास के साथ पति और परिजनों को मिलती हैं यथायोग्य सम्बन्ध से संलिप्त गृहिणी की मनोहर रम्य मोहक भव्य भावनाएं, जिससे वह रूखा-सूखा भोजन भी अमृत का रूप धारण कर लेता है। कुछ समय पूर्व पढ़ा था कि ब्रिटेन की प्रधानमन्त्री श्रीमती माग्रेट थैचर का रुचिकर कार्य था, परिवार के लिए भोजन पकाना और खिलाना। भारतीय प्रधानमन्त्री श्रीमती इन्दिरा गांधी के विषय में भी पहले ऐसा ही सुना गया था। शासनाध्यक्षा का पद पाकर भी उन्हें गृहिणी का पद लुभाये रहता है। क्योंकि अन्य किसी भी पद से तो कभी भी हटना पड़ सकता है, किन्तु गृहस्थ की साम्राज्ञी के पद से तो उन्हें कभी कोई नहीं हटा सकता है।

पति तो कोई-कोई ही शासक या सम्राट् हो सकता है, किन्तु पत्नियाँ सभी साम्राज्ञी हो सकती हैं। पत्नी को साम्राज्ञी बनाये रखने के वेद-सन्देश की जहाँ अवहेलना होती है, पत्नियों की उपश्रेणीय या निम्न समझ लिया जाता है अथवा उसके निष्कासन या परित्याग का अप्रिय प्रसंग उत्पन्न हो जाता है, वहाँ परिवार के सुख-साम्राज्य का पतन हो जाता है और वहाँ छा जाता है नरक का वेदनापूर्ण राज्य। पत्नी साम्राज्ञी बनकर स्वच्छन्द स्वेछाचारिणी नहीं होगी, प्रत्युत वह (पत्युरनुवृता, अर्थववेद 14.1.42) पति के व्रत-संकल्प के अनुरूप बनकर उसकी सच्ची सहधर्मिणी सिद्ध होगी। आइये ! वेद के सन्देश को स्वीकार कर अपनी ही भलाई के लिए पत्नी को अपनी साम्राज्ञी बनायें। - पं. देवनारायण भारद्वाज

Husband May Not Be Emperor, Wife May Become Empress | Pati-Patni | Wife | Ved | Sanskrati | Sachhai | Agriculture | Horticulture | Culture | Colere | Navjagaran | Lakshya | Hinduism | Bharat | Goumata | Sanatan | Mandir | Prachin Itihas | Manushya | Evils | Aryavart |