विशेष :

भाव परिवर्तन

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bhav Parivartan

दृष्टिकोण अथवा भाव एक ही अर्थ को व्यक्त करने के लिये बहुधा प्रयुक्त किये जाते हैं। एक प्रदर्शिनी में एक ऐसा चित्र दिखाया गया था, जो सामने से देखे जाने पर देश के एक बहुत बड़े नेता का चित्र ज्ञात होता था और दक्षिण तथा वाम पक्ष से देखे जाने पर अन्य व्यक्तियों के चित्र जान पड़ते थे। यह दिशा-भेद से रूप भेद का उदाहरण है। आपने दिल्ली में राष्ट्रपति भवन के अनेक चित्र देखे होंगे। प्रत्येक में आपको भिन्नता मिली होगी। यह भिन्नता इतनी अधिक होती है कि यह सोचकर अत्यन्त आश्‍चर्य होता है कि एक ही वस्तु के सब चित्र होने पर भी उनमें इतनी भिन्नता कैसे आ गई।

एक स्त्री किसी की पत्नी है, किसी की माता, किसी की बेटी और किसी की सास है। इसी प्रकार एक पुरुष के भी अनेक तथा पृथक-पृथक सम्बन्ध होते हैं। इन्हीं सम्बन्धों के अनुसार एक व्यक्ति के प्रति हमारे जैसे भाव होते हैं, दूसरे के प्रति उनसे सर्वांश में भिन्नता होना स्वाभाविक है। हमारे भावों में भेद होने के कारण हमारे व्यवहार में भी भेद देखा जा सकता है। जिसे हम गुरु भाव व पूज्य भाव से देखते हैं, उसके सम्मुख आ जाने पर तुरन्त आसन छोड़कर उच्चासन ग्रहण करने के लिए हमारा प्रार्थी होना स्वभाव सिद्ध है। मित्र के मिलने से हृदय की कली प्रसन्नता से खिल जाती है और आमोद-प्रमोद की भावना जाग्रत हो जाती है। जबकि किसी के शत्रु होने पर उसके विरुद्ध भावनायें मन में स्थान पाती हैं। एक व्यक्ति के साथ हम बाल्यावस्था से खेले, साथ-साथ पढाई की, वर्षों आमोद-प्रमोद के अवसरों पर सम्मिलित हुये, बड़ी-बड़ी लम्बी यात्राओं के कष्ट साथ ही साथ उठाये और प्रकृति के दृश्यों को भी हम दोनों ने साथ-साथ देखा। परन्तु किसी कारणवश उसके साथ हमारा मनोमालिन्य हो गया। मित्रता के भाव विलीन हो गये और अब हृदय पारस्परिक द्वेष से पूर्ण हो गये हैं। इस प्रकार कल के घनिष्ट मित्र आज घोर शत्रुओं में बदल गये। वही व्यक्ति है, कल जिसके मिलने से हृदय प्रेम से द्रवित हो जाता था, आज वही हमें फूटी आंखों नहीं सुहाता। यदि सम्मुख आ जाए तो कदाचित गोली से उड़ा दिया जाये। देखें भाव परिवर्तन के चमत्कार!

इसी प्रकार जो कल तक हमारा शत्रु था, हमें देखकर जिसके हृदय में क्रोध और घृणा का बवण्डर उठ खड़ा होता था, भाव परिवर्तन के प्रभाव से ऐसा होना सर्वथा स्वाभाविक है कि आज वह हमारे लिये मंगल कामनायें करता हुआ देखा जाये। हमारे सुख साधन के निमित्त वह अपना रक्त तक बहाने को उद्यत हो और हमें देखकर उसकी आंखों में आशा और स्नेह का उद्यान खिल उठे। दृष्टिकोण और भाव परिवर्तन ने संसार में क्या से क्या करके नहीं दिखा दिया! जब कभी संसार को महायुद्धों ने क्षत-विक्षत किया है, यदि आप छानबीन करेंगे तो आपको विदित होगा कि इसका अधिकाधिक उत्तरदायित्व विभिन्न राष्ट्रों के विद्वेषपूर्ण भाव और त्रुटिपूर्ण विचार शैली पर है। इसी प्रकार यदि आज संसार में सुख और शान्ति का साम्राज्य हो जाए और सारे संसार के प्राणी उन्नत व्यवस्था को प्राप्त होकर समृद्धिशाली हो जाएं, तो इस सबका श्रेय भी मनुष्य की भावात्मक विचार शैली को ही जाएगा।

यदि आज आपने एक बार हाँ कहने का साहस बटोर लिया है, तो विश्‍वास कीजिये कि भविष्य पर आपका अधिकार हो चुका। फिर इस पृथ्वीमण्डल पर कोई शक्ति ऐसी नहीं है, जो आपको आपके इस अधिकार से अधिक समय तक वंचित रख सके। क्योंकि आप और आपके विचार अनन्त काल के लिये अमर हैं और भविष्य आपका अनुचर बन चुका है। जो पुरुष धैर्यवान् है और जिसने एक बार प्रतिज्ञा कर ली है, उसके लिये पृथ्वीमण्डल घर के आंगने के समान है, समुद्र बरसाती गड्ढे के समान है और पाताल लोक भूमि के तुल्य तथा सुमेरु पर्वत बाम्बी के बराबर है।

क्या मनुष्य का जीवन इसलिये है कि वह सदा अपने भाग्य का रोना रोता रहे? उठो और देखो, पूरब में सूर्य अपनी पूर्ण प्रतिमा और सर्वकलाओं से उदय हो रहा है। सोचो, और बताओ! मनुष्य का मार्ग आज तक कौन रोक पाया है? क्या उच्च पर्वत श्रेणियाँ? क्या विशाल नदियाँ और अगाध तथा अनन्त समुद्र? नहीं!

आप कहेंगे कि मृत्यु हमारे मार्ग का रोड़ा है। परन्तु ऐसा नहीं है। आप पुनः कहेंगे कि दरिद्रता, दासता, कलियुग रोग और ईर्ष्या हमारे मार्ग को अवरुद्ध करेंगे। परन्तु विश्‍वास करिये वे आपकी आज्ञानुसार बदलेंगे और सहायक होंगे, यदि आपने एक बार ही अपना सुमार्ग निश्‍चयपूर्वक सदा के लिये चुन लिया है और दूसरी इच्छाओं को स्थान न देने की प्रतिज्ञा कर ली है। आपको अपना उद्देश्य दृढ़ निश्‍चय की भूमि पर जमाना होगा और जब एक बार उसको भले प्रकार जमा लिया गया, तो बड़े से बड़े मोहक प्रलोभनों से वह आपकी रक्षा करेगा। जब ऐसा हो जाएगा तब संसार की प्रत्येक घटना, प्रत्येक प्राणी और प्रत्येक वस्तु आपके स्पर्श मात्र से आपके उद्देश्य से एकता प्राप्त करने के लिये बाध्य हो जाएगी । क्योंकि आपका उद्देश्य स्वयं सम्पूर्ण जीवन के प्रवाह के अनुकूल निर्माण किया गया है।
इस प्रकार आप संघर्षमय जीवन को कलामय बनाने में, झाड़-झंकाड़पूर्ण वन को स्वर्ग-कानन बनाने में सफल मनोरथ होंगे। 

जिनकी रही भावना जैसी, प्रभु मूरति देखी तिन जैसी। - डॉ. रामस्वरूप गुप्त

जीवनोपयोगी चिन्तन

1. किसी भी व्यक्ति पर कीचड़ उछालना बड़ा सरल काम है, किन्तु अपने गिरेबान में झाँककर देखना निश्‍चय ही टेढ़ी खीर है।
2. किसी भी व्यक्ति की शिक्षा उसके संस्कारों के आधार पर प्रमाणित होती है, उपाधियों के आधार पर नहीं। सदाचारी एवं विचार-प्रधान नागरिक ही किसी देश की सबसे बड़ी पूंजी होती है।
3. भाग्यवादी एवं आलसी में मानसिक अपंगता होती है।
4. आत्मनिर्भरता ही जीवन है।
5. किसी भी व्यक्ति का चिन्तन उसकी सच्चरित्रता (या चरित्रहीनता) का परिचय देता है।
6. जो माँ-बाप संस्कारविहीन सन्तानें समाज और देश पर थोपते हैं, वे निश्‍चय ही बहुत बड़ा अपराध करते हैं।
7. किसी भी व्यक्ति के आर्थिक स्तर एवं जीवन-स्तर का निर्माण उसके मानसिक स्तर के आधार पर होता है।
8. अर्जित योग्यता सम्पन्न व्यक्ति ‘भूषण’ होता है जबकि आरोपित योग्यता सम्पन्न व्यक्ति ‘दूषण’।
9. व्यक्ति की जिजीविषा का आधार इसकी कर्मशीलता होती है।
10. हर दम्पत्ति को अपनी गृहस्थी मिल-जुलकर चलानी चाहिए। आर्थिक दृष्टि से भी तथा गृहविज्ञान की दृष्टि से भी। आज के ज्ञान-विज्ञान प्रधान युग में दम्पत्ती को अकादमिक उपलब्धियाँ अर्जित करने के लिए सम्पूर्ण मन से सचेष्ट रहना चाहिए।
11. ‘गीता’ जीने की कला का मार्गदर्शक ग्रन्थ है। - डॉ. महेशचन्द्र शर्मा

Vigyan | Geeta | Bhavnaye | Chamatkar | Mrityu | Kaliyug | Jeevan | Daridrata | Dasta | Vichar | Sangharsh | Self | Charitra | Samaj | Santan | Akagrata | Sankalp | Shanti | Concentration | Transcendental Meditation | Compatibility | Perversity | Salvation