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दर्पण देखने की विधि

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दर्पण में अपना मुख देखने की सबको इच्छा रहती है और इच्छा स्वाभाविक है ।

हमारी आँखें संसार को देख सकती हैं, परन्तु अपने को देखने में असमर्थ हैं । इस असमर्थता को दूर करने के लिए दर्पण की विधि का आविष्कार हुआ । प्रश्‍न यह है कि दर्पण के प्रयोग का असली अभिप्राय क्या होना चाहिए ? मुख देखने में सुन्दरता का भी भाव है । शृंगार-रस से इसका संबन्ध है । मान और शान का भी भाव है । लोक-लज्जा से भी इसका बड़ा सम्बन्ध है । हमें दर्पण में अपना मुंह केवल इस अभिप्राय से नहीं देखना है कि देखने के काबिल है या नहीं। ईश्‍वर ने मुख अनेक प्रकार के प्रदान किये हैं । रंग और रूप का भेद है । रंग और रूप में आयु के आधार पर भी परिवर्तन होता रहता है । स्वास्थ्य और रोग की दशा का भी मुख की आकृति पर प्रभाव पड़ता है। संसार में जितने प्राणी है, सबके मुखों की आकृति निराली है । यदि एक जैसी आकृतिवाले दो व्यक्ति मिल जाते हैं, तो बड़ा आश्‍चर्य होता है । ईश्‍वर के पास न मालूम कितने सांचे हैं, जिनमें उसने अनेकों प्रकार के मुख ढाल दिये है। दर्पण देखकर अपने मुख की सुन्दरता पर, आकृति पर गर्व करना भूल है । ईश्‍वर की रचना में एक से एक सुन्दर आकृतिवाले दिखाई देते हैं ।

दर्पण का बालों से भी बड़ा सम्बन्ध है । बालों के ढंग निराले हैं । कोई अंग्रेजी बाल रखता है और कोई देशी । नाइयों की मजदूरी बढती जा रही है । एक समय था जब दो चार आने या उससे भी कम में बाल कटाये जा सकते थे । अब तो रुपयों का प्रश्‍न है । यदि दर्पण केवल इस अभिप्राय से प्रयोग में लाया गया कि स्त्री और पुरुष अपना मुँह देखकर सन्तुष्ट होते रहें तथा कभी-कभी अभिमान करने लगें, तो दर्पण के प्रयोग का कोई लाभ नहीं । दर्पण देखने का असली उद्देश्य यह होना चाहिए कि दर्पण देखते समय यह भावना सम्मुख रहे कि मुँह दिखाने योग्य है या नहीं । चरित्र की जांच के लिए भी दर्पण का प्रयोग आवश्यक है । मुख देखते समय यह बात ध्यान में रखनी चाहिए कि मुख पर कोई दाग-धब्बा तो अनुचित रूप से नहीं लगा। कोई चरित्र-दोष तो ऐसा नहीं है, जिससे मुख पर कलंक लग गया हो या लगने की संभावना हो । वैदिक संस्कृति में विचारों के परिवर्तन पर भी बहुत बल दिया गया है । जिससे पाप या अपराध हो जाता है, उसको लज्जा के कारण मुँह छिपाना पड़ता है । दंड देने वाले या न्याय देने वाले से आँख छिपानी पड़ती है । दर्पण में मुख देखते समय हमें यह ध्यान रहे कि हम अपनी दिनचर्या या किये काम पर एक दृष्टि डालकर यह जांच लें या ध्यान कर लें कि कोई ऐसा काम तो नहीं हुआ, जिससे मुंह छिपाना पड़े । यदि दर्पण देखते समय यह भावना रहेगी, तो अपराधों व पापों से बचने का स्वभाव हो जायेगा। यदि यह भावना नहीं रही, तो दर्पण देखने की प्रथा निष्प्रयोजन है ।

जब हम शान व मान के लिए दर्पण देखें तो ईमान पर ध्यान रखना चाहिए । ईमान के बिना न शान रहती है, न मान रहता है ।

हाल देखने के लिए भी दर्पण की आवश्यकता है। चेहरे का रंग कैसा है ? चेहरा उतरा हुआ तो नहीं है ? आवश्यकता से ज्यादा दुर्बल तो प्रतीत नहीं होता । यदि इस प्रकार अपने हाल पर चिन्तन करना है, तो इसके साथ चाल पर ध्यान भी देना होगा । हमारा हाल हमारी चाल से सम्बन्धित है । जैसा चाल-चलन होगा, वैसी दशा होगी । अपने हाल पर दुखी होना और चाल की ओर ध्यान न देना बड़ा हानिकारक है । हमें सुख व दु:ख दोनों स्थितियों में अपनी चाल पर दृष्टि रखनी होगी । सुख में अभिमान से बचे रहना चाहिए और दु:ख में असंतोष से ।

दर्पण का सम्बन्ध तन-मन-धन तीनों से है । धन से अभिप्राय आर्थिक परिस्थिति से है। यदि अर्थ के नाम पर अनर्थ करके अर्थ का संचय किया गया, तो फिर धन प्राप्त हो जाने पर भी दर्पण देखते समय दु:ख ही होगा ।

तन के सम्बन्ध में भी यही बात है । यद्यपि तन के वस्त्र को दर्पण द्वारा देखने से आनन्द होता है, परन्तु यदि दुराचार इत्यादि में तन की शक्ति का अपव्यय किया गया है तो दर्पण देखते समय शोक होगा । दर्पण का असली सम्बन्ध मन की पवित्रता से है । एक पुरानी कहावत है-मुखड़ा क्या देखे दर्पण में,जाके दया धर्म नहीं मन में । मन का दर्पण हमारा चरित्र और ईमान है । धन का दर्पण हमारा व्यवहार है और व्यापार की विधि है।

उसी दर्पण में मुख देखा जा सकता है, जो टूटा हुआ न हो, साफ हो और हिलता न हो । आत्मा के लिए मन दर्पण है । मन को स्थिर रखना है, पवित्र रखना है और शान्त रखना है । इससे आत्मा के स्वरूप का भान होगा और आत्मा के स्वरूप से परमात्मा के स्वरूप का भान होगा । यदि दर्पण के प्रयोग में इस प्रकार का मनोविज्ञान रहेगा, तो दर्पण हमारे चरित्र का आधार और भक्ति का साधन बन सकता है । यदि केवल तन की दृष्टि से दर्पण देखा जाए, तो मन अपवित्र हो सकता है और तन भी संकट में आ सकता है ।•

Mirror Viewing Method | Darpan | Divya Sandesh | Shanti | Adhyatmikta | Sarvshaktiman | Bhawna | Sanstrati | Desh Prem | Purusharth | Viveksheel | Gyan | Ved Path | Ved | Sanskrati | Sanatan | Dharm | Karm | Dhyan-Vigyan | Akagrata | Sankalp | Shanti | Parivartan | Unrest | Science | Transcendental Meditation | Compatibility | Perversity | Salvation | India | Arya Samaj Mandir Annapurna Indore | आर्य समाज मन्दिर अन्नपूर्णा इन्दौर


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