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पहली जनवरी नववर्ष नहीं

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यह अन्धी प्रथा क्यों चल रही है? इसे कौन चला रहा है? इसके पीछे किसकी प्रेरणा है?
31 दिसम्बर और एक जनवरी को ज्योतिष या मौसम की दृष्टि से भारत में कोई परिवर्तन नहीं होता, जिससे इस समय को वर्षान्त या वर्षारम्भ माना जा सके। गणित ज्योतिष के हिसाब, सूर्य और नक्षत्रों की गति के हिसाब या संक्रान्तियाँ वर्षारम्भ माने जा सकते हैं। जनसाधारण के लिए मौसम का परिवर्तन भी वर्षारम्भ का द्योतक माना जा सकता है। वर्ष शब्द इस बात द्योतक है कि किसी समय वर्षा ऋतु के आरम्भ या अन्त से वर्ष की गणना होती थी।

बाद में यह गणना शरद् या शिशिर ऋतुओं के आधार पर होने लगी। जीवेम शरदः शतम् या शतं समाः आदि प्रयोग इसके सूचक हैं। परन्तु भारत के किसी भी भाग में 31 दिसम्बर को कोई भी ऋतु समाप्त या शुरु नहीं होती। फिर इस समय वर्षान्त या वर्षारम्भ मानना निरी भेड़चाल है। क्योंकि यूरोप और अमेरिका के ईसाई इस समय नववर्ष मनाते हैं, इसलिए भारत के हिन्दू और मुसलमान भी मनायें?

फिर नववर्ष मनाने का तरीका क्या है? शराब पीओ, नाचो-कूदो, लड़ो-झगड़ो, अतिशबाजी चलाओ। क्यों? कोई लाभ हुआ है? कोई खुशखबरी मिली है? भुखमरी बढ़ रही है, अपराध बढ़ रहे हैं, हत्याएँ और आत्महत्याएँ हो रही हैं। उद्योग-धन्धे मन्दी से ग्रस्त हैं। आतंकवादी हिंसा सब ओर फैल रही है। फिर भी नववर्ष के नाम पर ठिठुरती रात में जो नववर्ष की गुण्डागर्दी करते हैं, वे कौन लोग हैं? और वे ऐसा क्यों करते हैं?

ये नवधनाढ्य, अंगे्रजी भाषी, सैक्युलरवादी, मद्यप विश्‍व मानव हैं, जिनका पैसा उनकी जेबों में सम्भाले सम्भलता नहीं है। और जो उसे भाग्यहीन पड़ोसियों की सहायता से लगाने के इच्छुक नहीं है। भारत या भारतीय से उनका कुछ लेना-देना नहीं है। विदेशी भाषा, विदेशी साज समान, विदेशी सभ्यता, विदेशी संस्कृति, विदेशी संगीत, विदेशी नृत्य और फैशन शो, विदेशी आचार-विचार में जो रम गये हैं, इन्हीं को 31 दिसम्बर की मध्यरात्रि में नववर्ष मनाने का भूत चढ़ता है।

भारतीय परम्परा से मनाना हो तो नववर्ष सूर्योदय के साथ शुरू होगा, अन्धेरे में नहीं उजाले में। वह शिशिर ऋतु की समाप्ति होने पर बसन्त ऋतु के आगमन से शुरु होगा। तब पतझर से नंगी हो गई डालों पर कलियाँ आयेंगी, फूल खिलेंगे, लाखों करोड़ों फूल, जिनसे वनभूमियां रंग जायेंगी और वायु सगुन्धित हो उठेगी। उसके बाद निकलेंगे कोमल, चिकने, सुकुमार नवपल्लव। कोयल कूककर बतायेगी कि नया वर्ष आ गया है। जब फागुन समाप्त होकर चैत्र शुरू हो, तब नववर्ष मनाने का मुहूर्त होगा। वह भी मदिरा पीकर हुड़दंग मचाकर नहीं अपितु पिछले वर्ष की उपलब्धियों और विफलताओं का हिसाब लगाकर आगामी वर्ष के लिए नई सफलताओं का संकल्प करके। सोद्देश्य जीवन बिताने के अभिलाषी सभ्य, सुसंस्कृत भारतीय नरनारियों का तो नववर्ष मनाने का यह समय और यह तरीका होगा।

31 दिसम्बर की रात को जो नववर्ष मनायें समझियें कि वे किसी अन्य देश, अन्य सभ्यता और अन्य संस्कृति के पुजारी हैं, जो विधाता की भूल से इस देश में आ फंसे हैं। ये लोग मात्र मुट्ठी भर हैं, 5 प्रतिशत से भी कम। बाकी 95 प्रतिशत तो भारतीय किसान और श्रमिक ही हैं। - सुनीति

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