विशेष :

अपनी कमजोरियों को दूर करें

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* उच्चतम स्थिति तक पहुँचने में रूकावटें तो आती ही हैं, ऐसे में उत्साह, धैर्य एवं समझदारी से काम लेना चाहिए।
* प्रत्येक मनुष्य को अपना विवेक जाग्रत करके अपनी कमजोरियों को दूर करना चाहिए।
* अहंभाव से ग्रस्त व्यक्ति को तोड़-फोड़ की बात करने वाले तो अपने हितैषी दिखाई देते हैं तथा जोड़ने की बात करने वाले शत्रु।
* संस्कारवान् व्यक्ति का शरीर स्वस्थ रहता है, मन प्रसन्न रहता है तथा जीवन में खुशहाली बनी रहती है।

* अच्छे संस्कार नैतिक कार्य करवाकर हमें सुख दिलाते हैं, जबकि बुरे संस्कार हमसे अनैतिक कार्य करवाकर हमें दुःख प्रदान करते हैं।
* जीवन का सबसे बड़ा सदुपयोग यही है कि हम अपने अन्दर छिपी क्षमताओं की खोज में लगें और उनका सदुपयोग जीवन-जगत् के कल्याण में करें।
* जिस प्रकार पैर में जूता पहनने वाले व्यक्ति को मार्ग के कांटे व कंकर-पत्थर कष्ट नहीं पहुँचा सकते, उसी प्रकार सन्तोषी मन वाले मनुष्य के लिए सभी दिशाएं सदा सुखमय रहती हैं।
* मूर्ख मनुष्य विद्वानों को गाली और निन्दा से कष्ट पहुँचाते हैं। गाली देने वाला पाप का भागी होता है और क्षमा करने वाला पाप से मुक्त हो जाता है।
* क्योंकि पृथ्वी पर सुख और कल्याण का आधार सत्य है, इसलिए किसी भी विषय में जब तक झूठ हावी रहेगा, तब तक वहाँ सुख की आशा करना व्यर्थ है।
* जिन मनुष्यों के मन-वचन कर्म एक कार्य को करने से पहले सोच-विचार करते हैं। इसलिए उनके द्वारा कोई ऐसा कार्य नहीं होता, जिसे करके पछताना पड़े।
* समझ लेना और आचरण में ढालना इन दोनों बातों में रात-दिन का अन्तर है। इसलिए केवल समझ लेना ही पर्याप्त नहीं, अपितु समझ लेने के बाद आचरण में ढालना जरूरी होता है।
* जब तक शरीर स्वस्थ है, बुढापे के आक्रमण से बचा हुआ है, इन्द्रियों की शक्तियाँ क्षीण नहीं हुई, तभी तक विद्वान व्यक्ति को आत्म-कल्याण के लिए प्रयत्न कर लेना चाहिए।
* जीवन में सफल मनुष्य बनने के लिए मानसिक पापों का परित्याग अति आवश्यक है, क्योंकि मन में जमी हुई वासना ही मनुष्य को दुष्कर्म करने को प्रेरित करती है।
* सन्तोषी मन धर्म-मार्ग पर अटल रहता है, जबकि असन्तुष्ट मन व्यक्ति को अधर्म के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करता है।
* सन्तोष में सदा सुख है और असन्तोष में दुःख।
* जो संसार का हित चाहते हैं, वही मनुष्य उत्तम कथाओं (साहित्य) को कहने-सुनने व पढने में प्रवृत्त होते हैं, जबकि पाप-पारायण लोग पर निन्दा और दूसरों को कष्ट पहुँचाने में ही सुख तलाशते रहते हैं।
* जिसके लिए आप लाभकारी बन जाएंगे, वही आपका प्रेमी बन जाएगा। अतः दूसरों को जीतने का सहज उपाय है कि आप उनके लिए लाभकारी बन जाएं।
* आवश्यकता से अधिक व्यय करना विलासिता है। आवश्यकता वह है, जिसके बिना हमारा काम नहीं चल सकता है।
* जिस वस्तु या संसाधन के बिना हमारा जीवन-यापन, कार्य-व्यवहार, स्वास्थ्य, शिक्षा, सामाजिक शिष्टाचार आदि न चल सके, वह हमारी वास्तविक आवश्यकता है। इसके अतिरिक्त संसाधनों का ढेर एकत्रित करना या उनका उपयोग करना विलासिता है।
* हमारे धर्मग्रन्थों में लक्ष्मी का वाहन उल्लू कहा गया है। इसका सन्देश है कि जिस व्यक्ति के मस्तिष्क में हमेशा हाय पैसा-हाय पैसा रहेगा, उसे उल्लू कहा जाएगा, जिसे दिन में भी दिखाई नहीं देता इन्हें आँख होते हुए भी अन्धा है। माना जाएगा। आइये! हम स्वयं को देखं कि हम क्या हैं?
* आचार्य चाणक्य का कथन है कि अच्छी सरकार वह है जो कम से कम शासन करे।
* किसी के अच्छे या बुरे कर्म का फल तत्काल प्राप्त न होने पर यह न सोचें कि इन कर्मों का फल आगे नहीं मिलेगा। कर्मफल से कोई बच नहीं सकता, क्योंकि ईश्‍वर सर्वज्ञ, सर्वव्यापक और न्यायकारी है।
* जीवन की सफलता कुसंस्कारों पर अपनी आत्मा का नियन्त्रण बनाए रखने में है, मनमानी करने में नहीं।
* विषयभोग सदा ही मनुष्य को अपनी ओर खींचते रहते हैं, लेकिन ज्ञानी पुरुष अपने मन को नियन्त्रण में रखते हैं।
* नित्य स्वाध्याय करने वाला व्यक्ति दुःखों से मुक्त हो जाता है।
* चरित्र, सेवा और प्रामाणिकता से देश उन्नत होता है।
* सत्ता का कम से कम प्रयोग ही सुशासन है।
* जीवन न तो भविष्य में है और ना ही अतीत में, जीवन तो केवल वर्तमान में है।
* आत्म प्रशंसा मूर्खता की निशानी है।

There are obstacles to reach the highest position, in such a situation, enthusiasm, patience and understanding should be used. Every human being should awaken his conscience and overcome his weaknesses. Those who talk of sabotage, who are obsessed with ego, appear to be friendly and enemies who talk about adding. The body of a person who is cultured remains healthy, the mind remains happy and there is happiness in life.


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