विशेष :

कोई मनुष्य छोटा बड़ा नहीं होता

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ओ3म् अज्येष्ठासो अकनिष्ठास एते सं भ्रातरो वावृधुः सौभगाय।
युवा पिता स्वपा रुद्र एषां सुदुघा पृश्‍निः सुदिना मरुद्भ्यः॥ (ऋग्वेद 5.60.5)

ऋषिः श्यावाश्‍व आत्रेयः॥ देवता- मरुतो मरुतो वाग्निश्‍च॥ छन्दः निचृत्त्रिष्टुप्॥

विनय- संसार भर के सब मनुष्य (मरुत) परस्पर भाई-भाई हैं। मनुष्यमात्र एक ही माता-पिता के पुत्र हैं। संसार के किसी देश के एक कोने में रहने वाले मनुष्य के उसी तरह पिता ‘रुद्र’=परमेश्‍वर है और माता ‘पृश्‍नि’=प्रकृति है जैसे कि किसी दूसरे कोने के रहने वाले के। मनुष्य होने की दृष्टि से इनमें न कोई बड़ा है और न छोटा है। काले-गोरे, हबशी और सभ्य, पूँजीपति और श्रमी, पौर्वात्य और पाश्‍चात्य, ब्राह्मण और अछूत, हिन्दू और मुसलमान, जापानी या अमेरिकन, अंग्रेज या हिन्दुस्तानी, नागरिक व देहाती सब के सब एक समान परस्पर मनुष्य-भाई हैं। इनमें ऊँच-नीच मानना अज्ञान है। मनुष्य की दृष्टि से छोटा-बड़ा मानना अनुचित है। संसार भर के मनुष्यों को मरुत् देवों की तरह उत्तम कल्याण के लिए मिलकर यत्न करना चाहिए, मिलकर संसार में मनुष्यता की उन्नति करनी चाहिए। जब मनुष्य-मनुष्य आपस में घृणा करते हैं, भिन्न-भिन्न देश के वासी होने से या भिन्न-भिन्न धर्मावलम्बी होने से लड़ते हैं, एक-दूसरे का तोपों-बन्दूकों और जहरीली गैसों से घात करते हैं, छोटे-बड़े का अभिमान कर एक-दूसरे पर अत्याचार करते हैं, तब वे अपने एक समान माता-पिता को भूल जाते हैं।

क्या अंग्रेज भाइयों को पैदा करने वाला प्रभु और है और भारतवासियों का और? वह एक ही रुद्र हम सब मरुतों का पिता है। वह कभी बुड्ढा न होने वाला, कभी न मरने वाला पिता है। वह हम सबके लिए कल्याण कर्म करने वाला पिता है और हम सबकी माता यह प्रकृति है जो कि हमारे लिए उत्तम ऐश्‍वर्यों का दूध प्रदान कर रही है और हमें सब सुख पहुँचा रही है। आओ! हम इन सब झूठे भेदभावों को भूलकर काला-गोरा, पूँजीपति-श्रमी, छूत-अछूत, इस देशवासी और उस देशवासी इन सब भेदों को भूलकर हम सब मनुष्य मिलकर मनुष्यमात्र के हित का ध्यान करें, एक-दूसरे के हित का ध्यान करें। अपने शोभन कर्म करने वाले अमर पिता के आशीर्वाद को पाते हुए और करुणामयी सुखदात्री माता द्वारा अपनी सब कामनाएँ पूरी करते हुए अपनी उन्नति का साधन करें और भाई-भाई की तरह एक दूसरे की सहायता करते हुए मनुष्यता के उद्देश्य की पूर्ति में बढ़ते जाएँ।

शब्दार्थ- अज्येष्ठासः=जिनमें कोई बड़ा नहीं है और अकनिष्ठासः=जिनमें कोई छोटा नहीं है ऐसे ऐते=ये सब भ्रातरः=परस्पर भाई सौभागाय सं वावृधुः=उत्तम ऐश्‍वर्य के लिए मिलकर उन्नति करने वाले हैं। एषाम्=इन सबका युवा पिता=सदा युवा पिता स्वपा रुद्रः=कल्याण कर्म करने वाला रुद्र परमेश्‍वर है और मरुद्भ्यः=इन मरुतों-मनुष्यों के लिए सुदिना=सुख देने वाली सुदुघा=उत्तम दूध देने वाली माता पृश्‍निः=प्रकृति है। - आचार्य अभयदेव विद्यालंकार (दिव्ययुग- जून 2013)

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