गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामजन्म के प्रसंग पर कहा है- बिप्र धेनु सुर सन्त हित, लीन्ह मनुज अवतार निज इच्छा निर्मित तनु, माया गुन गो पार। अर्थात् ब्राह्मण, गौ, देवता और सन्तों के लिए, उनकी रक्षा के लिए, उनके उद्धार के लिए भगवान श्रीराम अवतरित हुए थे। चैत्र मास का यूं तो भारतीय संस्कृति में अत्यन्त महत्व है, लेकिन राम के जन्म दिवस के कारण इसका महत्व कोटि गुणा हो जाता है। जैसा कि हम सभी जानते हैं कि रामनवमी के दिन राम का जन्म हुआ था और इस दिन हिन्दू धर्म को मानने वाले लोग उपवास और उत्सव भी मनाते हैं। .....और इसके साथ ही उनके कर्त्तव्य की इतिश्री भी हो जाती है। क्या हमने कभी यह चिन्तन, मनन करने का प्रयास किया है कि भगवान श्रीराम के जीवन का उद्देश्य क्या था? कम से कम उपवास और उत्सव तो उनका उद्देश्य बिल्कुल भी नहीं था। गुसाई जी की उपर्युक्त पंक्तियाँ आज भी प्रासंगिक हैं। क्योंकि वर्तमान समय में भी विप्र (विद्वान), धेनु (गोवंश), सन्त (सज्जन) और सुर (आस्था) संकट में हैं। इन चारों को बचाए बिना हमारे समाज और राष्ट्र का कल्याण सम्भव नहीं है। इनके संरक्षण के बिना हम उत्सव की कल्पना भी नहीं कर सकते। .......और आज समाज में उत्सव के नाम पर जो कुछ भी हो रहा है वह आडम्बर से ज्यादा कुछ भी नहीं है। तो क्या फिर ऐसा दिव्य महापुरुष पृथ्वी पर आएगा? निश्चित ही ऐसा सम्भव है, लेकिन इसके लिए भरत, लक्ष्मण और हनुमान जैसी निष्ठा और समर्पण की आवश्यकता है। यदि हम निष्ठापूर्वक संकल्प लें तो राम स्वतः हर व्यक्ति में प्रकट हो सकते हैं। यदि ऐसा हो जाए तो एक क्षण के लिए भी आसुरी शक्तियाँ समाज में नहीं रह सकती।
यदि समाज से दुष्प्रवृत्तियों को नष्ट करना है तो हमें शक्ति का आवाहन भी करना होगा। चैत्र मास में ही नवरात्रि पर्व भी श्रद्धा और उत्साह से मनाया जाता है। नवरात्रि प्रतीक हैं। दरअसल, यह अवसर अपने भीतर की शक्तियों को जागृत करने का है, उन्हें पहचानने का है। हम उन्हें पहचानें और अपने अन्दर की ‘शक्ति’ को समाज और राष्ट्र के उत्थान में लगाएँ, तभी रामनवमी और नवरात्रि उत्सव की सार्थकता होगी।
चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से नवसम्वत्सर का भी शुभारम्भ होता है। इस समय प्रकृति भी नवशृंगार करती हैं, जो हमें नवसंकल्प का सन्देश देती है। तुलसीदास जी ने भी राम जन्म के समय का बहुत ही सुन्दर वर्णन किया है- शीतल, मन्द, सुगन्धित पवन बह रहा था, वन फूले हुए थे, पर्वत समूह मणियों से जगमगा रहे थे, नदियाँ अमृत की धारा प्रवाहित कर रही थी आदि-आदि। प्रकृति का यह रूप तो आज हमने स्वार्थ की भेंट चढ़ा दिया है, लेकिन जो शेष है उसे बचाने के प्रयास तो किए ही जा सकते हैं। परन्तु इसके लिए भी नवसंकल्प और ईमानदार प्रयासों की जरूरत है।
अन्त में, यह बताना भी आवश्यक है कि आपके अपने ‘दिव्ययुग’ ने भी 11 वर्ष पूर्ण कर लिए हैं और यह 12वें वर्ष में प्रवेश कर रहा है। दिव्ययुग की यह यात्रा आप सब सहृदय पाठकों के स्नेह और सहयोग के बिना सम्भव नहीं थी। इसके लिए आप सबको बधाई, साधुवाद। इस अपेक्षा के साथ आपको पुनः नववर्ष एवं रामनवमी की बधाई कि आपका स्नेह पत्रिका परिवार को इसी तरह मिलता रहेगा। - सम्पादकीय (दिव्ययुग- अप्रैल 2013)
Motivational Speech on Vedas in Hindi by Dr. Sanjay Dev
वेद कथा -18 | Explanation of Vedas & Dharma | धर्म की अनिवार्यता एवं सुख