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सफलता की कुंजी है आत्मविश्‍वास

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आत्मविश्‍वास मनुष्य का बहुत बड़ा गुण माना जाता है। मानव जीवन में आत्मविश्‍वास के महत्व का अवलोकन ज्यादातर लोग गहराई से नहीं करते, इसलिये वे आत्मविश्‍वास के अभाव या अधिकता से ग्रस्त रहते हैं, जोकि मानव जीवन की उन्नति में प्रमुख बाधा है। आपका ऐसे लोगों के साथ जरूर सामना हुआ होगा, जो किसी बात को उसके बारे में पूर्ण जानकारी होने के बावजूद भी पूरे आत्मविश्‍वास के साथ नहीं कह या कर पाते। ऐसे लोग भी हैं जो किसी भी बात को चाहे वो गलत ही हो, इतने विश्‍वास के साथ कहेंगे कि आपको जरा भी सन्देह नहीं रहेगा।

मनुष्य में आत्मविश्‍वास के अभाव के कई कारण होते हैं, जिनमें से हीन भावना एक प्रमुख कारण है। ज्यादातर लोग निम्नजाति, दोषपूर्ण उच्चारण, शारीरिक विकृति, मानसिक विकृति अज्ञान, अच्छे व्यक्तित्व के अभाव तथा गरीबी के कारण हीनभावना से ग्रस्त रहते हैं। इससे उनमें आत्मविश्‍वास का अभाव हो जाता है। इसकी पूर्ति के लिए उन्हें ईश्‍वररूपी अदृश्य शक्ति के सहारे की आवश्यकता महसूस होती है। वे जब भी कोई कार्य करने लगते हैं, जो उन्हें स्वयं को उचित प्रतीत होता है तो भी वे यह निश्‍चित नहीं कर पाते कि वे किसी कार्य को सम्पन्न कर पायेंगे या नहीं। तब वे एक सर्वव्यापी शक्ति की कल्पना करके उसका आह्वान करते हैं कि वह इस कार्य को पूर्ण कर दे। इस प्रार्थना से उन्हें उस कार्य के पूर्ण होने की आशा हो जाती है। पर यदि किसी कारणवश इस अदृश्य शक्ति को कार्य प्रारम्भ करते समय भूल जाते हैं तो बाद में कार्य सम्पादन के बीच इस शक्ति से इतना डर जाते हैं कि उनका आत्मविश्‍वास डगमगाता जाता है।परिणामस्वरूप वह कार्य ठीक से पूर्ण नहीं हो पाता।

आत्मविश्‍वास का अभाव मनुष्य में और कई प्रकार से भी प्रकट होता है, जिससे मनुष्य में कई प्रकार की विचित्रताएं उत्पन्न हो जाती हैं। कुछ लोग किसी विशेष तिथि, विशेष रंग या विशेष वस्त्र को शुभ समझने लगते हैं और फिर अपने सभी आवश्यक कार्य उसी तिथि अथवा विशेष वस्त्र या रंग की उपस्थिति में ही करते हैं कि अब यह कार्य सफल हो पायेगा। अन्यथा उनका आत्मविश्‍वास टूटने लगता है और अन्त में ऐसा प्रतीत होता है जैसे किसी अदृश्य शक्ति ने कार्य में रुकावट डाल दी।

साक्षात्कार, परीक्षा या प्रवेश के समय ज्यादातर लोगों को अपनी योग्यता से ज्यादा ईश्‍वर की मदद पर विश्‍वास होता है। इसलिए वे अपनी तैयारी से ज्यादा ईश्‍वर का ध्यान या पूजन करके अपने को दुविधा में डाल देते हैं कि भगवान् उनकी मदद करें, क्योंकि सभी को तो उसकी जरूरत है। गान्धी जी ने अप्रैल 1930 में अपनी ऐतिहासिक डाण्डी यात्रा के दौरान भटगांव (सूरत) में अपने एक भाषण में कहा था- ‘‘अपनी बहुत बड़ी गलतियों को एक साधारण सी बात समझना हम लोगों की आदत सी बन गई है और अगर कभी हम अपनी गलतियों को महसूस भी करते हैं, तो उन्हें फोरन भगवान् के कन्धों पर डाल देते हैं और कह देते हैं कि भगवान् उन गलतियों के लिए हमें क्षमा करना। ऐसा करने से हमारे मन को सन्तोष मिलता है। उसके आधार पर हम गलतियों पर गलतियाँ करते जाते हैं।’’

जरूरत से ज्यादा आत्मविश्‍वास का दिखावा करने वाले लोग भी एक प्रकार की हीनभावना से ग्रस्त होते हैं। मगर इस प्रकार के लोग बेहद चतुर और वाक्पटु होते हैं। वे अपनी इस हीनभावना को अच्छी वाक्पुटता और ज्यादा आत्मविश्‍वास के प्रदर्शन से ढांपने का प्रयत्न करते हैं। ऐसे लोगों से सावधान रहना चाहिए। क्योंकि वे बेहद स्वार्थी होते हैं। ऐसे विश्‍वास से परिपूर्ण मनुष्यों को इस संसार में नास्तिक के नाम से भी जाना जाता है। वे अपने किसी भी अच्छे या बुरे के लिए स्वयं को ही उत्तरदायी अनुभव करते हैं। साथ ही किसी दुःख में उन्हें किसी अन्य की सहानुभूति की आवश्यकता नहीं होती है और एक प्रकार से उनका जीवन अपने में ही केन्द्रित होता है। - मनजीत प्रभाकर (दिव्ययुग - मार्च 2013)

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