ओ3म् मा त्वा मूरा अविष्यवो मोपहस्वान आ दभन्।
मा कीं ब्रह्मद्विषं वनः॥ ऋग्वेद 8.45.23, सामवेद 732॥
शब्दार्थ- हे जीवात्मन् ! (मूराः) मूढ़, मूर्ख लोग (अविष्यवः) स्वार्थी, भोग-विलासी लोग (त्वा) तुझे (मा, आ, दभन्) नष्ट न करें, तेरे ऊपर अधिकार न जमा है। (उपहस्वानः) व्वर्थ में ही सबका उपहास करने वाले मूढ़ भी (मा) मुझे नष्ट न करें। (ब्रह्मद्विषम्) वेद और ईश्वर से द्वेष करने वालों का (मा कीं वनः) कभी भी सेवन, सत्सङ्ग मत कर।
भावार्थ- मनुष्य पर सत्सङ्ग का बड़ा प्रभाव पड़ता है। मनुष्य जैसा संग करता है वैसा ही बन जाता है। महापुरुषों के साथ रहने से मनुष्य ऊँचा उठता है और मूर्खों के साथ रहने से महापुरुष भी पतित हो जाता है। प्रस्तुत मन्त्र में मूर्खों और नास्तिकों के संसर्ग से दूर रहने का उपदेश दिया गया है-
1. मूढ़ और मूर्ख लोग तेरे ऊपर अधिकार न जमाएँ । मूर्ख लोग अपनी संगति में तुझे नष्ट न कर दें, अतः तू उनका संग छोड़ दे।
2. स्वार्थी और भोग-विलासी लोग सदा अपने शरीर की पुष्टि और तुष्टि में ही उलझे रहते हैं। ऐसे व्यक्ति मनुष्य को आत्म-पथ की ओर चलने ही नहीं देते। अतः उनका संग भी छोड़ देना चाहिए।
3. धर्म और ईश्वर की हँसी उड़ाने वाले व्यक्तियों से भी सदा बचना चाहिए।
4. जो वेद और ईश्वर के न मानने वाले व्यक्ति हैं उनसे दूर ही रहना चाहिए। - स्वामी जगदीश्वरानन्द सरस्वती
Fools and Atheists | Stupid People | Selfish | Enjoyment | Hatred of God | Idiot and Stupid | Religion and God | Vedas and God | Ideal of Life | Vedic Motivational Speech & Vedas explained (Introduction to the Vedas, Explanation of Vedas & Vaidik Mantras in Hindi) for Erich - Runji Gautampura - Dewas | Newspaper, Vedic Articles & Hindi Magazine Divya Yug in Edaganasalai Erode - Rura - Dhar | दिव्ययुग | दिव्य युग