विशेष :

मंगल मिलन

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ओ3म् यदग्ने स्यामहं त्वं त्वं वा घा स्या अहम्।
स्युष्टे सत्या इहाशिषः॥ ऋग्वेद 9.44.23 ॥

ऋषिः आङ्गिरसो विरूपः॥ देवता अग्निः॥ छन्दः गायत्री॥

विनय- हे नारायण! तुम्हारी मंगलकामना प्राणिमात्र के लिये अनवरत हो रही है। तुम्हारे आशीर्वाद प्रत्येक जीव के लिए, अपने प्रत्येक पुत्र के लिए एक समान बरस रहे हैं। फिर भी जो ये आशीर्वाद हमें लगते हैं, हम पर अपना असर नहीं करते इसका कारण यह है कि हम ही अपने आपको इनसे वञ्चित रख रहे हैं। स्वार्थ, अहंकार, अस्मिता से हमने अपने आपको ऐसा बान्ध लिया है, ऐसा लपेट लिया है कि हम वास्तव में तुम्हारे परम निकट होते हुए भी तुमसे इतने दूर हो गये हैं कि हम पर तुम्हारी आशीर्वाद वर्षा का कुछ भी असर नहीं होता। हे मेरे प्यारे प्रकाशमय देव! हममें दूरी करने वाला, हमें जुदा रखने वाला यह आवरण अब सहा नहीं जाता। अब तो यह पर्दा फट जाए, यह आवरण हट जाए और मैं तू हो जाऊँ या तू मैं हो जाए, तो मुझपर बरसाये गये जीवन भर के तेरे सब आशीर्वाद एक क्षण में सफल हो जाएं तथा जीवन भर में तुम्हारे प्रति की गई मेरी सब प्रार्थनाएं एक पल में पूरी हो जाएं। हे प्रभो! वह दिन कब आएगा, जब मैं तेरे ध्यान में मग्न होकर अपने आपको खो दूँगा और दूसरी ओर तुम अपने परम प्यारे पुत्र को अपनी गोद में आश्रय दे दोगे। जब मेरा आत्मा अपने परम आत्मा को पा जाएगा और दूसरे शब्दों में तुम परमात्मा अपने एक चिरवियुक्त अङ्ग को फिर अङ्गीकार कर लोगे, जब मेरी आत्माग्नि तुम्हारी बृहत्-अग्नि में जाकर ‘मैं’ को नष्ट कर देगी अथवा जब तुम्हारे द्वारा मेरे स्वीकृत हो जाने से ‘तुम’ जाता रहेगा? तब मेरी कोई प्रार्थना न रहेगी, क्योंकि तब मेरा कोई स्वार्थ व कामना न रहेगी और इसलिए तब तुम्हारा कोई आशीर्वाद भी बाकी न रहेगा। उस मंगल मिलन में तुम्हारे सब आशीर्वाद मूर्त्तिमन्त, सत्य, सफल हो जाएंगे। जीवन-भर में जो-जो मैंने तुमसे भक्तिमय प्रार्थनाएँ की है और उनके उत्तर में, उनकी स्वीकृति में, तुमसे मैंने जो नाना आशीर्वाद पाये हैं, वे सब-के-सब आशीर्वाद आखिर इसी महान् मंगल मिलन के लिए थे। मेरी सब प्रार्थनाओं की एक इच्छा और तुम्हारे मेरे प्रति सब आशीर्वचनों की एक इच्छा, यह मिलन ही थी। तुम्हारी मेरे कल्याण की सब की सब कामनाएँ, सब आशीर्वाद, इस आत्मप्राप्ति में एकदम पूरे हो जाते हैं। क्योंकि यही मेरा सबसे बड़ा कल्याण है, कल्याणों का कल्याण है, जिसमें सब कल्याण समा जाते हैं। अहो! वह मंगल मिलन, वह महान् मिलन!

शब्दार्थः- अग्ने=हे प्रकाशस्वरूप! यत् अहं त्वं स्याम्=जब मैं तू हो जाऊँ वा घ=या त्वं अहं स्याः=तू मैं हो जाए तो ते इह आशिषः=तेरे इस संसार के वे सब आशीर्वाद सत्याः स्युः=सत्य, सफल हो जाएँ। - आचार्य अभयदेव विद्यालंकार

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