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महिला और परिवार - निर्माण

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परिवार में हर व्यक्ति का स्वास्थ्य अच्छा रहे, इसके लिए बचपन से ही हर बच्चे के खान-पान व अन्य आदतों आदि का बहुत ख्याल करना होगा । घर में कभी ऐसी चीजें न आएँ, जो बच्चों के स्वास्थ्य को खराब करने वाली हों । व्यायाम, अच्छे खेल, भ्रमण, सैर, तैराकी आदि के प्रति प्रारम्भ से ही बच्चों में रुचि पैदा की जाए ।

बच्चों में छोटी आयु से ही सत्संगति की प्रवृत्ति जगाई जाए , जिससे वे स्कूल में भी बुरे बच्चों से न मिल पाएं । माता-पिता स्वयं भी सत्संगों में जाने, अच्छी बातें सुनने, विद्वानों का आदर करने तथा अच्छी पुस्तकें पढने की आदत डालें ।

यद्यदाचरति श्रेष्ठ: तत्तदेवेतरो जन: । माता-पिता अपने बच्चों में जो भी सद्गुण लाना चाहते हैं, उन गुणों को स्वयं में लें आवें और वे वैसा ही काम करने लगें । अपने आचरण के द्वारा उनको सन्मार्ग दिखाएँ, क्योंकि बड़े जो करते हैं, बच्चे भी वही काम करते हैं ।

प्यार और मोह में अन्तर है । प्यार में तर्क और विवेक की मुख्यता रहती है, जबकि मोह में विवेक सर्वथा शून्य हो जाता है । बच्चों से प्यार रखें, मोह नहीं । मोह में आकर बचपन की उनकी हर जिद्द पूरी न करते जाएँ । इसलिए माता को बड़े विवेक से काम लेना चाहिए और बच्चों की केवल उचित मांगों को ही मानना चाहिए।

माता-पिता को बच्चों की शिक्षा पर विशेष ध्यान देना चाहिए तथा उनकी रुचि और प्राथमिकता पर अधिक ध्यान रखना चाहिए । सबसे महत्त्वपूर्ण बात है, पति-पत्नी का पारस्परिक व्यवहार । यदि वे दोनों धर्म के अनुसार चलेंगे, परस्पर प्रीतिपूर्ण व्यवहार करेंगे, एक-दूसरे की प्रतिष्ठा करते चलेंगे, नि:स्वार्थता, निरहंकारता, सहयोगिता तथा आदर्श जीवन का श्रेष्ठ उदाहरण प्रस्तुत करेंगे, तो परिवार-निर्माण के सभी प्रयत्नों में उन्हें सफलता मिलेगी । पति-पत्नी को चाहिए कि वे सत्संगों में जाने, अच्छी बातें सुनने, विद्वानों का आदर करने तथा अच्छी पुस्तकें पढने की आदत डालें ।

बच्चों में ईश्‍वरविश्‍वास, भक्ति, संकल्प-शक्ति, अनुशासन, आज्ञापालन, विनयशीलता, दृढता, कर्मठता, स्फूर्ति, निरालस्यता, त्याग-भावना, मधुरता, निरहंकारता और सहिष्णुता आदि गुण बचपन से ही आने चाहिएँ । माता शत्रु: पिता वैरी येन बालो न पाठित:। वे माता-पिता बच्चों के दुश्मन हैं, जो उन्हें बचपन से ही इन बातों की शिक्षा नहीं देते। बच्चों में शैशवकाल में जो ग्रहण-शक्ति होती है, वह बाद में नहीं रहती । इसीलिए महर्षि दयानन्द सरस्वती ने लिखा कि माता 5 साल तक बच्चों को इन बातों की शिक्षा दे दे । क्योंकि बच्चे जो कुछ इस अवधि में सीख जायेंगे, उसे जीवन भर नहीं भूलेंगे ।

महिलाओं का उत्तरदायित्व और भी पहले शुरु हो जाता है । वे जीवन में क्या बनना चाहती हैं, क्या लक्ष्य उन्होंने जीवन में बनाया है ? इसके लिए उनको किस प्रकार का पति चाहिए ? इन उद्देश्यों का निर्धारण करना तथा उसके अनुसार वर का माता-पिता की सलाह से स्वयं चुनाव करना उनका कर्तव्य है । विवाह के बाद कैसा बच्चा उसको चाहिए, गर्भाधान कब करना उचित होगा ? इसका भी निर्णय महिला को ही लेना चाहिए कि उनको किस प्रकार की आत्मा चाहिए ।

धार्मिक संस्थाओं के कार्यक्रम में परिवार निर्माण को सर्वाधिक महत्त्व दिया जाना चाहिए । नारी का दमन करने तथा उसे अशिक्षित रखने से समाज कभी उन्नति नहीं कर सकता । वेदों में लिखा है- स्त्री हि ब्रह्मा बभूविथ ।

आज विश्‍व में जो विकास दिखाई देता है, उसके पीछे नारी का सहयोग छिपा है । इसीलिए नारी एक शक्ति के रूप में पहचानी जाती है । भले ही नारी एक अबला हो, किन्तु उसका आत्मबल जब जागता है, तब वह सबला बन जाती है और कभी लक्ष्मीबाई, कभी दुर्गा, तो कभी अन्य नारी-शक्ति के रूप में प्रकट हो जाती है और कहती है :
हमें न अबला समझे कोई, हम भारत की नारी हैं।
कोमल-कोमल फूल नहीं, हम ज्वाला हैं, चिंगारी हैं॥
तुम कहते हो, नैन हमारे कारे हैं, मतवारे हैं।
हम कहती हैं, इन नैनों में भरे हुए अंगारे हैं॥
कोमल हमें न समझो, हम सिंहों को जनने वाली हैं।
हमें न अबला समझे कोई, हम भारत की नारी हैं॥• - श्रीमती शिवराजवती

Women and Family - Construction | Love and Affection | Mutual Behavior | Power of Determination | Dicipline | To Obey | Modesty | Hard Work | Inattentiveness | Sacrifice | Sweetness | Gharastha Ashram | Maharshi Dayanand Saraswati | Happy Family | Divyayug | Divya Yug